सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के दोषियों में से एक आरोपी एजी पेरारिवलन के मामले में शीर्ष अदालत का पहले दिया गया फैसला, इस मामले में भी लागू होता है. राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषी नलिनी श्रीहरन, मुरुगन, संथन, एजी पेरारिवलन, जयकुमार, रॉबर्ट पायस और आरपी रविचंद्रन हैं.
नई दिल्ली/चेन्नई: सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे नलिनी श्रीहरन और आरपी रविचंद्रन के अलावा चार अन्य दोषियों को समय से पहले रिहा करने का शुक्रवार को आदेश दे दिया. इन दोनों के अलावा मामले के अन्य चार दोषी संथन, मुरुगन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार हैं.
दोषियों ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मामले के दोषियों में से एक आरोपी एजी पेरारिवलन के मामले में शीर्ष अदालत का पहले दिया गया फैसला, इस मामले में भी लागू होता है.
वर्तमान पर पैरोल पर बाहर नलिनी ने मद्रास हाईकोर्ट द्वारा उसकी याचिका को ठुकराने के बाद जेल से जल्द रिहाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहा करने का आदेश देने के बाद नलिनी ने अपनी याचिका दायर की थी. संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई 2022 को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसने 30 साल से अधिक जेल की सजा पूरी कर ली थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुच्छेद शीर्ष अदालत को किसी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित करने में सक्षम बनाता है.नलिनी ने पेरारिवलन के मामले का हवाला दिया, क्योंकि उसने इसी तरह की राहत मांगी थी.
मालूम हो कि तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत हो गई थी. महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी.
इस हमले में धनु सहित 14 अन्य लोगों की मौत हो गई थी. गांधी की हत्या देश में संभवत: पहली ऐसी घटना थी, जिसमें किसी शीर्षस्थ नेता की हत्या के लिए आत्मघाती बम का इस्तेमाल किया गया था.
राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषी नलिनी श्रीहरन, आरपी रविचंद्रन, एजी पेरारिवलन, संथन, मुरुगन, जयकुमार और रॉबर्ट पायस हैं. न्यायालय ने मई 1999 के अपने आदेश में चारों दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सजा बरकरार रखी थी.
रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में सात दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से चार को मौत और अन्य तीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. साल 2000 में नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था और 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन सहित अन्य तीन मौत की सजा को कम कर दिया था.
राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का फैसला पूरी तरह अस्वीकार्य: कांग्रेस
इस फैसले का विरोध करते हुए कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रही नलिनी श्रीहरन और आरपी रविचंद्रन को समय से पहले रिहा किए जाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह अस्वीकार्य और गलत है.
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी आरोप लगाया कि देश की शीर्ष अदालत ने भारत की भावना के अनुरूप कदम नहीं उठाया.
My statement on the decision of the Supreme Court to free the remaining killers of former PM Shri. Rajiv Gandhi pic.twitter.com/ErwqnDGZLc
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) November 11, 2022
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को (समय-पूर्व) रिहा करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह अस्वीकार्य और त्रुटिपूर्ण है. कांग्रेस पार्टी स्पष्ट रूप से इसकी आलोचना करती है और इसे अरक्षणीय पाती है.’
रमेश ने यह भी कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर भारत की भावना के अनुरूप कदम नहीं उठाया.’
कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने एक बयान में कहा, ‘जिस अपराध में पूर्व प्रधानमंत्री जी की हत्या हुई है, उसमें ऐसी रिहाई का आदेश देना गैर-कानूनी है.’
"जिस अपराध में पूर्व प्रधानमंत्री जी की हत्या हुई है उसमें ऐसी रिहाई का आदेश देना गैर-कानूनी है"
श्री राजीव गांधी जी की हत्या के मामले में दोषियों की रिहाई पर श्री @DrAMSinghvi का बयान- pic.twitter.com/VPmUxpwq6X
— Congress (@INCIndia) November 11, 2022
न्यायालय के फैसले को नलिनी के वकील ने खुशी देने वाला बताया
नलिनी श्रीहरन सहित छह दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उनके (नलिनी के) वकील पी. पुगालेंथी ने शुक्रवार को खुशी प्रदान करने वाला बताया.
शीर्ष न्यायालय के रिहाई के आदेश पर प्रतिक्रिया पूछने पर नलिनी के वकील ने तमिल में ‘मग्जहची’ शब्द कहा, जिसका अर्थ ‘खुशी’ है.
पुगालेंथी ने कहा, ‘शीर्ष न्यायालय का फैसला यह याद दिलाता है कि राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सिफारिश पर काम करना चाहिए और कैदियों को रिहा करना चाहिए.’
