इस बार के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छह, आप ने पांच और कांग्रेस ने तीन महिलाओं को टिकट दिया था, लेकिन भाजपा की रीना कश्यप ही सिरमौर ज़िले की पच्छाद सीट से जीत हासिल कर सकीं. 1967 के बाद से 15 चुनावों में केवल 43 महिलाएं ही राज्य विधानसभा के लिए चुनी गई हैं.
शिमला: हिमाचल प्रदेश की 68 सदस्यीय विधानसभा में इस बार सिर्फ एक महिला विधायक होंगी. प्रदेश में 12 नवंबर को हुए विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. चुनावी रण में किस्मत आजमा रहीं 24 में से केवल एक ही महिला प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुईं.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने छह, आम आदमी पार्टी (आप) ने पांच और कांग्रेस ने तीन महिलाओं को टिकट दिया था लेकिन केवल भाजपा की रीना कश्यप ही कांग्रेस उम्मीदवार दयाल प्यारी को हराकर जीत हासिल कर पाईं. कश्यप ने सिरमौर जिले की पच्छाद (एससी) सीट से फतह हासिल की है. उन्होंने 2021 में हुए उपचुनाव में इस सीट से जीत दर्ज की थी.
साल 2017 में, चार महिला उम्मीदवार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रही थीं.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री और कांगड़ा के शाहपुर से चार बार विधायक रहीं सरवीन चौधरी, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और डलहौजी से छह बार की विधायक आशा कुमारी, इंदौरा से भाजपा विधायक रीता धीमान, मंडी से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर चुनाव हार गई हैं.
आशा कुमारी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल थीं.
राज्य के कुल मतदाताओं में करीब 49 फीसदी महिलाएं हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, दिलचस्प बात यह है कि 1998 के चुनावों के बाद से महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक रहा है और यह प्रवृत्ति पिछले पांच चुनावों में भी जारी रही है.
महिला और पुरुष मतदाताओं का मतदान प्रतिशत 1998 में 72.2 और 71.23 प्रतिशत, 2003 में 75.92 और 73.14 प्रतिशत, 2007 में 74.10 और 68.36 प्रतिशत, 2012 में 76.20 और 69.39 प्रतिशत और 2017 में 77.98 और 70.58 प्रतिशत था.
इस बार हुए विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मत प्रतिशत 76.8 फीसदी रहा, जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत 72.4 फीसदी था. महिला मतदाताओं ने पुरुष मतदाताओं को 82,301 से पीछे छोड़ दिया.
कांगड़ा में जयसिंहपुर (एससी), हमीरपुर में भोरंज (एससी) और शिमला जिले के जुब्बल-कोटखाई के तीन निर्वाचन क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. 68 निर्वाचन क्षेत्रों में से 19 में पुरुष और महिला मतदाताओं के बीच का अंतर 1000 से कम है और 42 निर्वाचन क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान अधिक था.
महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा ने स्त्री शक्ति संकल्प के तहत महिलाओं के लिए 11 वादे किए थे और सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी.
महिला उद्यमियों को ब्याज मुक्त कर्ज देने के लिए 500 करोड़ रुपये का कॉर्पस फंड, स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियों को साइकिल तथा स्कूटर देने का भी वादा पार्टी ने किया था.
दूसरी ओर कांग्रेस ने वयस्क महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देने का वादा करते हुए ‘हर घर लक्ष्मी, नारी सम्मान निधि’ की घोषणा की थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हालांकि महिला सशक्तिकरण के लंबे-चौड़े दावों और उन्हें दी जाने वाली रियायतों के बावजूद प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच स्पष्ट लैंगिक पूर्वाग्रह है और 1967 के बाद से 15 चुनावों में केवल 43 महिलाएं ही राज्य विधानसभा के लिए चुनी गई हैं.
वास्तव में राज्य विधानसभा में पहुंचने वाली महिलाओं की वास्तविक संख्या 20 थी, क्योंकि वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स (आठ बार), आशा कुमारी (छह बार), सरवीन चौधरी (चार बार), विप्लव ठाकुर, चंद्रेश कुमारी और श्यामा शर्मा (तीन बार), अनीता वर्मा, उर्मिल ठाकुर और कृष्ण मोहिनी (दो बार) चुनी गई थीं.
पहली बार चुनी गईं प्रत्याशियों में सरला शर्मा, पद्मा, लता ठाकुर, लीला शर्मा, सुषमा शर्मा, निर्मला, रेणु चड्डा, विनोद कुमारी, रीता धीमान, रीना कश्यप, कमलेश कुमारी, आशा कुमारी और सरवीन चौधरी शामिल थीं.
4,347 पुरुषों की तुलना में इन चुनावों में 206 महिलाएं मैदान में उतरीं और 1967 में कोई महिला नहीं चुनी गई, जबकि 1977 में केवल एक महिला उम्मीदवार जीती थी.
महिला उम्मीदवारों ने 1972 में अपनी शुरुआत की और चार महिलाएं- चंद्रेश कुमारी, सरला शर्मा, लता ठाकुर और पद्मा निर्वाचित हुईं. यह संख्या बढ़कर तब पांच हो गई, जब पति के निधन के बाद विद्या स्टोक्स ठियोग सीट पर हुए उपचुनाव में निर्वाचित हो गईं.
जनता पार्टी की श्यामा शर्मा 1977 के चुनावों में एकमात्र विजेता थीं, जबकि तीन महिलाओं- श्यामा शर्मा, चंद्रेश और विद्या स्टोक्स ने 1982 में चुनाव जीता था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, 1985 के मध्यावधि चुनावों में विद्या स्टोक्स, आशा कुमारी और विप्लव ठाकुर चुनी गईं, जबकि 1990 के चुनावों में चार महिला उम्मीदवार- लीला शर्मा, श्यामा शर्मा, सुषमा शर्मा और विद्या स्टोक्स विजेता रहीं.
1993 के चुनावों में आशा कुमारी, विप्लव ठाकुर और कृष्ण मोहिनी ने अपने पुरुष विरोधियों को हराया, जबकि 1998 में अधिकतम छह महिला प्रत्याशियों- सरवीन चौधरी, उर्मिल ठाकुर, विप्लव ठाकुर, विद्या स्टोक्स और आशा कुमारी चुनी गईं, जबकि उपचुनाव में निर्मला विजेता रहीं.
इनके अलावा अनीता वर्मा 1994 में हमीरपुर से हुए उपचुनाव में भी निर्वाचित हुई थीं.
2003 के चुनावों में चार महिलाएं- विद्या स्टोक्स, अनीता वर्मा, चंद्रेश और आशा कुमारी चुनी गईं, जबकि 2007 में पांच महिला उम्मीदवार- विद्या स्टोक्स, उर्मिल ठाकुर, सरवीन चौधरी, रेणु चड्डा और विनोद कुमारी विजयी हुईं.
2012 के चुनावों में यह संख्या फिर से घटकर तीन हो गई, जब विद्या स्टोक्स, आशा कुमारी और सरवीन चौधरी दोबारा चुनी गईं. 2017 के चुनावों में आशा कुमारी, सरवीन चौधरी, रीता धीमान और कमलेश कुमारी विजेता रहीं, जबकि रीना कश्यप ने 2021 में विधानसभा उपचुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)