लद्दाख: स्थानीयों को सरकारी नौकरी के लिए अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले की स्थिति बहाल

केंद्र सरकार लद्दाख में सरकारी नौकरियों को लेकर 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर रही है. गृह मंत्रालय ने 1 नवंबर 2022 को जारी एक अधिसूचना में उपराज्यपाल राधा कृष्ण माथुर को गजेटेड या समूह 'ए' और समूह 'बी' के सार्वजनिक सेवा पदों पर भर्ती के नियम बनाने का अधिकार दिया है.

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केंद्र सरकार लद्दाख में सरकारी नौकरियों को लेकर 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर रही है. गृह मंत्रालय ने 1 नवंबर 2022 को जारी एक अधिसूचना में उपराज्यपाल राधा कृष्ण माथुर को गजेटेड या समूह ‘ए’ और समूह ‘बी’ के सार्वजनिक सेवा पदों पर भर्ती के नियम बनाने का अधिकार दिया है.

लद्दाख में लेह अपेक्स बॉडी के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन की एक तस्वीर. (फोटो साभार: Twitter/SajjadKargili_)

श्रीनगर: मूल निवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में निरंतर आंदोलन का सामना कर रही सरकार स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों पर 5 अगस्त 2019 से पहले वाली स्थिति की पूर्ण बहाली की ओर बढ़ रही है.

गैर-राजपत्रित (नॉन-गजेटेड) नौकरियों में लद्दाख के मूल निवासियों को विशेष अधिकार देने के लगभग 14 महीने बाद प्रशासन ने अब इसी तरह से राजपत्रित (गजेटेड) नौकरियों को आरक्षित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 1 नवंबर 2022 को एक अधिसूचना जारी करके उपराज्यपाल (एलजी) राधा कृष्ण माथुर को राजपत्रित या समूह ‘ए’ और समूह ‘बी’ के सार्वजनिक सेवा पदों पर भर्ती के नियम बनाने का अधिकार दिया है.

गृह मंत्रालय की अधिसूचना माथुर को ऐसी सेवाओं और पदों पर नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता के साथ-साथ नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों जैसे- प्रोबेशन, नौकरी कंफर्म करने, वरिष्ठता और पदोन्नति आदि के लिए नियम तैयार करने की शक्तियां भी प्रदान करती है.

यह संकेत है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार 5 अगस्त, 2019 से पहले लद्दाख में सरकारी रोज़गार की स्थिति में वापस आ रही है. गौरतलब है कि इस तारीख को संसद ने जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को हटा दिया था, जो जम्मू कश्मीर को विशेष संवैधानिक दर्जा प्रदान करते थे.

अधिसूचना के बाद उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने 14 नवंबर को विभिन्न निभागों में राजपत्रित पदों के लिए मसौदा भर्ती नियम भेजने शुरू किए हैं. अब तक, मसौदा भर्ती नियम गैर-स्थानीय लोगों को इन पदों पर नियुक्त किए जाने से रोकते हैं और इन पदों पर आवेदन करने के लिए ‘निवासी प्रमाण पत्र’ होना आवश्यक है. यह प्रमाण पत्र एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख निवासी प्रमाणपत्र आदेश (प्रक्रिया), 2021 के अनुसार जारी किया जाना चाहिए.

2021 का आदेश लद्दाख में रहने वाले ‘स्थायी निवासी प्रमाण पत्र’ रखने वाले सभी लोगों को निवासी प्रमाण पत्र प्राप्त करने का पात्र बनाता है. स्थायी निवासी प्रमाण पत्र, जिसकी उत्पत्ति 1927 और 1931 में डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह द्वारा जारी अधिसूचनाओं में निहित है, लद्दाख के ‘निवासी’ को परिभाषित करने का एकमात्र मानदंड बन गया है.

पूर्व मंत्री और लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के सदस्य चेरिंग दोरजी ने राजपत्रित नौकरियों को मूल निवासियों के लिए आरक्षित करने के प्रस्ताव का स्वागत किया, लेकिन साथ ही कहा कि जब तक केंद्र सरकार द्वारा उनकी अन्य मांगों को पूरा नहीं किया जाता है, वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे.

उन्होंने कहा, ‘राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची की तर्ज पर संवैधानिक सुरक्षा उपायों और संसद में अतिरिक्त प्रतिनिधित्व जैसी हमारी मांगों से पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है.’

गौरतलब है कि बीते 2 नवंबर को लद्दाख और करगिल में हजारों लोगों ने इन मांगों के समर्थन में प्रदर्शन किया था, जिसका आह्वान एलएबी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस ने किया था. इन संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा उनकी मांगें न माने जाने पर 2023 और 2024 में भी आंदोलन चलाने की धमकी दी थी.

अपनी ऐतिहासिक शत्रुता एवं प्रतिद्वंदिता को पीछे छोड़ते हुए, बौद्ध-बहुल लेह जिले और मुस्लिम-बहुल करगिल जिले ने राज्य के दर्जे और नौकरियों व जमीन में स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए 5 अगस्त 2019 के बाद हाथ मिला लिए हैं.

करगिल जिला हमेशा से जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे के पक्ष में रहा है और पूर्ववर्ती राज्य का हिस्सा बने रहना चाहता था, जबकि केंद्र शासित प्रदेश वाली स्थिति का मजबूती से समर्थन करता रहा है.

केंद्र सरकार के 5 अगस्त 2019 के कदम के बाद, लेह जिले में जश्न मनाया गया लेकिन करगिल में इसे जम्मू कश्मीर से अलग किए जाने के कदम के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध देखा गया था.

जम्मू कश्मीर में उठ सकते हैं सवाल

लद्दाख में स्थानीय लोगों के लिए नौकरी बहाली के कदम से जम्मू कश्मीर में भी ऐसी मांग उठने की संभावना है, जहां कोई भी गैर-मूल निवासी जो 15 वर्षों से तत्कालीन राज्य में रह रहा है, वर्तमान में सरकारी रोजगार के लिए पात्र होता है.

जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम 2010 में गृह मंत्रालय के 2020 के संशोधन के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 15 साल से रह रहा है या सात सालों से पढ़ाई कर रहा है और केंद्रशासित प्रदेश में स्थित किसी शैक्षणिक संस्थान में कक्षा 10 या 12 की परीक्षा दी है, सरकारी नौकरी का पात्र होगा.

भाजपा को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दल जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और भूमि सुरक्षा की मांग कर रहे हैं.

5 अगस्त से पहले केवल स्थायी निवासी ही तत्कालीन राज्य में नौकरी या अचल संपत्ति खरीदने के पात्र थे, इसमें लद्दाख भी शामिल था.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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