राज्यपाल राष्ट्रीय सहमति पर कुलाधिपति होते हैं, राज्य सरकार की इच्छा से नहीं: आरिफ़ मोहम्मद ख़ान

केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने कहा कि 1956 में केरल के अस्तित्व में आने से पहले भी राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति थे. यह एक ऐसी चीज़ है, जिस पर एक राष्ट्रीय आम सहमति बनी और एक राष्ट्रीय परिपाटी विकसित हुई. ताकि विश्वविद्यालयों में कोई शासकीय हस्तक्षेप न हो और उनकी स्वायत्तता सुरक्षित रहे. 

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान. (फोटो: पीटीआई)

केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने कहा कि 1956 में केरल के अस्तित्व में आने से पहले भी राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति थे. यह एक ऐसी चीज़ है, जिस पर एक राष्ट्रीय आम सहमति बनी और एक राष्ट्रीय परिपाटी विकसित हुई. ताकि विश्वविद्यालयों में कोई शासकीय हस्तक्षेप न हो और उनकी स्वायत्तता सुरक्षित रहे.

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान. (फोटो: पीटीआई)

कोच्चि: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सोमवार को कहा कि राज्यपाल राष्ट्रीय परिपाटी और राष्ट्रीय आम सहमति के माध्यम से अपने पद के आधार पर कुलाधिपति का पद धारण करते हैं, न कि किसी राज्य सरकार की इच्छा के कारण.

राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद की अनुमति नहीं दी जा सकती है और अगर मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को उनके कार्यालय में क्या हो रहा है, इसके बारे में पता नहीं है, तो वह अक्षम हैं.

विजयन पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके कार्यालय का कोई व्यक्ति कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति को एक रिश्तेदार को नियुक्त करने का निर्देश दे रहा है, तो यह दिखाता है कि वह कितने अक्षम हैं.

राज्यपाल ने दिल्ली से लौटने के एक दिन बाद कहा, ‘अगर उन्हें (मुख्यमंत्री) इसके बारे में पता था, तो वह भी उतने ही दोषी हैं.’

उन्होंने इस सवाल को भी खारिज कर दिया कि विश्वविद्यालयों में ‘शुद्धिकरण कार्य’ चल रहा है. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, ‘शुद्धिकरण कार्य नहीं है. विश्वविद्यालयों के पुराने गौरव को बहाल करना होगा. उन्हें इस ‘भाई-भतीजावाद’ से मुक्त होना होगा.’

उन्होंने कहा कि कुलाधिपति के रूप में उनका कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि विश्वविद्यालयों में सरकार का कोई हस्तक्षेप न हो और यही कारण है कि राज्यपाल अपने पद के आधार पर कुलाधिपति का पद धारण करते हैं.

उन्होंने तिरुवनंतपुरम रवानगी से पहले एर्णाकुलम में सोमवार को संवाददाताओं से कहा, ‘1956 में केरल के अस्तित्व में आने से पहले भी राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति थे. यह एक ऐसी चीज है, जिस पर एक राष्ट्रीय आम सहमति बनी और एक राष्ट्रीय परिपाटी विकसित हुई. क्यों? ताकि विश्वविद्यालयों में कोई शासकीय हस्तक्षेप न हो और उनकी स्वायत्तता सुरक्षित रहे.’

उन्होंने कहा, ‘वे एक राष्ट्रीय परिपाटी या राष्ट्रीय आम सहमति को नहीं तोड़ सकते. यह उनकी शक्तियों से परे है. उन्हें कोशिश करने दें.’

वहीं, केरल की वामपंथी सरकार का दावा है कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा एक कानून के माध्यम से कुलाधिपति का पद दिया गया था और इसलिए इसे वापस लिया जा सकता है.

केरल सरकार द्वारा उन्हें कुलाधिपति पद से हटाने के लिए अध्यादेश और उस दिशा में अन्य कदमों के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में राज्यपाल ने कहा कि यह राज्य सरकार की ओर से हाल के अदालती आदेशों से ध्यान भटकाने और उसके परिणामस्वरूप उन्हें हुई शर्मिंदगी को छिपाने का प्रयास है.

उन्होंने कहा, ‘वे मूल रूप से अब क्या कर रहे हैं? वे न्यायिक फैसलों से परेशान हैं और वे राज्यपाल की ओर ध्यान भटकाना चाहते हैं. ऐसा नहीं होगा. अगर वे कानून तोड़ते हैं, तो राज्यपाल समीक्षा करने वाला पहला प्राधिकारी होता है, लेकिन यह अंतत: अदालतों में जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘इन चीजों के बारे में चिंता न करें. वे केवल शर्मिंदगी को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं.’

राज्यपाल ने तिरुवनंतपुरम निगम में हुईं कुछ नियुक्तियों से जुड़े विवाद का हवाला देते हुए कहा कि ‘अब निगम से लेकर विश्वविद्यालयों तक सिर्फ कैडर (वामपंथी कैडर) के लोग नियुक्त होंगे.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार का निर्वाचन जनता करती है, उसे काम जनता के लिए करना चाहिए, कैडर के लिए नहीं. यह सरकार ऐसी बन गई है, जो सिर्फ कैडर के लिए काम करती है.’

