पहले संसदीय संबोधन में उपराष्ट्रपति ने एनजेएसी क़ानून रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा

सभापति के रूप में राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करते हुए अपने पहले संबोधन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक आयोग क़ानून ख़ारिज किए जाने को लेकर कहा कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है जिसके संरक्षक उच्च सदन व लोकसभा हैं.

राज्यसभा में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़. (फोटो: पीटीआई/संसद टीवी)

सभापति के रूप में राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करते हुए अपने पहले संबोधन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक आयोग क़ानून ख़ारिज किए जाने को लेकर कहा कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है जिसके संरक्षक उच्च सदन व लोकसभा हैं.

राज्यसभा में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़. (फोटो: पीटीआई/संसद टीवी)

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को संसद में पारित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेएसी) कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है जिसके संरक्षक उच्च सदन एवं लोकसभा हैं.

धनखड़ ने सभापति के रूप में उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करते हुए अपने पहले संबोधन में एनजेएसी के संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया और कहा कि लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती जहां नियमबद्ध ढंग से लाए गए संवैधानिक उपाय को इस प्रकार न्यायिक ढंग से निष्प्रभावी कर दिया गया हो.

उल्लेखनीय है कि संसद के दोनों सदनों ने 2014 के अगस्त माह में एनजेएसी के प्रावधान वाला 99वां संविधान संशोधन सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के अनुरूप न बताते हुए इसे खारिज कर दिया था.

धनखड़ ने कहा, ‘हमें इस बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि लोकतांत्रिक शासन में किसी भी ‘बुनियादी ढांचे’ की बुनियाद संसद में परिलक्षित होने वाले जनादेश की प्रमुखता को कायम रखना है….’

उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक बात है कि इस बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर जो लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, संसद का ध्यान केंद्रित नहीं है.

धनखड़ ने कहा, ‘लोकसभा के साथ यह सदन लोगों का संरक्षक होने के कारण मुद्दे पर ध्यान देने के लिए दायित्व से बंधा हुआ है और मैं निश्चित ही इसे करूंगा.’ उन्होंने यह भी कहा कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को अपने आचरण में गरिमा एवं शुचिता के उच्च मानकों को कायम करना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति का संबोधन सरकार और न्यायपालिका के बीच कॉलेजियम प्रणाली और न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर चल रही खींचतान के बीच आया है. बीते दिनों केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सभापति के रूप में पहली बार राज्यसभा की अध्यक्षता करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार के तीन अंगों द्वारा एक-दूसरे के क्षेत्र में किसी भी तरह की घुसपैठ शासन को परेशान करने की क्षमता है और सभी को ‘लक्ष्मण रेखा’ का सम्मान करना चाहिए.

उन्होंने सदस्यों से लक्ष्मण रेखा का सम्मान करने वाला माहौल तैयार करने के लिए काम करने का आह्वान किया.

अपने संबोधन में धनखड़ ने यह कहते हुए कि शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का सम्मान किया जाना चाहिए, कहा, ‘लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब इसके तीन पहलू – विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका- अपने संबंधित डोमेन का ईमानदारी से पालन करते हैं.’

उन्होंने जोड़ा, ‘हम वास्तव में लगातार घुसपैठ की इस गंभीर वास्तविकता का सामना कर रहे हैं. यह सदन शासन के इन अंगों के बीच अनुकूलता लाने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की स्थिति में है. मुझे विश्वास है कि आप सभी आगे के रुख पर विचार करेंगे और इसमें शामिल होंगे.’

एनजेएसी का गठन करने वाले 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस पर ‘ऐतिहासिक’ संसदीय जनादेश को ’16 अक्टूबर, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4:1 के बहुमत से खारिज कर दिया गया था क्योंकि इसे संविधान के ‘मूल ढांचे’ के न्यायिक रूप से विकसित सिद्धांत के अनुरूप’ नहीं पाया गया था. उन्होंने कहा कि विधेयक के लिए ‘अभूतपूर्व’ समर्थन था.

उन्होंने कहा, ’13 अगस्त 2014 को लोकसभा ने सर्वसम्मति से इसके पक्ष में मतदान किया, जिसमें कोई अनुपस्थिति नहीं थी. इस सदन ने भी 14 अगस्त, 2014 को इसे लगभग सर्वसम्मति से पारित कर दिया. संसदीय लोकतंत्र में शायद ही किसी संवैधानिक कानून को इतना समर्थन मिला हो.’

उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक इतिहास में इस तरह का कोई उदाहरण नहीं है जहां एक विधिवत वैध संवैधानिक उपाय को न्यायिक रूप से खारिज किया गया हो.

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘यह संसदीय संप्रभुता के साथ गंभीर समझौते और लोगों के जनादेश, जिसके संरक्षक यह सदन और लोकसभा हैं, की अवहेलना का एक ज्वलंत उदाहरण था.’

धनखड़ ने यह भी कहा कि यह चिंताजनक है कि ‘लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद में कोई ध्यान नहीं दिया गया है, जबकि अब इसे सात साल से अधिक हो गए हैं.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘यह सदन, लोकसभा के साथ मिलकर लोगों के जनादेश का संरक्षक होने के नाते, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए बाध्य है और मुझे यकीन है कि यह ऐसा करेगा.’

यह पहली बार नहीं है जब धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद एनजेएसी को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की है. बीते 2 दिसंबर को एलएम सिंघवी मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.

मालूम हो कि केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू पिछले कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान दे रहे हैं.

अक्टूबर 2022 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का ‘मुखपत्र’ माने जाने वाले ‘पांचजन्य’ की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका के लिए समान शब्दों का इस्तेमाल किया था और कहा था कि न्यायपालिका कार्यपालिका में हस्तक्षेप न करे.

साथ ही, उन्होंने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते हुए यह भी कहा था कि जजों की नियुक्ति सरकार का काम है. उन्होंने न्यायपालिका में निगरानी तंत्र विकसित करने की भी बात कही थी.

इसी तरह बीते चार नवंबर को रिजिजू ने कहा था कि वे इस साल के शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के फैसले से दुखी थे.

वहीं, बीते महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. साथ ही, कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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