सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस. ओका ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि आधार क़ानून में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि महत्वपूर्ण दस्तावेज़ से वंचित लोगों को राहत दी जा सके. शिक्षित वर्ग के बीच क़ानूनी साक्षरता की कमी पर खेद व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि लोग चुपचाप अन्याय सहते हैं, क्योंकि वे समाधान का लाभ नहीं उठा पाते हैं.
पुणे: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस. ओका ने शनिवार को कहा कि आधार कानून में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि महत्वपूर्ण दस्तावेज से वंचित लोगों को राहत दी जा सके और इसे ‘नागरिक केंद्रित’ बनाया जा सके.
वह दूरसंचार विवाद निपटान अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) द्वारा आयोजित ‘दूरसंचार, प्रसारण और साइबर क्षेत्र में विवाद निपटारा प्रणाली, दृष्टिकोण और आगे की राह’ विषय पर एक संगोष्ठी में बोल रहे थे.
जस्टिस ओका ने शिक्षित वर्ग के बीच ‘कानूनी साक्षरता’ की कमी पर खेद व्यक्त किया और कहा कि लोग ‘चुपचाप अन्याय सहते हैं’, क्योंकि वे समस्याओं के समाधान का लाभ नहीं उठा पाते हैं.
जस्टिस ओका ने कहा, ‘आधार अधिनियम, 2016 नागरिकों द्वारा प्राधिकरण को प्रदान की गई जानकारी की गोपनीयता को सुरक्षित करने का प्रावधान करता है. जब कोई आधार कार्ड के लिए आवेदन करता है, तो उसे विभिन्न सूचनाओं और डेटा की आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है. इसलिए अधिनियम सूचना की गोपनीयता को सुरक्षित रखने का प्रावधान करता है.’
जस्टिस ओका ने यह भी कहा कि आईटी अधिनियम के कुछ प्रावधान हालांकि महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी उपेक्षा की जा रही है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस ओका ने नागरिकों से जुड़े गोपनीय डेटा के लीक होने पर चिंता व्यक्त की है और उनसे दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण से संपर्क कर अपनी गोपनीयता संबंधी चिंताओं से संबंधित कानूनी उपाय तलाशने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा, ‘जब कोई प्राधिकरण या कोई व्यक्ति विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो आधार अधिनियम की धारा 33ए में जुर्माने के बजाय दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है. यदि आपकी गोपनीयता का उल्लंघन किया गया है तो आपको दूरसंचार न्यायाधिकरण से संपर्क करना चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘डेटा साझा करने के प्रावधानों के उल्लंघन सहित गोपनीयता के उल्लंघन के संबंध में कई शिकायतें हैं, लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी अधिनियम के तहत इसके उपाय तक नहीं पहुंच रहा है. मुझे लगता है कि प्राधिकरण की शक्तियां बहुत सीमित हैं.’
न्यायाधीश ओका ने अपनी यात्राओं का एक उदाहरण देते हुए कहा कि जब उन्होंने चंद्रपुर (महाराष्ट्र) के नक्सल बहुल जिले का दौरा किया, तो कई नागरिक उनके पास आए और कहा कि दस्तावेजों की कमी के कारण वे आधार कार्ड से वंचित हैं.
उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि इस कार्ड से वंचित लोगों को राहत प्रदान किया जाना चाहिए. आधार अधिनियम में संशोधन अधिक नागरिक केंद्रित होना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘साइबर अपराध या साइबर धोखाधड़ी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां हमें नागरिकों को शिक्षित करने की आवश्यकता है. मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद मैंने मुंबई में जो सीखा उससे सीख लेते हुए अपनी न्यायिक अकादमी को साइबर कानूनों पर जिला स्तर पर कार्यशाला आयोजित करने के लिए कहा.’
जस्टिस ओका ने कहा, ‘मैंने इस कार्यशाला को न्यायिक अधिकारियों तक सीमित नहीं करने का फैसला किया, बल्कि इसमें शामिल होने के लिए बार के सदस्यों, अभियोजकों, पुलिस अधिकारियों, सरकारी अधिकारियों और बैंक अधिकारियों को आमंत्रित किया. नागरिकों को पता होना चाहिए कि उनकी शिकायतों के निवारण के लिए आईटी अधिनियम के तहत कौन सी मशीनरी उपलब्ध है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)