यह पूछने पर कि केरल हाईकोर्ट द्वारा केरल मत्स्य पालन और महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति रद्द किए जाने और प्रिया वर्गीज के पास कन्नूर विश्वविद्यालय में मलयालम भाषा का एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त होने के लिए शिक्षण का अनुभव नहीं है, कहे जाने से क्या उन्हें लगता है कि उनके रुख की पुष्टि हुई है तो इस पर खान ने कहा, ‘यह व्यक्तिगत लड़ाई नहीं थी.’

उन्होंने कहा, ‘मेरी बात सही साबित हुई मैं इसे इस रूप में नहीं देख रहा हूं. यह किसी के साथ निजी लड़ाई नहीं है. यह सुनिश्चित करना मेरा कर्तव्य है कि विश्वविद्यालयों में पक्षपात और भाई-भतीजावाद के नाम पर कम योग्यता वाले या अयोग्य लोगों की नियुक्तियां न हों.’

उन्होंने कहा, ‘सिर्फ उनकी नियुक्ति होगी जो योग्य हैं और यूजीसी द्वारा तय मानदंडों पर खरा उतरते हैं. इसलिए, ईमनदारी से मैं इस तरीके से नहीं देख रहा कि मेरी बात सही साबित हुई. मैं महत्वपूर्ण नहीं हूं. व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि आम जनता महसूस करे कि कानून के समक्ष सभी बराबर हैं और सबको कानून का समान संरक्षण हासिल है.’

प्रिया वर्गीज मुख्यमंत्री विजयन के निजी सचिव केके राकेश की पत्नी हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, जिसे पहले केरल टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता था, की अंतरिम वाइस चांसलर सिज़ा थॉमस को अपना काम करने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा है, इस पर राज्यपाल ने कहा कि वह इस पर गौर करेंगे.

उन्होंने कहा, ‘अगर यह समर्थन का सवाल है, तो आप इसे प्रदान करने के लिए किसी और से कह सकते हैं. वह अलग बात है. यदि उसके आधिकारिक कर्तव्यों में बाधा उत्पन्न की जा रही है, तो यह स्पष्ट रूप से एक दंडनीय अपराध है. तब हमें इसका ध्यान रखना होगा.’

अपने निजी कर्मचारियों की नियुक्तियों के बारे में पूछने पर खान ने कहा, ‘व्यक्तिगत कर्मचारी पूरी तरह से नियुक्ति करने वाले व्यक्ति की पसंद होते है. मैंने नियुक्त किया है. एक स्वीकृत शक्ति है. बताओ कहां है कानून का उल्लंघन? मेरा निजी स्टाफ पूरी तरह से अलग चीज है.’

उनकी यह टिप्पणी दिसंबर में आने वाले विधानसभा सत्र में राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाने और उनकी जगह प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को नियुक्त करने के लिए केरल सरकार द्वारा कथित तौर पर एक कानून बनाने की तैयारी के मद्देनजर आई है.

केरल कैबिनेट ने नौ नवंबर को राज्य में कुलपतियों की नियुक्ति सहित विश्वविद्यालयों के कामकाज को लेकर राज्यपाल के साथ वाम सरकार की जारी खींचतान के बीच अध्यादेश लाने का फैसला किया था.

अध्यादेश का उद्देश्य प्रख्यात शिक्षाविदों को राज्यपाल के स्थान पर राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करना है.

पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली सरकार के फैसले का कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों ने विरोध किया है, क्योंकि दोनों दलों ने आरोप लगाया है कि इस कदम का उद्देश्य केरल में विश्वविद्यालयों को ‘कम्युनिस्ट केंद्रों’ में बदलना है.

मालूम हो कि बीते कुछ समय से राज्य के विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण को लेकर राज्यपाल की राज्य की वाम मोर्चा सरकार के साथ चल रही खींचतान चल रही है.

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, जो राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के वास्तविक कुलाधिपति हैं, ने बीते 23 अक्टूबर को नौ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (वीसी) को अपना इस्तीफा देने के लिए कहा था.

हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने बीते 24 अक्टूबर को नौ कुलपतियों में से आठ की याचिका पर सुनवाई की और फैसला सुनाया था कि वे अपने पदों पर बने रह सकते हैं. अदालत ने कहा कि कुलपतियों को इस्तीफा देने का निर्देश देने का कोई महत्व नहीं है.

इसके बाद, दो अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को भी राज्यपाल की ओर से नोटिस भेजे गए हैं.

बीते नौ नवंबर को केरल हाईकोर्ट ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को अदालत में मामले की सुनवाई होने तक उन कुलपतियों (वीसी) के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था, जिन्हें उन्होंने कारण बताओ नोटिस भेजा था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)