भाजपा-कांग्रेस की सियासी बयानबाज़ी के बीच हाल ही में राष्ट्रपति ने भी कहा, टीपू सुल्तान अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जंग लड़ते हुए शहीद हुए थे.
नई दिल्ली: कई जाने-माने इतिहासकारों का मानना है कि 18वीं सदी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान न तो स्वतंत्रता सेनानी थे और न ही तानाशाह. इनमें से बहुत से इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि टीपू इतिहास में ब्रिटिश औपनिवेशिक विस्तार के प्रतिरोध के प्रतीक हैं.
कर्नाटक में टीपू सुल्तान की विरासत को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच शब्दों के तीर चलाए गए हैं. भाजपा ने 10 नवंबर को टीपू जयंती समारोह मनाए जाने की कांग्रेस सरकार की योजना का विरोध किया है.
भाजपा का एक वर्ग टीपू को धार्मिक कट्टरवादी और क्रूर हत्यारा मानता है जबकि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उनकी एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रशंसा की है.
प्रख्यात इतिहासकार इरफान हबीब ने अलीगढ़ से फोन पर बताया कि टीपू सुल्तान को तानाशाह बताया जाना अनुचित होगा. उन्होंने कहा, वह निश्चित रूप से ब्रिटेन का प्रतिरोध करने में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे.
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुल्तान पर लागू नहीं होता है क्योंकि उन्होंने किसी के खिलाफ विद्रोह नहीं किया, बल्कि अपने राज का बचाव किया और उपनिवेशवाद का प्रतिरोध किया.
टीपू सुलतान पर दो किताब- स्टेट एंड डिप्लोमेसी अंडर टीपू सुल्तान: डॉक्यूमेन्ट्स एंड एसेज’ और ‘कन्फ्रन्टिंग कोलोनियलिज़म: रिज़िस्टेन्स एंड मॉडरनाइजेशन अंडर हैदर अली ऐंड टीपू सुल्तान’ को संपादित करने वाले हबीब ने कहा, यदि भारतीय उपनिवेश विरोधी संघर्ष का जश्न मनाना चाहते हैं तो उन्हें टीपू सुल्तान का जश्न भी मनाना चाहिए.
टीपू को बलात्कारी और क्रूर हत्यारा कहे जाने पर उन्होंने कहा, उनके चरित्र पर इस तरह का हमला ब्रिटिश शासन द्वारा भी नहीं किया गया था.
टीपू सुल्तान के योगदान की तारीफ करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने कहा कि मैसूर के पूर्व शासक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सिर्फ जंग ही नहीं की बल्कि जनरल के रूप में ब्रिटिश सशस्त्र बलों पर सबसे बड़ी विपदाओं में से एक बने.
उन्होंने आधुनिक सेना बनाने, आधुनिक हथियारों का निर्माण करने और आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने की उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए टीपू की प्रशंसा की.
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रमुख रोहित वानचू दक्षिण भारत में ब्रिटिश विस्तार को रोकने में टीपू को एक महत्वपूर्ण शख्सियत बताया.
वानचू ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने ब्रिटिश शासन को बढ़ने से रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. उन्होंने कहा, वह क्यों लड़े, वह कैसे लड़े… उनसे क्या हासिल करने की उम्मीद थी, ये बड़े और भिन्न सवाल हैं.
जवाहरलाल नेहरू विविद्यालय में सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज की सहायक प्रोफेसर नोनिका दत्ता ने कहा कि टीपू अंग्रेजों के एक पुराने दुश्मन थे. दत्ता ने कहा कि टीपू सुल्तान अपने समय के राष्ट्रवादी नायक नहीं थे और ना ही वह एक तानाशाह थे.
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के इतिहास के सह प्रोफेसर तसनीम सुहरावर्दी ने भी दक्षिण भारत में ब्रिटिश विस्तार को रोकने में टीपू को एक महत्वपूर्ण शख्सियत बताया. उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने टीपू सुल्तान की तारीफ करते हुए कहा था कि वह अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ते हुए शहीद हुए थे.