संसद सत्र: विपक्ष की मांग- विधेयकों पर बहस के लिए पर्याप्त समय हो, फिर लाएं महिला आरक्षण बिल

बुधवार से शुरु हुए संसद के 17 शीतकालीन सत्र में कुल 25 विधेयक पेश होना है. विपक्ष का कहना है कि अगर संसद की सभी कार्यवाहियों के समय को हटा दें तो 25 विधेयकों पर बहस के लिए केवल 56 घंटे बचते हैं, जो कि चिंताजनक बात है.

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संसद भवन. (फोटो: पीटीआई)

संसद के 17 शीतकालीन सत्र में कुल 25 विधेयक पेश होने हैं. विपक्ष का कहना है कि अगर संसद की सभी कार्यवाहियों के समय को हटा दें तो 25 विधेयकों पर बहस के लिए केवल 56 घंटे बचते हैं, जो चिंताजनक है. सत्र 7 दिसंबर से 29 दिसंबर तक चलेगा.

संसद भवन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस, जनता दल (यू) और शिरोमणि अकाली दल सहित कई दलों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में लोकसभा व्यापार सलाहकार समिति की बैठक में मांग की कि लंबे समय से लंबित महिला आरक्षण विधेयक को शीतकालीन सत्र में फिर से पेश किया जाना चाहिए.

वहीं, सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों ने प्रस्तावित विधेयकों पर बहस के लिए निर्धारित अल्पावधि को लेकर चिंता जताई.

महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग करता है.

इसे पहली बार पूर्व प्रधान मंत्री देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार के तहत पेश किया गया था. विधेयक के समान संस्करण बाद में 1998, 1999 और 2008 में पेश किए गए थे.

2008 में, विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया था और स्थायी समिति से होते हुए यह 2010 में उच्च सदन द्वारा पारित किया गया और लोकसभा को भेजा गया था. यह विधेयक 2014 में 15वीं लोकसभा की समाप्ति के साथ ही वैधता खो गया.

द हिंदू के मुताबिक, बैठक के दौरान तृणमूल नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने मांग की कि संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाया जाना चाहिए. जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा नेता राजीव रंजन सिंह ने इस विचार का समर्थन किया.

सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर जदयू ने एक समय राजद और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर विधेयक का विरोध किया था. लेकिन उसके बाद से पार्टी ने अपने मत में संशोधन किया और अब उसे लगता है कि इसे जल्द से जल्द पारित किया जाना चाहिए.

अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने भी इस विचार का समर्थन किया. संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि अन्य दलों का भी विचार लेना होगा. समिति के सदस्यों ने सरकार से इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने को कहा.

तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस, जनता दल (यूनाइटेड) और शिरोमणि अकाली दल ने महिला आरक्षण विधेयक पर आम सहमति बनाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है.

बंदोपाध्याय ने द हिंदू से कहा, ‘हमारी नेता ममता बनर्जी विधेयक की कट्टर समर्थक हैं. वह वर्तमान में देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं. बिल के बिना भी, लोकसभा और राज्यसभा में हमारे 34 प्रतिशत सांसद महिलाएं हैं.’

इससे पहले, सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में बीजू जनता दल (बीजद) ने शीतकालीन सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने की सरकार से मांग की.

बीजद के राज्यसभा सदस्य डॉ. सस्मित पात्रा ने बताया कि उनकी पार्टी बीजद ने सर्वदलीय बैठक में इस सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की मांग की.

गौरतलब है कि लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने के प्रावधान वाला उक्त विधेयक 15वीं लोकसभा में पारित नहीं हो सका था और 15वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद इस संविधान संशोधन विधेयक की मियाद समाप्त हो गई.

वर्तमान में, 17वीं लोकसभा में केवल 15 फीसदी महिला सांसद हैं और राज्यसभा में 12.2 फीसदी महिला सांसद हैं. यह वैश्विक औसत 25.5 फीसदी से कम है. भारत के सभी राज्यों में कुल विधायकों में से केवल 8 फीसदी महिलाएं हैं.

वहीं, द हिंदू की एक अन्य खबर के मुताबिक, मंगलवार सुबह हुई सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने इस बात पर चिंता जताई कि 17 दिवसीय शीतकालीन सत्र में दो वित्तीय विधेयकों समेत 25 विधेयक सूचीबद्ध हैं, ऐसी परिस्थिति में प्रस्तावित कानूनों पर किसी भी सार्थक बहस के लिए सीमित समय उपलब्ध होगा.

साथ ही विपक्ष ने इस ओर भी इशारा किया कि अन्य प्रासंगिक मुद्दों को उठाने के लिए और भी कम समय उपलब्ध होगा.

संसद का शीतकालीन सत्र बुधवार (7 दिसंबर) से शुरू हुआ है और यह 29 दिसंबर तक चलेगा. सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल नहीं हुए थे और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी अनुपस्थिति में इसकी अध्यक्षता की.

राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल और संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी भी मौजूद थे. विधायी एजेंडे पर चर्चा करने के लिए हर सत्र से पहले बैठक बुलाई जाती है.

अधिकांश दलों ने महत्वपूर्ण कानूनों पर बहस के जरिये जल्दबाजी करने की कोशिश करने के लिए सरकार की आलोचना की.

राज्यसभा में कांग्रेस व्हिप सैयद नसीर हुसैन ने कहा, ‘अगर हम प्रक्रियात्मक सामग्री, शून्यकाल, प्रश्नकाल और ऐसी ही कुछ कार्यवाहियों के जरूरी समय को हटा दें, तो प्रभावी रूप से 25 विधेयकों पर बहस के लिए केवल 56 घंटे उपलब्ध हैं. यह बहुत ही समस्याग्रस्त बात है.’

कांग्रेस की राय से अन्य दलों ने भी सहमति जताई.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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