एक अमेरिकी शोध संस्थान ने 162 देशों में सामूहिक हत्याएं होने की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में भारत को आठवें पायदान पर रखते हुए ऐसे कई उदाहरणों पर प्रकाश डाला गया है कि किस तरह केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभाव किया है.
नई दिल्ली: एक अमेरिकी शोध संस्थान के मुताबिक, भारत उन देशों में आठवें स्थान पर है, जहां वर्ष 2022 और 2023 में सामूहिक हत्याएं होने का सबसे अधिक जोखिम है. पिछले वर्ष के मुकाबले भारत की रैंक में गिरावट आई है, पहले वह दूसरे स्थान पर था.
अर्ली वार्निंग प्रोजेक्ट, जो सामूहिक हिंसा के जोखिम वाले देशों की पहचान करता है, ने नवंबर में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘2022-2023 में भारत में नए सिरे से सामूहिक हत्याओं की शुरुआत की संभावना 7.4 प्रतिशत – या लगभग 14 में से एक है.’
यह परियोजना संयुक्त राज्य होलोकॉस्ट मेमोरियल संग्रहालय के Simon-Skjodt Center for the Prevention of Genocide और डार्टमाउथ कॉलेज के डिकी सेंटर फॉर इंटरनेशनल अंडरस्टैंडिंग की एक संयुक्त पहल है.
रिपोर्ट का उद्देश्य बताया गया है, ‘यह आकलन इस जोखिम – संभावना – की पहचान करता है कि सामूहिक हत्याएं हो सकती हैं.’
रिपोर्ट के अनुसार, सामूहिक हत्या उसे माना गया है, जहां एक विशेष समूह का सदस्य होने के कारण 1,000 या अधिक नागरिकों को, एक साल या उससे कम अवधि में, सशस्त्र बलों (सरकारी या गैर-सरकारी) द्वारा जान-बूझकर मार दिया जाए.
2022-23 की रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी 162 देशों में पाकिस्तान इस साल सूची में सबसे ऊपर है, यमन दूसरे स्थान पर है, म्यांमार तीसरे, इथोपिया पांचवे, नाइजीरिया छठे और अफगानिस्तान सातवें स्थान पर है.
इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान में 2022 या 2023 में सामूहिक हत्या के छह अवसरों में से एक होने का अनुमान है.
भारत का प्रदर्शन सूडान (9वें), सोमालिया (10वें), सीरिया (11वें), इराक (12वें) और जिम्बाब्वे (14वें) से भी बदतर है. 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत बीते पांचों सालों में उच्च जोखिम वाले शीर्ष 15 देशों में दूसरे स्थान पर था.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत की रैंक में दूसरे से आठवें स्थान का बदलाव के लिए पुरुषों के लिए घूमने की स्वतंत्रता (जो कि विश्लेषण के लिए इस्तेमाल कारकों {Variables} में से एक था) में सुधार को सबसे अधिक श्रेय दिया जा सकता है.’
अगर यह कारक इस वर्ष भी समान रहता, तो जोखिम में 11 फीसदी की वृद्धि के साथ भारत इस वर्ष के आकलन में पहले स्थान पर होता.
विश्लेषण के लिए उपयोग किए जाने वाले अन्य कारकों, या ‘जोखिम कारक’ में देशों की बुनियादी विशेषताएं (उदाहरण के लिए, भौगोलिक क्षेत्र, जनसंख्या); सामाजिक आर्थिक मापदंड (प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में परिवर्तन); शासन के मापदंड (राजनीतिक उम्मीदवारों और दलों पर प्रतिबंध); मानव अधिकारों के स्तर (आंदोलन की स्वतंत्रता) और हिंसक संघर्ष के रिकॉर्ड (युद्ध संबंधी मौतें, चल रही सामूहिक हत्याएं) शामिल हैं.