उन्होंने मारु राम बनाम भारत सरकार मामले में शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए यह कहा.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1981 के फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत सजा की अवधि घटाने और कैदियों को रिहा करने की शक्ति राज्य सरकार में निहित है. इस तरह राज्यपाल मंत्रिमंडल के फैसले को मंजूरी देने के लिए कर्तव्यबद्ध है.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह अनुच्छेद 161 ने इसे स्पष्ट कर दिया है. राज्यपाल शब्द को राज्य सरकार के रूप में पढ़ा जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट ने इसे पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है.’
पुगालेंथी ने कहा कि हालांकि, 2018 में तमिलनाडु मंत्रिमंडल ने सात दोषियों को रिहा करने का फैसला किया था, लेकिन राजनीतिक कारणों को लेकर केंद्र द्वारा उनकी रिहाई रोक दी थी.
उन्होंने कहा, ‘हम कह सकते हैं कि इन वर्षों के दौरान उन लोगों को संविधान का उल्लंघन करते हुए अवैध रूप से कैद में रखा गया.’
दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने 2014 में मामले के सात दोषियों को रिहा करने की प्रक्रिया शुरू की थी और विषय बाद में सुप्रीम कोर्ट चला गया था, जिसने इस साल मई में एजी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था.
मई 2021 में पद संभालने के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस मामले में सात दोषियों की उम्रकैद की सजा माफ करने और उन्हें तत्काल रिहा करने का निर्देश देने का आग्रह किया था.
सुनवाई का घटनाक्रम
28 जनवरी 1998: तमिलनाडु में तिरुवल्लूर जिले की पूनामल्ली निचली अदालत ने राजीव गांधी की हत्या के मामले में नलिनी श्रीहरन सहित 26 आरोपियों को दोषी करार दिया और सभी को मौत की सजा सुनाई.
11 मई 1999: सुप्रीम कोर्ट ने चार दोषियों की मौत की सजा की पुष्टि की, जिनमें वी. श्रीहरन उर्फ मुरुगन की पत्नी नलिनी, टी संथन उर्फ सुतंतीराराज, अरीवु उर्फ एजी पेरारिवलन शामिल थे.
साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने तीन दोषियों- के. रॉबर्ट पायस, एस. जयकुमार और पी. रवि उर्फ रविचंद्रन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. इसके अलावा 19 अन्य को सुनाई गई मौत की सजा निरस्त कर दी.
19 अप्रैल 2000: (तत्कालीन) मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की अध्यक्षता में तमिलनाडु मंत्रिमंडल ने नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की सिफारिश की. तीन अन्य की दया याचिका खारिज कर दी. राज्यपाल ने फैसले को मंजूरी दे दी.
26 अप्रैल 2000: वी. श्रीहरन, टी. संथन, एजी पेरारिवलन ने राष्ट्रपति को दया याचिका दी.
12 अगस्त 2011: राष्ट्रपति ने केंद्र की सिफारिश पर तीनों की दया याचिकाएं खारिज कर दी.
29 अगस्त 2011: तमिलनाडु की (दिवंगत) मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश कर राष्ट्रपति से मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का अनुरोध किया. प्रस्ताव पारित कर दिया गया और केंद्र सरकार के विचारार्थ भेजा गया.
18 फरवरी 2014: इन दोषियों की दया याचिकाओं में अत्यधिक विलंब होने का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने श्रीहरन, संथन और पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया.
19 फरवरी 2014: जयललिता ने विधानसभा में घोषणा की कि सरकार का इरादा राजीव हत्याकांड के सभी सात दोषियों को समय से पहले रिहा करने का है. तमिलनाडु सरकार ने इस विषय पर केंद्र को पत्र लिखकर उसकी सहमति मांगी. केंद्र सरकार ने तमिलनाडु सरकार के कदम पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
02 मार्च 2016: जयललिता सरकार ने एक बार फिर से केंद्र को पत्र लिखा और सात दोषियों की रिहाई पर उसकी सहमति मांगी.
18 अप्रैल 2018: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के फैसले को सहमति देने से इनकार कर दिया.
09 सितंबर 2018: तत्कालीन मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी की अध्यक्षता में तमिलनाडु मंत्रिमंडल ने राज्यपाल से सभी सात दोषियों को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत रिहा करने की सिफारिश की.
18 मई 2022: सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया.
आरोप पत्र में कुल 41 लोगों को नामजद किया गया था और 26 पर मुकदमा चला, जबकि अन्य की मृत्यु हो गई. कुछ आरोपियों की मौत मुकदमा लंबित रहने के दौरान हुई, जबकि अब निष्क्रिय हो चुके श्रीलंका के संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के वेलुपिल्लई प्रभाकरण सहित अन्य की बाद में मृत्यु हो गई.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)