केंद्र द्वारा राज्य में 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी के बाद अडानी समूह ने नवंबर 2020 में गोंदलपुरा कोयला ब्लॉक का नियंत्रण लिया था. स्थानीयों का कहना है कि परियोजना में 513.18 हेक्टेयर भूमि का खनन प्रस्तावित है, जिसमें से 200 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि है, बाकी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा उपजाऊ कृषि भूमि है.
नई दिल्ली: परियोजना की घोषणा के दो साल बाद झारखंड के हजारीबाग जिले के पांच गांवों के निवासी अपनी मूल मांग पर अड़े हुए हैं कि गोंदलपुरा में कोयला खनन नहीं हो सकता है.
अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा खनन कार्यों से ग्रामीणों की भूमि, स्वास्थ्य और आजीविका बचाने के आंदोलन में गोंदलपुरा, फूलंग, गाली, हाहे और बलोदर गांव शामिल हैं.
केंद्र सरकार द्वारा राज्य में 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी के बाद अडानी समूह ने नवंबर 2020 में गोंदलपुरा कोयला ब्लॉक का नियंत्रण ले लिया था, जिसमें अनुमानित तौर पर 17.6 करोड़ टन कोयले का भंडार है.
रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय लोगों का कहना है कि परियोजना में 513.18 हेक्टेयर भूमि का खनन प्रस्तावित है, जिसमें से 200 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि है. यह क्षेत्र मांझी आदिवासी समूह और घांजू, घुइयां व तुरी जैसे समुदायों का घर है जो अनुसूचित जाति में शामिल हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि दांव पर लगी ज़मीन भी प्रमुख कृषि भूमि है जो साल भर उपजाऊ रहती है और चावल, गन्ना व गेहूं की उपज देती है.
बड़कागांव में पहले से ही एक कोयला खदान संचालित है, जिसे ग्रामीण लंबे समय से कृषि क्षेत्र में बदलने की मांग कर रहे हैं.
ब्लॉक आवंटित होने के बाद से ही परियोजना का विरोध शुरू हो गया था. सितंबर 2021 में आयोजित एक बैठक में, गोंदलपुरा में एक ग्राम सभा ने संकल्प लिया कि क्षेत्र में अडानी के किसी भी अधिकारी को आने नहीं दिया जाएगा. ग्राम सभा ग्राम प्रशासन की एक इकाई होती है.
इस साल अक्टूबर के दौरान ग्रामीणों ने ग्राम सभाओं से समर्थन मांगने के लिए कई विरोध प्रदर्शन किए और कई जन सुनवाई आयोजित कीं.
इस बीच, ग्रामीणों ने अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक जन सुनवाई करने के प्रयासों का शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराया.
ऐसी ही एक सुनवाई 10 अक्टूबर को बालोधर में रोक दी गई थी. दो दिन बाद, गाली में एक सुनवाई रोक दी गई और 18 अक्टूबर को गोंडलपुरा में एक सुनवाई में ग्राम पंचायत कार्यालय के बाहर महिलाओं के नेतृत्व में आंदोलन देखा गया.
जमीनी कार्यकर्ता विक्रम कुमार महतो ने द वायर को बताया, ‘परियोजना का विरोध करने के प्रयास में स्थानीय लोगों द्वारा तीन ग्राम सभाओं की जन सुनवाई को रोक दिया. विरोध शांतिपूर्ण थे और गांधीवादी आदर्शों का पालन करते थे. कंपनी के अधिकारियों को वापस लौटना पड़ा.’
महतो कहते हैं कि महिलाएं आंदोलन की नींव हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा आंदोलन जारी है, हर हफ्ते हर गांव में हम खुद को संगठित कर रहे हैं. हम लोगों को लामबंद करने के लिए बैठकों का आयोजन कर रहे हैं.’
एक्टिविस्ट इंद्रदेव राम शंकर भुइयां ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने महसूस किया कि अडानी समूह द्वारा सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करने के लिए किए गए प्रयासों को विफल करने की आवश्यकता है क्योंकि फर्म कथित रूप से लोगों को अपनी कृषि भूमि देने के लिए ‘लुभाने’ का प्रयास कर रही है.
उन्होंने कहा कि जुलाई में भी इस तरह की सुनवाई करने के प्रयासों का विरोध किया गया था.
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम-2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार प्रभावित लोगों के विचारों को रिकॉर्ड करने के लिए जन सुनवाई आयोजित करने को अनिवार्य बनाता है. सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी ग्राम सभा से परामर्श किया जाना चाहिए.
गोंदलपुरा क्षेत्र में प्रतिरोध का इतिहास रहा है. 2006 में इसी कोयला ब्लॉक को तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित किया गया था, जिसके कारण पूरे क्षेत्र में विरोध हुआ. इस संबंध में द वायर ने एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी.
2010 में तत्कालीन जयराम रमेश के नेतृत्व वाले पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि गोंदलपुरा कोयला ब्लॉक, जो उत्तरी करनपुरा खनन ब्लॉक का हिस्सा है, खनन गतिविधियों के लिए ‘नो-गो’ जोन (प्रतिबंधित क्षेत्र) में आता है.
(सुमेधा पाल और रोशन होरो से इनपुट के साथ)
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