देश में नफ़रती भाषणों (हेट स्पीच) की लंबी सूची
रिपोर्ट में ऐसे कई उदाहरणों पर प्रकाश डाला गया है कि किस तरह केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव किया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं ने नफरती भाषण देना जारी रखा है, जिसमें दिसंबर 2021 में धार्मिक नेताओं का मुस्लिमों की सामूहिक हत्या का आह्वान भी शामिल है. हाल के महीनों में मुसलमानों को निशाना बना वाली हिंसक घटनाएं कई राज्यों में बड़े पैमाने पर देखी गई हैं, जिसमें हिंदू राष्ट्रवादी जुलूसों में मुस्लिम विरोधी नारे लगाए गए और मस्जिदों को निशाना बनाया गया. इन हिसंक उकसावों के जवाब में, स्थानीय अधिकारियों ने कई राज्यों में मुस्लिम-स्वामित्व वाली संपत्तियां बुलडोजर चलाकर गिरा दीं.’
गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों में कई हिंदुत्ववादी नेताओं, जो या तो भाजपा से जुड़े हुए हैं या पार्टी के समर्थक हैं, ने नफरती भाषण दिए हैं और मुसलमानों की सामूहिक हत्या का आह्वान किया है.
इससे भी बदतर यह है कि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने भी मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए हैं और उनके खिलाफ नाममात्र की या बिल्कुल भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
पूर्व के उदाहरण
उदाहरण के लिए 2020 के दिल्ली दंगों से पहले यति नरसिंहानंद ने मुसलमानों को राक्षस बोला था, फिर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
दंगे भड़कने से एक दिन पहले भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने नई दिल्ली के जाफराबाद में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के प्रदर्शनकारियों को जबरन हटाने का आह्वान किया था. एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में सामने आया कि दंगे मिश्रा के भाषण के बाद शुरू हुए.
इसी तरह भाजपा नेता अनुराग ठाकुर, जो अब सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं, को एक वीडियो में लोगों से कथित तौर पर यह नारा लगवाते हुए देखा गया था, ‘देश के गद्दारों को, गोली मारों सा*** को.’
2020 के दिल्ली चुनावों की जिस रैली में यह नारा लगाया गया, उसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे.
एक वीडियो में कपिल मिश्रा भी यही नारा देते देखे गए थे. द वायर को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि ‘गोली मारो’ नारे में कुछ भी गलत नहीं है.
दिसंबर 2021 में हिंदुत्ववादी नेताओं ने हरिद्वार में तीन दिन की धर्म संसद आयोजित की थी, जहां मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया गया था.
जेनोसाइड वॉच के संस्थापक अध्यक्ष ग्रेगरी स्टैंटन ने करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत में नरसंहार के शुरुआती चेतावनी संकेत पहले से ही दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि नफरत फैलाने वाले भाषणों की निंदा करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दायित्व है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बार-बार मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करते रहे हैं, जिनमें उन्हें अपराधी, माफिया और दंगाई कहा है.
वहीं, मध्य प्रदेश में रामनवमी के दौरान निकले जुलूस में तलवारें और लाठियां लहराई गईं और मस्जिद के पास से गुजरते हुए आपत्तिजनक नारे लगाए गए. मस्जिदों के अपमान की कई रिपोर्ट सामने आई हैं. सांप्रदायिक टकराव के बाद मुसलमानों के घर गिरा दिए गए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ईसाइयों और दलितों समेत अन्य अल्पसंख्यकों और उत्पीड़ित समूहों को हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.’
अक्टूबर 2021 में जारी एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के 9 महीनों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के 300 मामले दर्ज हुए थे.
रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर में लगातार जारी मानवाधिकारों के हनन की घटनाओं पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें आतंकवादियों द्वारा हिंदू नागरिकों को निशाना बनाने में बढ़ोतरी और पत्रकारों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर भारत सरकार की कार्रवाई शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारे मॉडल के अनुसार, भारत के उच्च जोखिम वाले अनुमान के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार कारक इसकी बड़ी आबादी, सामूहिक हत्या का इतिहास, इसका भौगोलिक क्षेत्र (दक्षिण और मध्य एशिया) और युद्ध संबंधित मौतों (भारत सरकार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी {माओवादी} और कश्मीर विद्रोही के बीच सशस्त्र संघर्ष) की उपस्थिति है.’
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