दिल्ली दंगा: कोर्ट ने उमर और सैफ़ी को बड़ी साज़िश के आरोपों के कारण एक मामले में बरी किया था

उत्तर-पूर्व दिल्ली में साल 2020 के दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बीते तीन दिसंबर को कार्यकर्ता उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी को आरोपमुक्त कर दिया था.

उमर खालिद और खालिद सैफी.

उत्तर-पूर्व दिल्ली में साल 2020 के दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बीते तीन दिसंबर को कार्यकर्ता उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी को आरोपमुक्त कर दिया था.

उमर खालिद और खालिद सैफी.

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में फरवरी 2020 के सांप्रदायिक दंगों से जुड़े एक मामले में उमर खालिद और खालिद सैफी को यह कहते हुए आरोपमुक्त कर दिया था कि दोनों इससे संबंधित ‘बड़ी साजिश’ मामले में पहले से ही आरोपों का सामना कर रहे हैं.

बार और बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा, ‘जहां तक आरोपी उमर खालिद और खालिद सैफी का सवाल है, मैंने पाया है कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप इस मामले यानी प्रदीप पार्किंग में हुई घटना की साजिश के बजाय ‘बड़ी साजिश’ से संबंधित हैं. दिल्ली में दंगे भड़काने की ‘बड़ी साजिश’ पहले से ही एफआईआर संख्या 59/2020 क्राइम ब्रांच थाने में विचार का विषय है, इसलिए दोनों आरोपी वर्तमान मामले में आरोपमुक्ति के हकदार हैं.’

उमर खालिद और खालिद सैफी दंगों से संबंधित गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के मामलों का सामना कर रहे हैं और जेल में हैं. दोनों दो साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं. उमर को सितंबर 2020 में और सैफी को फरवरी 2020 में गिरफ्तार किया गया था.

जिस मामले से उन्हें आरोपमुक्त किया गया था, वह एक कॉस्टेबल के बयान के आधार पर दर्ज किया गया था, जो 24 फरवरी 2020 को चांद बाग इलाके में भीड़ इकट्ठा होने पर ड्यूटी पर था.

अदालत ने सह-अभियुक्त तारिक मोइन रिजवी, जगर खान और मोहम्मद इलियास को भी आरोपमुक्त कर दिया था. आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता ताहिर हुसैन सहित 11 अन्य लोगों पर दंगा मामले में आरोप लगाया गया है, जिसमें खालिद और सैफी को आरोपमुक्त कर दिया गया है.

न्यायाधीश ने दावा किया कि हिंसा में दो अलग-अलग साजिशें चल रही थीं, इसीलिए दोनों को इस विशेष मामले से बरी किया जा रहा है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘एक बड़ी साजिश होने की अवधारणा है और इसके तहत कई छोटी साजिशें रची गई हैं. बड़े स्तर पर सांप्रदायिक दंगा भड़काने की योजना बनाना और ऐसी योजना के क्रियान्वयन के लिए कदम उठाना, बड़ी साजिश हो सकता है और इस साजिश में भाग लेने वाले लोग छोटी साजिश का हिस्सा हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं और इसके विपरीत भी हो सकते हैं.’

उनके मुताबिक, ‘बड़ी साजिश के उद्देश्य के अनुसरण में जब किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में दंगे की घटना को अंजाम देने के लिए कुछ अन्य व्यक्तियों (शायद स्थानीय व्यक्तियों सहित) को शामिल करने के लिए छोटी योजनाएं बनाई और क्रियान्वित की जाती हैं तो यह बड़ी साजिश के तहत छोटी साजिश का मामला बन जाता है.’

जज ने आगे कहा, मामले में अन्य जो आरोपित हैं, उन्होंने हिंदुओं को निशाना बनाया और शांति भंग की.

उन्होंने कहा, ‘भीड़ का हर सदस्य वहां (हुसैन के घर पर), इस उद्देश्य को प्राप्त करने यानी हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए इकट्ठा हुआ. इस तरह की तैयारियां और इस घर को एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया जाना, भीड़ के सदस्यों के आचरण के साथ देखा जाता है. यह दर्शाता है कि वे हिंदुओं को हरसंभव तरीके से नुकसान पहुंचाने के स्पष्ट उद्देश्य के साथ काम कर रहे थे.’

मालूम हो कि उत्तर-पूर्व दिल्ली में साल 2020 के दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बीते तीन दिसंबर को कार्यकर्ता उमर खालिद तथा खालिद सैफी को आरोपमुक्त कर दिया था.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने खजूरी खास पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर संख्या 101/2020 में यह आदेश सुनाया था. इस मामले में खालिद और सैफी दोनों जमानत पर हैं.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला एक कॉन्स्टेबल के बयान के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 24 फरवरी, 2020 को चांद बाग पुलिया के पास भारी भीड़ जमा हो गई थी और पथराव शुरू कर दिया था.

आरोप है कि जब कॉन्स्टेबल खुद को बचाने के लिए पास की एक पार्किंग में गया, तो भीड़ ने पार्किंग का शटर तोड़ दिया और अंदर मौजूद लोगों की पिटाई की और वाहनों में भी आग लगा दी. इसके बाद मामला 28 फरवरी, 2020 को क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया था.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के घर का इस्तेमाल कथित दंगाइयों द्वारा ‘ईंटें मारने, पथराव करने, पेट्रोल बम और एसिड बम फेंकने’ के लिए किया गया था. यह भी आरोप लगाया गया था कि उक्त सामग्री इमारत की तीसरी मंजिल और छत पर पड़ी मिली थी.

हालांकि उमर खालिद भीड़ का हिस्सा नहीं थे, लेकिन उन पर और खालिद सैफी पर मामले में आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया था.

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