गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से ‘कारसेवकों’ को लेकर लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा देने के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी. इसके कारण राज्य में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसमें 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने वर्ष 2002 के गोधरा ट्रेन नरसंहार मामले के कुछ दोषियों की जमानत याचिका का यह कहते हुए विरोध किया है कि वे केवल पत्थरबाज नहीं थे और उनके कृत्य ने जल रहीं बोगियों से लोगों को भागने से रोका.
गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से ‘कारसेवकों’ को लेकर लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा देने के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी. इसके कारण राज्य में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसमें 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई की.
शर्ष अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह दोषियों की व्यक्तिगत भूमिका को स्पष्ट करे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पथराव करने के आरोपियों की जमानत याचिका पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि वे पहले ही 17-18 साल जेल में बिता चुके हैं. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर तक के लिए टाल दी.
राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इन दोषियों ने ट्रेन पर पथराव किया था, जिसने लोगों को जल रही बोगी से भागने से रोका.
उन्होंने पीठ से कहा, ‘यह केवल पथराव का मामला नहीं है.’
मेहता ने पीठ को बताया कि गुजरात हाईकोर्ट ने अपने अक्टूबर 2017 के फैसले में आरोपियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था. इसके खिलाफ शीर्ष अदालत में दोषियों द्वारा दायर अपील को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है.
मेहता ने शीर्ष अदालत से कहा कि वह इन दोषियों की व्यक्तिगत भूमिका की समीक्षा करेंगे और इससे न्यायालय को अवगत कराएंगे.
हाईकोर्ट ने अक्टूबर, 2017 के अपने फैसले में गोधरा ट्रेन अग्निकांड के मामले में 11 दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा को कम करके उम्रकैद में तब्दील कर दिया था, लेकिन इसने अन्य 20 दोषियों को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था.
सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर 2022 को एक दोषी को दी गई अग्रिम जमानत की अवधि को बढ़ाकर 31 मार्च, 2023 तक कर दिया था. 13 मई 2022 को शीर्ष अदालत ने उसे छह माह की अग्रिम जमानत इस आधार दी थी कि उसकी पत्नी कैंसर से जूझ रही है और उसकी बेटियां विशेष रूप से सक्षम (Differently Abled) हैं.
अपने 11 नवंबर 2022 के आदेश में पीठ ने कहा था कि मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए, ‘हम उन्हीं नियमों और शर्तों पर अंतरिम जमानत की अवधि 31 मार्च, 2023 तक बढ़ाते हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)