मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया गया कि 2018 में बनाए गए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम को वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों के मद्देनज़र और अधिक सशक्त बनाने की ज़रूरत है. परिणामस्वरूप जबरन धर्मांतरण के लिए अब 10 साल क़ैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है.
देहरादून: उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने बुधवार को धर्मांतरण रोधी कानून में जबरन धर्मांतरण के दोषी के लिए सजा के प्रावधान को 10 साल किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह मंजूरी दी गई.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत 2018 में प्रदेश में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम बनाया गया था, लेकिन वर्तमान में परिवर्तित परिस्थितियों के मद्देनजर इसे और अधिक सशक्त बनाए जाने के लिए उत्तर प्रदेश की तरह इसमें संशोधन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है.
सूत्रों ने कहा कि 2018 अधिनियम में जबरन धर्मांतरण का दोषी पाए जाने पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान है. इस संशोधन को जल्द ही राज्य विधानसभा में लाया जाएगा. विधानसभा सत्र 29 नवंबर से शुरू होगा.
इसके अलावा मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड हाईकोर्ट को नैनीताल से हल्द्वानी स्थानांतरित किए जाने के प्रस्ताव को भी सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बैठक के दौरान ऐसे ही 20 से अधिक प्रस्तावों को मंजूरी दी गई.
राज्य मंत्री सुबोध उनियाल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि संशोधन के साथ ही जबरन धर्मांतरण एक संज्ञेय अपराध होगा, जिसमें 10 साल की सजा का प्रावधान होगा.
उन्होंने कहा, ‘हम उत्तर प्रदेश से भी ज्यादा सख्त कानून बना रहे हैं. उत्तराखंड हाईकोर्ट को नैनीताल से हल्द्वानी स्थानांतरित करने के प्रस्ताव पर भी सैद्धांतिक सहमति दे दी गई है.’
इस बीच राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ने धर्मांतरण विरोधी कानून को और मजबूत बनाने के लिए संशोधन का स्वागत किया है. राज्य भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने इसे लोगों की इच्छा के अनुरूप फैसला बताते हुए मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया और कहा कि यह कदम राज्य में जबरन धर्मांतरण को रोकने में मील का पत्थर साबित होगा.
गौरतलब है कि उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के नक्शेकदम पर चल रही है.
नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने ‘जबरन’ या ‘धोखाधड़ी’ से धर्म परिवर्तन के खिलाफ अध्यादेश जारी किया था. मार्च 2021 में अध्यादेश एक कानून बन गया था.
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2020 के तहत विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देकर या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. अध्यादेश के तहत सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे.
इतना ही नहीं सितंबर माह में उत्तराखंड सरकार ने राज्य में मदरसों का सर्वे कराने की बात कही थी, इससे कुछ ही दिनों पहले उत्तर प्रदेश ने इसी तरह के सर्वे की घोषणा की थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)