सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने वर्तमान में देश में बंधुत्व के संवैधानिक सिद्धांत को महत्वपूर्ण क़रार देते हुए कहा कि सौहार्द बिगाड़ने वाले नफ़रत भरे भाषण (हेट स्पीच) के मामलों में दीवानी अदालतों को आर्थिक हर्जाना लगाने का अधिकार दिया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने मौजूदा समय में देश में बंधुत्व के संवैधानिक सिद्धांत को महत्वपूर्ण करार देते हुए शुक्रवार को कहा कि सौहार्द बिगाड़ने वाले नफरती भाषण (हेट स्पीच) मामलों में दीवानी अदालतों को आर्थिक हर्जाना लगाने का अधिकार दिया जाना चाहिए.
जस्टिस नरीमन ने कहा कि यद्यपि आपराधिक कानून को कई बार चुनिंदा तरीके से लागू किया जाता है, लेकिन दीवानी अदालतों द्वारा की गई कार्रवाई बंधुत्व को बरकरार रखने और उसकी रक्षा करने की दिशा में लंबी दूरी तय करेगी, जो प्रत्येक नागरिक की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को सुनिश्चित करने का एकमात्र संवैधानिक तरीका है.
जस्टिस (सेवानिवृत्त) नरीमन ने 13वें वीएम तारकुंडे स्मृति व्याख्यान में यह बात कही. इस कार्यक्रम में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर और बार के सदस्यों सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया.
जस्टिस नरीमन ने मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के संबंध में संवैधानिक योजना पर विस्तार से बात की और सुझाव दिया कि सरकार को नागरिकों के बीच हरसंभव भाषा में संविधान की मुफ्त प्रतियां वितरित करनी चाहिए.
जस्टिस नरीमन ने शीर्ष अदालत के एक फैसले का हवाला दिया और कहा, ‘हमारी परंपरा सहिष्णुता सिखाती है, हमारा दर्शन सहिष्णुता का उपदेश देता है, हमारा संविधान सहिष्णुता का पालन कराता है. आइए हम इसे कमजोर न करें.’
द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘जिस क्षण कोई नागरिक अभद्र भाषा के खिलाफ अदालत में याचिका दायर करता है, अदालत न केवल एक घोषणा और निषेधाज्ञा जारी कर सकती है, बल्कि अपने मौलिक कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए दंडात्मक हर्जाना भी लगा सकती है… यह बंधुत्व को संरक्षित करने और सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा.’
जस्टिस नरीमन ने कहा कि बंधुत्व का प्रमुख सिद्धांत यह तय करता है कि प्रत्येक नागरिक दूसरे नागरिक को भाईचारे की भावना से सम्मान दे है जो धार्मिक, सांप्रदायिक और अन्य विखंडनीय प्रवृत्तियों से परे है. अन्य मुख्य उपदेश हिंसा को त्यागने का मौलिक कर्तव्य, देश की समग्र संस्कृति को देखना और उसका सम्मान करना, जो विशेष रूप से वर्तमान समय में भारत के लिए महत्वपूर्ण है.
जस्टिस नरीमन ने कहा कि सुप्रीम का एक हालिया आदेश यह कहने में चूक गया कि हर प्राधिकरण को उस समय कार्रवाई करनी चाहिए जब नफरती भाषण दिए जाएं और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो यह अदालत की अवमानना होगी.
उन्होंने 1986 के राष्ट्रगान से संबंधित एक फैसले में जस्टिस चिनप्पा रेड्डी के शब्दों को दोहराते हुए कहा, ‘हमारी परंपरा सहिष्णुता सिखाती है, हमारा दर्शन सहिष्णुता का उपदेश देता है, हमारा संविधान सहिष्णुता का व्यवहार करता है. आइए, हम इसे कमजोर न होने दें.’
उन्होंने कहा कि नागरिकों को संविधान का पालन करने के लिए यह जानना जरूरी है कि इसमें क्या है. इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को हर संभव भाषा में संविधान की प्रतियां वितरित करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि नागरिकों को उन संघर्षों से भी अवगत कराया जाना चाहिए, जिनसे स्वतंत्रता सेनानियों को गुजरना पड़ा था.
जस्टिस नरीमन ने प्रासंगिक ऐतिहासिक निर्णयों का हवाला देते हुए मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित प्रावधानों के विभिन्न पहलुओं और विकास पर भी प्रकाश डाला.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)