सुप्रीम कोर्ट को बताया गया- महाराष्ट्र में सांसदों-विधायकों के ख़िलाफ़ सर्वाधिक 442 मामले दर्ज

सुप्रीम कोर्ट पिछले महीने सभी उच्च न्यायालयों को सांसदों-विधायकों के ख़िलाफ़ पांच साल से अधिक समय से लंबित आपराधिक मामलों और उनके शीघ्र निपटारे के लिए उठाए गए क़दमों समेत पूरा विवरण उपलब्ध कराने को कहा था. हालांकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत सात राज्यों ने इस संबंध में जानकारी नहीं दी है.

(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट पिछले महीने सभी उच्च न्यायालयों को सांसदों-विधायकों के ख़िलाफ़ पांच साल से अधिक समय से लंबित आपराधिक मामलों और उनके शीघ्र निपटारे के लिए उठाए गए क़दमों समेत पूरा विवरण उपलब्ध कराने को कहा था. हालांकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत सात राज्यों ने इस संबंध में जानकारी नहीं दी है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को यह बताया गया कि महाराष्ट्र में सांसदों और विधायकों के खिलाफ सर्वाधिक 482 मामले दर्ज हैं. शीर्ष न्यायालय को बताया गया कि इन 482 मामलों में 169 से अधिक मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं.

महाराष्ट्र के बाद ओडिशा का स्थान है, जहां 454 मामले दर्ज हैं. इनमें से 323 मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं.

सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के तेजी से निस्तारण के लिए दायर एक याचिका में न्याय मित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने शीर्ष न्यायालय को एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी कि 25 उच्च न्यायालयों में 16 से इस तरह के मामलों की सूचना मिली है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च न्यायालयों की ओर से दी गई इस रिपोर्ट में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में 21 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. दिसंबर 2018 में इनके खिलाफ 4,122 मामले दर्ज थे, जो तीन वर्षों के दौरान दिसंबर 2021 में बढ़कर 4,984 हो गए.

हंसारिया ने कहा कि 1,899 मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं, 1,475 मामले 2 से 5 साल के बीच और 1,599 दो साल से कम समय से लंबित हैं. अक्टूबर 2018 के बाद फास्ट ट्रैक सांसद/विधायक अदालतों ने ऐसे 2,775 मामलों का निपटारा किया है.

इतना ही नहीं सात प्रमुख उच्च न्यायालयों ने संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों – उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के बारे में इससे संबंधित कोई जानकारी नहीं दी है.

ऐसे मामलों की बड़ी संख्या वाले अन्य राज्यों में केरल (384), मध्य प्रदेश (329), तमिलनाडु (260), पश्चिम बंगाल (244), कर्नाटक (221), झारखंड (198), दिल्ली (93), आंध्र प्रदेश ( 92) और पंजाब (91) शामिल हैं.

अपनी स्थिति रिपोर्ट में, सीबीआई ने बताया कि 14 मौजूदा सांसदों और 37 पूर्व सांसदों के खिलाफ 121 मामले लंबित हैं. इसी तरह एजेंसी ने 34 मौजूदा विधायकों और 78 पूर्व विधायकों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. 58 मामलों में आरोप आजीवन कारावास से दंडनीय हैं.

प्रवर्तन निदेशालय ने न्याय मित्र को सूचित किया कि 51 सांसद और पूर्व सांसद पीएमएलए मामलों का सामना कर रहे हैं, जिनमें से 28 मामलों की अभी जांच चल रही है. पीएमएलए मामलों में 71 विधायक/एमएलसी आरोपी हैं. वहीं एनआईए ने कहा कि वह ऐसे चार मामलों की जांच कर रही है, जिनमें से दो मौजूदा सांसदों के खिलाफ हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दाखिल रिपोर्ट का हवाला देते हुए हंसारिया ने कहा कि यह सूचित किया गया है कि शीघ्र निस्तारण के लिए गवाहों और आरोपियों को उसने समन जारी किया था तथा अधिकारियों को समन एवं वारंट समय पर तामील करने के लिए विशेष निर्देश दिए गए थे.

दिल्ली हाईकोर्ट के बारे में न्याय मित्र ने बताया कि सुविधा एवं आरोपियों और अन्य पक्षकारों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए सुनवाई के लिए कम अवधि की तारीख दी गई.

शीर्ष न्यायालय ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर समय-समय पर कुछ निर्देश जारी किए हैं, ताकि सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई में तेजी लाई जा सके तथा सीबीआई एवं अन्य अन्य एजेंसियों द्वारा शीघ्र जांच सुनिश्चित की जा सके.

न्याय मित्र ने दलील दी कि शीर्ष न्यायालय के सिलसिलेवार निर्देर्शों और नियमित निगरानी के बावजूद सांसदों और विधायकों के खिलाफ बड़ी संख्या में आपराधिक मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं.

मालूम हो कि बीते अक्टूबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों को सांसदों-विधायकों के खिलाफ पांच साल से अधिक समय से लंबित आपराधिक मामलों और उनके शीघ्र निपटारे के लिए उठाए गए कदमों समेत पूरा विवरण उपलब्ध कराने को कहा था.

इसने अपने 10 अगस्त, 2021 के आदेश को भी संशोधित किया था, जिसमें यह कहा गया था कि न्यायिक अधिकारियों, जो सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहे हैं, को अदालत की पूर्व मंजूरी के बिना बदला नहीं जा सकता.

पिछले साल 10 अगस्त को शीर्ष अदालत ने राज्य के अभियोजकों की शक्ति को कम कर दिया था और फैसला सुनाया था कि वे उच्च न्यायालयों की पूर्व स्वीकृति के बिना आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत सांसदों के खिलाफ मुकदमा वापस नहीं ले सकते.

26 अगस्त 2021 को राजनेताओं के खिलाफ मुकदमे वापस लेने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उचित निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं, जिसमें राज्यों द्वारा मौजूदा या पूर्व सांसदों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए उच्च न्यायालय की अनुमति अनिवार्य हो गई है और आगे किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं है.

पीठ ने कहा था कि वह बाद में इस तर्क पर विचार करेगी कि एक सांसद को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद संसद या राज्य विधानमंडल की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए या उसे जीवन भर चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)