जाति आधारित रैलियों पर रोक लगाने को चार दलों और चुनाव आयुक्‍त को नया नोटिस जारी

11 जुलाई 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी. पीठ ने इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए चार प्रमुख दलों- भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा को नोटिस जारी किया था, लेकिन नौ साल बाद भी न तो किसी दल ने और न ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने अदालत में कोई जवाब दाख़िल किया है.

भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा के चिह्न. (फोटो साभार फेसबुक/ट्विटर)

11 जुलाई 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी. पीठ ने इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए चार प्रमुख दलों- भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा को नोटिस जारी किया था, लेकिन नौ साल बाद भी न तो किसी दल ने और न ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने अदालत में कोई जवाब दाख़िल किया है.

भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा के चिह्न. (फोटो साभार फेसबुक/ट्विटर)

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जाति आधारित रैलियों पर सदा के लिए रोक लगाने की मांग पर चार प्रमुख राजनीतिक दलों- भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को ताजा नोटिस जारी किया है .

इसके साथ ही अदालत ने मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त को भी नोटिस देकर जवाब मांगा है कि ऐसी रैलियों पर रोक लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं.

पीठ ने नोटिस में जवाब मांगा है कि राज्य में जाति आधारित रैलियों पर ‘हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध’ क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए और अगर ऐसा किया जाता है, तो चुनाव आयोग को उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए.

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 15 दिसंबर तय की है.

हाईकोर्ट ने 2013 में ही अंतरिम आदेश जारी करते हुए जाति आधारित रैलियों पर अंतरिम रोक लगा दी थी.

हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश राजेश बिंदल और जस्टिस जसप्रीत सिंह की पीठ ने स्थानीय अधिवक्‍ता मोतीलाल यादव द्वारा वर्ष 2013 में दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया.

याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर रोक लगाने की मांग की थी. 11 जुलाई 2013 को मामले की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी.

पीठ ने मामले में अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए यहां के प्रमुख राजनीतिक दलों- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी नोटिस जारी किया था. नौ साल बाद भी किसी राजनीतिक दल ने अदालत में अपना जवाब पेश नहीं किया और न ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने कोई जवाब दिया.

इस पर चिंता जताते हुए पीठ ने राजनीतिक दलों और मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त को 15 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए ताजा नोटिस जारी किया है.

अदालत ने 2013 में पारित अपने आदेश में कहा था कि जाति प्रथा समाज को विभाजित करता है और इससे भेदभाव उत्पन्न होता है.

अदालत ने कहा था कि जाति आधारित रैलियों की अनुमति देना संविधान की भावना, मौलिक अधिकारों व दायित्वों का उल्लंघन है.

याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है कि बहुसंख्यक समूहों के वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण देश में जातीय अल्पसंख्यकों को अपने आप में दूसरे दर्जे के नागरिकों की श्रेणी में ला दिया गया है.

याचिकाकर्ता ने कहा, ‘स्पष्ट संवैधानिक प्रावधानों और उसमें निहित मौलिक अधिकारों के बावजूद, वे वोट की राजनीति के नंबर गेम में नुकसानदेह स्थिति में रखे जाने के कारण मोहभंग, निराश और विश्वासघात महसूस कर रहे हैं.’

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, 2013 में पारित अपने आदेश में जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की पीठ ने कहा था, ‘जाति-आधारित रैलियां आयोजित करने की अप्रतिबंधित स्वतंत्रता, जो पूरी तरह से नापसंद, आधुनिक पीढ़ी की समझ से परे और जनहित के विपरीत भी है, को उचित नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि यह कानून के शासन को नकारने और नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित करने का कार्य होगा.’

पीठ ने तब यह भी कहा था, ‘राजनीतिकरण के माध्यम से जाति व्यवस्था में राजनीतिक आधार प्राप्त करने के अपने प्रयास में, ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को गंभीर रूप से बिगाड़ दिया है. इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विखंडन हुआ है.’

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि बहुसंख्यक समूहों के वोटों को लुभाने के लिए डिजाइन की गई राजनीतिक दलों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण देश में जातीय अल्पसंख्यक अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी के नागरिकों की श्रेणी में सीमित कर दिए गए.

याचिकाकर्ता ने आगे कहा था, ‘स्पष्ट संवैधानिक प्रावधानों और उसमें निहित मौलिक अधिकारों के बावजूद, वे वोट की राजनीति के नंबर गेम में नुकसानदेह स्थिति में रखे जाने के कारण मोहभंग, निराश और विश्वासघात महसूस कर रहे हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)