भारत के पूर्व सीजेआई यूयू ललित ने जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करने वाली केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणियों पर कहा कि वो उनके निजी विचार हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार चाहे तो एनजेएसी अधिनियम वापस ला सकती है लेकिन बदलाव क़ानून के अनुरूप होना चाहिए.
नई दिल्ली: भारत के पूर्व न्यायाधीश यूयू ललित ने रविवार को न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि यह सेकंड जजेस मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की राय से अस्तित्व में आई थी और यह स्थापित मानदंडों के अनुसार काम करती है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 8 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए ललित ने अपने आवास पर संवाददाताओं से कहा, ‘यह पांच न्यायाधीशों का निष्कर्ष था कि कॉलेजियम प्रणाली आदर्श है और हमें इसी प्रणाली का पालन करना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘यह आज जिस स्थिति में है, वह एकदम सही है.’
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को लाने के प्रयासों का जिक्र करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा, ‘यह प्रयास सही नहीं पाया गाया. अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि इस तरह का प्रयास बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होगा.’
कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करने वाले केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए जस्टिस ललित ने कहा, ‘यह उनका निजी विचार है.’
गौरतलब है कि केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू विभिन्न मौकों पर कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाते रहे हैं. बीते दिनों उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली के अपारदर्शी होने की बात दोहराते हुए कहा था कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम देश की सामूहिक इच्छा थी, जिससे सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं हुआ.
बहरहाल, पूर्व सीजेआई ने कहा, ‘कॉलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का फैसला है. इसलिए, कॉलेजियम स्थापित मानदंडों के अनुसार काम करता है. अगर आप कॉलेजियम में सुधार चाहते हैं, तो शायद बातचीत की जरूरत हो सकती है.’
उन्होंने कहा कि यह सरकार पर निर्भर है कि वह एनजेएसी को फिर से लाना चाहती है या नहीं.
ललित ने कहा, ‘परिवर्तन कानून के अनुरूप होना चाहिए. अगर सरकार एनजेएसी को फिर से लाना चाहती है, तो यह उनका विशेषाधिकार है. वे निश्चित ही ऐसा कर सकते हैं. अगर दोनों सदन ऐसा विधेयक पारित कर देते हैं तो वह भी उसी दिशा में एक कदम होगा. जब तक इस तरह के प्रयास नहीं किए जाते, हम स्थापित मानदंडों के आधार पर उत्पन्न होने वाली रिक्तियों को भरते रहेंगे.’
कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज के अपारदर्शी होने संबंधी आलोचना पर उन्होंने कहा, ‘कॉलेजियम के सामने होने वाली चर्चा कभी भी पारदर्शी नहीं हो सकती. कॉलेजियम से जो फैसले आ रहे हैं, वे निश्चित तौर पर पारदर्शी होंगे. इस पर कोई संदेह नहीं है. मान लीजिए कि हमारे पास दो रिक्तियां हैं और हम 10 संभावित उम्मीदवारों के बारे में जानकारी एकत्र कर रहे हैं, आप लाभ और हानि देखते हैं, आप विभिन्न पहलुओं को देखते हैं.’
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर कि सरकार कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों को हमेशा के लिए लंबित नहीं रख सकती, उन्होंने कर्नाटक के एक वकील के मामले का हवाला दिया, जिनके नाम को हाईकोर्ट कॉलेजियम के साथ-साथ सभी एजेंसियों ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन केंद्र ने इसे लंबित रखा. अंतत: वकील ने अपनी सहमति ही वापस ले ली.
इससे पहले बीते शनिवार को पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने भी कॉलेजियम प्रणाली का पक्ष लेते हुए कहा था बिना विकल्प के कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना का कोई अर्थ नहीं है.
उन्होंने भी यह जोड़ा था कि कोई भी यह नहीं कह सकता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली सबसे उत्तम प्रणाली है, लेकिन इस प्रणाली में सुधार किया जा सकता है जैसा कि प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में उल्लेख किया था. उनका इशारा सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की टिप्पणी की तरफ था, जिन्होंने बीते नौ नवंबर को ही प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है.