नोटबंदी में लोगों को हुई कठिनाई को इस निर्णय की ग़लती नहीं माना जा सकता: केंद्र

सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के नोटबंदी के निर्णय को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इस दौरान हुई बहस में कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अगर आरबीआई ने नोटबंदी पर आपत्ति दर्ज की होती तो क्या सरकार ने उसे दरकिनार कर दिया होता.

नोटबंदी के बाद नवंबर 2016 में चेन्नई के एक बैंक के बाहर पुराने नोट बदलने के लिए पहुंचे लोग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के नोटबंदी के निर्णय को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इस दौरान हुई बहस में कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अगर आरबीआई ने नोटबंदी पर आपत्ति दर्ज की होती तो क्या सरकार ने उसे दरकिनार कर दिया होता.

नोटबंदी के बाद नवंबर 2016 में चेन्नई के एक बैंक के बाहर पुराने नोट बदलने के लिए पहुंचे लोग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नवंबर 2016 में 1,000 रुपये और 500 रुपये मूल्यवर्ग के नोटों के विमुद्रीकरण पर निर्णय लेते समय आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) में निर्धारित प्रक्रिया का विधिवत पालन किया गया था. साथ ही कहा कि नोटबंदी के फैसले से जनता को हुई कठिनाइयों को नोटबंदी की गलती नहीं ठहराया जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने केंद्रीय बैंक की ओर से जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया, ‘प्रक्रिया का पालन किया गया था. हमने हलफनामे में कहा है कि नियमों द्वारा निर्धारित कोरम पूरा किया गया था.’

पीठ में जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं, जो नोटबंदी के फैसले के खिलाफ दर्ज याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

गुप्ता ने पीठ को बताया कि प्रस्तावित कदम पर विचार-विमर्श फरवरी 2016 में शुरू हुआ था, लेकिन गोपनीयता बनाए रखने के लिए इसे टुकड़ों में अमल में लाया गया.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत, नोटबंदी की सिफारिश आरबीआई की ओर से आनी चाहिए, लेकिन 2016 में ऐसा नहीं हुआ.

धारा 26(2) कहती है कि केंद्रीय बैंक की सिफारिश पर केंद्र, भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह घोषणा कर सकता है कि अधिसूचना में निर्दिष्ट तिथि से, किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की कोई भी श्रृंखला कानूनी निविदा नहीं रहेगी.

याचिकाकर्ताओं को जवाब देते हुए गुप्ता ने कहा कि संबंधित धारा शुरुआत की प्रक्रिया के बारे में बात नहीं करती है. यह सिर्फ यह कहती है कि इसमें उल्लिखित अंतिम दो चरणों के बिना प्रक्रिया समाप्त नहीं होगी. उन्होंने याचिकाओं के तर्क को मिथ्या करार दिया.

गुप्ता ने जस्टिस बोपन्ना के इस सवाल कि क्या आरबीआई से सलाह ली गई थी, के जवाब में कहा, ‘हमने सिफारिश दी थी.’

गुप्ता ने वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम के इस आरोप का भी जवाब दिया कि केंद्र ने अब तक आरबीआई को 7 नवंबर के पत्र और 8 नवंबर के कैबिनेट के फैसले सहित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं, और साथ ही उन सभी लोगों का विवरण भी पेश नहीं किया है जो आरबीआई केंद्रीय बोर्ड की बैठक में शामिल हुए थे और यह भी कि क्या अधिनियम के तहत कोरम आवश्यक रूप में पूरा किया गया था.

चिदंबरम ने पूछा कि सरकार कोर्ट को कागजात क्यों नहीं दिखा रही है. उन्हें क्या रोक रहा है. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कुछ भी नहीं छिपाया जा रह है. अगर कोर्ट कहता है तो हम यह दिखाएंगे.

कोरम के बारे में जस्टिस गवई ने गुप्ता से कहा, ‘यह बताने में कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए कि बैठक में कौन शामिल था.’ गुप्ता ने कहा, ‘बिल्कुल कोई दिक्कत नहीं है. मैं कागज पर लिखकर दे दूंगा.’

द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस नागरत्ना ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि अगर आरबीआई ने नोटबंदी पर आपत्ति दर्ज की होती तो क्या होता? क्या सरकार ने उसे दरकिनार कर दिया होता?

इस पर वेंकटरमाणी ने कहा कि यह सवाल ही नहीं उठता. विमुद्रीकरण अधिसूचना को बाद में संसद के एक अधिनियम के साथ विलय कर दिया गया था. संसद ने सरकार से सहमति जताई थी. इसके अलावा, वेंकटरमणी ने कहा कि सरकार, एक संप्रभु शक्ति के रूप में, आरबीआई से असहमत होने का अधिकार रखती है.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार के अनुमानित उद्देश्यों में से कोई भी- काला धन, नकली मुद्रा, और आतंक वित्त पोषण- अंततः पूरा नहीं हुआ था. इस संबंध में जस्टिस गवई ने पूछा कि क्या कोई नीति अमान्य हो जाएगी यदि उसके वैध उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जाता.

इस पर वेंकटरमाणी ने कहा, ‘निश्चित तौर पर नहीं. हर मिनट सरकार लक्ष्य की ओर देखती है. पंचवर्षीय योजनाओं के अपने लक्ष्य थे. समय के साथ ये लक्ष्य पूरे हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन क्या यह लक्ष्यों को खराब बना देगा?’

वहीं, हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, एजी वेंकटरमणी ने कहा कि नोटबंदी के कारण जनता को हुई कठिनाइयों को 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के 2016 के फैसले की गलती नहीं माना जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘अधिसूचना और निर्दिष्ट बैंक नोट (दायित्वों की समाप्ति) अधिनियम, 2017 को प्रभावी करने के दौरान उत्पन्न हुई कठिनाइयों और समस्याओं को कमी नहीं कहा जा सकता है, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है.’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, वेंकटरमणी कहा कि जब सरकार जाली नोट, काला धन और आतंक के वित्त पोषण जैसी समस्याओं का समाधान कर रही थी, जिसने देश को चुनौती दी थी, तब केवल जनता के सामने आने वाली कठिनाइयों पर विचार करना उचित नहीं था.

उन्होंने दावा किया कि सरकार इन चुनौतियों को दूर करने और निर्णय के कारण होने वाले सामाजिक व आर्थिक संकट के बीच संतुलन बनाने में सफल रही.

बार एंड बेंच के अनुसार, वेंकटरमणी ने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो कठिनाई हुई, उसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाना चाहिए. कठिनाइयां अनिवार्य रूप से होंगी, मैं उन पर अपनी आंखें बंद नहीं कर रहा हूं. सरकार ने भी इस पर आंखें नहीं मूंदी थीं.’

अटार्नी जनरल ने यह भी कहा कि अगर कवायद का शुरुआती उद्देश्य हासिल नहीं हुआ तो भी पूरी नीति को अमान्य नहीं किया जा सकता है.

वेंकटरमणी ने यह भी तर्क दिया कि पुराने नोटों को जमा करने के लिए केंद्र द्वारा निर्धारित 30 दिसंबर, 2016 की अंतिम तिथि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती थी.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games