बीते 15 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने साईबाबा और पांच अन्य- महेश तिर्की, पांडु नरोटे, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय एन. तिर्की को कथित माओवादी संबंध मामले में आरोपमुक्त करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया था. महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय 17 जनवरी को महाराष्ट्र सरकार की उस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को कथित माओवादी संबंध मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है.
बीते 15 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने साईबाबा और पांच अन्य- महेश तिर्की, पांडु नरोटे (अपील के दौरान मृतक), हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय एन. तिर्की को आरोपमुक्त करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एमआर शाह और हिमा कोहली की खंडपीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि 10 खंडों वाले सभी साक्ष्य एक सप्ताह के भीतर सुविधा अनुपालन के साथ प्रस्तुत किए जाएंगे.
इस दौरान साईबाबा (प्रतिवादी नंबर 6) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने कहा कि वह जल्द ही एक जवाबी हलफनामा दाखिल करेंगे. वहीं, प्रतिवादी 1 (तिर्की), 4 (नारायण), और 5 (विजय तिर्की) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नीता रामकृष्णन ने कहा कि वह जवाब दाखिल नहीं करना चाहती हैं.
इसके बाद खंडपीठ ने पक्षकारों को 10 दिनों के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया.
रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर महीने में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को इस आधार पर निलंबित कर दिया कि आरोपियों को यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने में अनियमितताओं के आधार पर मामले के गुण-दोष को जाने बिना आरोपमुक्त कर दिया गया था.
पीठ ने कहा था कि इस पर विस्तृत विचार की आवश्यकता है कि क्या एक अपीलीय अदालत अभियुक्तों को रिकॉर्ड पर सबूतों के आधार पर निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद मंजूरी के आधार पर आरोपमुक्त कर सकती है.
शीर्ष न्यायालय ने साईबाबा के उनकी शारीरिक अशक्तता तथा स्वास्थ्य स्थिति के कारण उन्हें जेल से रिहा करने तथा घर में नजरबंद करने के अनुरोध को भी खारिज कर दिया था.
महाराष्ट्र सरकार ने इस अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था कि आज कल शहरी नक्सलियों (Urban Naxal) के घर में नजरबंद होने की मांग करने की नई प्रवृत्ति पैदा हो गई है.
बीते 14 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में साईबाबा तथा पांच अन्य दोषियों- महेश तिर्की, पांडु नरोटे, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय एन. तिर्की को बरी कर दिया था.
हाईकोर्ट के आदेश के कुछ घंटों बाद महाराष्ट्र सरकार ने फैसले पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया. हालांकि शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को यह अनुमति दी थी कि वह तत्काल सूचीबद्ध किए जाने का अनुरोध करते हुए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे सकती है.
मामले के दोषियों में से एक याचिकाकर्ता पांडु नरोटे की मामले में सुनवाई लंबित होने के दौरान बीते अगस्त महीने में मौत हो चुकी है.
मार्च 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने साईबाबा और पांचों अन्य आरोपियों को माओवादियों से कथित संबंध और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था.
साईबाबा पोलियो संबंधी पक्षाघात के कारण शारीरिक रूप से 90-95 फीसदी अक्षम हैं और पूरी तरह ह्वीलचेयर पर निर्भर हैं.
लाइव लॉ के मुताबिक, उन्होंने पहले एक आवेदन दायर कर चिकित्सा आधार पर सजा को निलंबित करने की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था कि वह किडनी और रीढ़ की हड्डी की समस्याओं सहित कई बीमारियों से पीड़ित हैं.
2019 में हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगाने की उनकी अर्जी खारिज कर दी थी.
गढ़चिरौली सत्र न्यायालय द्वारा मार्च 2017 में यूएपीए की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 तथा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की 120बी के तहत अपराध के लिए साईबाबा और अन्य को दोषसिद्धि और सजा का आदेश पारित किया गया था.
रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) के साथ कथित जुड़ाव के लिए यह सजा सुनाई गई थी. इस संगठन पर प्रतिबंधित माओवादी समूह से संबद्ध होने का आरोप लगाया गया था. आरोपियों को 2014 में गिरफ्तार किया गया था.