पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए बीज जारी करने की अनुशंसा की है. समिति के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्टसे कहा है कि आनुवांशिक रूप से संवर्धित (Genetically Modified- जीएम) फसलों का विरोध निराधार है, क्योंकि भारत पहले से ही इससे उत्पादित तेल का आयात और उपभोग कर रहा है.
शीर्ष अदालत के समक्ष दाखिल एक हलफनामे में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने कहा है कि रिफाइंड पाम तेल, सोया तेल और सरसों तेल की औसत कीमतें लगातार बढ़ रही हैं तथा घरेलू खपत की मांग पूरी करने के लिए भारत को तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर होने की जरूरत है.
उल्लेखनीय है कि व्यावसायिक खेती के लिए आनुवांशिक रूप से संवर्धित सरसों को मंजूरी देने को लेकर जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) के फैसले के खिलाफ एक याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया है.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए इसके बीज जारी करने की सिफारिश की है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि यह इसकी व्यावसायिक खेती का मार्ग प्रशस्त करेगा.
ज्ञात हो कि सरकार ने अब तक (वर्ष 2002 में) व्यावसायिक खेती के लिए केवल एक जीएम फसल- बीटी कपास को मंजूरी दी है.
अब मंत्रालय ने अपने हलफनामें में शीर्ष अदालत को बताया कि सरसों भारत की सबसे महत्वपूर्ण तेल और बीज खाद्य फसल है, जो लगभग 80-90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है और ट्रांसजेनिक सरसों की संकर किस्म डीएमएच-11 की ‘पर्यावरणीय’ मंजूरी लंबी और विस्तृत समीक्षा प्रक्रिया के बाद दी गई.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सरकार की तरफ से आगे कहा गया, ‘बीज बदलने (ताजा बीज खरीदने वाले किसान) की दर लगभग 63% है और सरसों के तहत कुल क्षेत्रफल में से सिंचाई क्षेत्र में बढ़कर 83% हो गया है लेकिन इन सभी निवेशों के बावजूद सरसों की पैदावार स्थिर है.’
सरकार ने इंगित किया कि भारत में खाद्य तेल की खपत की वर्तमान दर घरेलू उत्पादन दर से अधिक है. वर्तमान में भारत अपनी खाद्य तेल की मांग का लगभग 55% से 60% आयात के माध्यम से पूरा करता है.
इसने बताया कि देश पहले से ही बड़ी मात्रा में खाद्य जीएम तिलहन का आयात और उपभोग कर रहा है. हलफनामे में कहा गया, ‘भारत में उगाई जाने वाली कपास एक जीएम फसल है और हम सालाना लगभग 95 लाख टन कपास के बीज और 12 लाख टन कपास के तेल का उत्पादन करते हैं और लगभग 6.5 मिलियन टन कपास के बीज का उपभोग पशु चारा के रूप में किया जाता है.’
हलफनामे में कहा गया है, ‘भारत सालाना लगभग 55,000 मीट्रिक टन कैनोला तेल का आयात करता है, जो मुख्य रूप से जीएम कैनोला बीजों से होता है और लगभग 2.8 लाख टन सोयाबीन तेल बड़े पैमाने पर जीएम सोयाबीन तेल से बना होता है. चूंकि भारत जीएम फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग कर रहा है, इसलिए निराधार आशंकाओं के आधार पर (ऐसी प्रौद्योगिकियों का) विरोध केवल किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग को नुकसान पहुंचाएगा.’
यह बताते हुए कि रिफाइंड पाम तेल, सोया तेल और सरसों के तेल की औसत कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, सरकार ने कहा कि घरेलू खपत की मांग को पूरा करने के लिए भारत को तेल उत्पादन में स्वतंत्र होने की जरूरत है. इसने कहा, ‘खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि से महंगाई भी बढ़ेगी … (और) सरसों जैसी जीएम तिलहन फसलों को उगाने जैसा कृषि सुधार उपयोगी होगा.
हलफनामे में कहा गया है कि जीएम सरसों की संकर किस्म से पारंपरिक किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेयर उपज में 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है और इससे अन्य देशों पर भारत की निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी.
ज्ञात हो कि इससे पहले शीर्ष अदालत ने वाणिज्यिक खेती के लिए जीएम सरसों को मंजूरी देने के जीईएसी के फैसले पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि जब तक इस संबंध में उसके समक्ष दायर एक अर्जी पर सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक ‘कोई त्वरित कार्रवाई न की जाए.’
यह कदम हरित समूहों के विरोध के बीच आया है, जिनका कहना है कि जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) और संगठन की कृषक इकाई- भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने भी जीएम सरसों को पर्यावरण मंजूरी देने की अनुशंसा किए जाने का विरोध किया है.
जैव प्रौद्योगिकी नियामक जीईएसी की 18 अक्टूबर की बैठक के विवरण के अनुसार उसने ‘वाणिज्यिक मंजूरी से पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के दिशानिर्देशों और अन्य मौजूदा नियमों तथा विनियमों के अनुसार बीज उत्पादन एवं परीक्षण के लिए सरसों की संकर किस्म डीएमएच-11 की पर्यावरणीय मंजूरी की सिफारिश की.’
ट्रांसजेनिक सरसों की संकर किस्म डीएमएच-11 को दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा विकसित किया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)