इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने एक आकलन में संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में हिमालय के तीन औषधीय पौधों को डाला है. उसका कहना है कि वनों की कटाई, अवैध व्यापार, जंगल की आग, जलवायु परिवर्तन आदि के चलते इनके अस्तित्व पर संकट आ गया है.
नई दिल्ली: हिमालय में पाए जाने वाले तीन औषधीय पौधों की प्रजातियों को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने एक आकलन के बाद संकटग्रस्ट प्रजातियों की रेड लिस्ट में शामिल किया है.
द हिंदू के मुताबिक, मीजोट्रोपिस पेलिटा (Meizotropis Pellita) को ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’, फ्रिटिलोरिया सिरहोसा (Fritilloria Cirrhosa) को ‘जोखिमपूर्ण’ और डैक्टाइलोरिजा हैटागिरिया (Dactylorhiza Hatagirea) को ‘लुप्तप्राय’ के रूप में निर्धारित किया गया है.
मीजोट्रोपिस पेलिटा को आमतौर पर पटवा के रूप में जाना जाता है. अध्ययन में कहा गया है, ‘ये प्रजातियां सीमित क्षेत्र (10 वर्ग किलोमीटर से कम) में पाई जाती हैं, इस आधार पर इन्हें गंभीरतम लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.’
प्रजातियों को वनों की कटाई, उत्पत्ति स्थान के विखंडन और जंगल की आग से खतरा है.
मूल्यांकन में कहा गया है, ‘प्रजातियों की पत्तियों से निकाले गए अत्यावश्यक तेल में मजबूत एंटीऑक्सिडेंट होते हैं. यह दवा उद्योग में सिंथेटिक एंटीऑक्सिडेंट के लिए एक भरोसेमंद प्राकृतिक विकल्प हो सकता है.’
फ्रिटिलोरिया सिरहोसा (हिमालयन फ्रिटिलरी) एक बारहमासी बल्बनुमा जड़ी बूटी है.
इसके बारे में कहा गया है कि इसकी आबादी में आकलन अवधि (22 से 26 वर्ष) के दौरान 30 फीसदी की गिरावट देखी गई है. गिरावट की दर, लंबी प्रजनन अवधि, खराब अंकुरण क्षमता, उच्च व्यापार मूल्य, कटाई का व्यापक दबाव और अवैध व्यापार को ध्यान में रखते हुए इन प्रजातियों को ‘जोखिमपूर्ण’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
चीन में इन प्रजातियों का उपयोग श्वसन नली संबंधी विकारों और निमोनिया के इलाज के लिए किया जाता है. आईयूसीएन के आकलन में कहा गया है कि यह पौधा पारंपरिक चीनी औषधियों में इस्तेमाल में लाया जाता है.
रिपोर्ट के अनुसार, तीसरी सूचीबद्ध प्रजाति डैक्टाइलोरिजा हटगिरिया (सलामपंजा) को वास स्थल के खोने, पशुधन चराई, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से खतरा है.
इसका इस्तेमाल पेचिश, पेट के अंदर सूजन, पुराने बुखार, खांसी और पेट दर्द को ठीक करने के लिए आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और चिकित्सा की अन्य वैकल्पिक प्रणालियों में बड़े पैमाने पर होता है.
यह अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के हिंदूकुश व हिमालय पर्वतमाला के लिए एक स्थानिक बारहमासी कंद प्रजाति है.
मेडिसिनल प्लांट स्पेशल ग्रुप के आईयूसीएन स्पीसीज सर्वाइवल कमीशन के सदस्य हर्ष कुमार चौहान ने कहा, ‘हिमालयी क्षेत्र एक जैव विविधता का केंद्र है, लेकिन कई प्रजातियों पर यहां डेटा की कमी है. इन पौधों का मूल्यांकन हमारी संरक्षण प्राथमिकताओं को निर्धारित करेगा और प्रजातियों को बताने में मदद करेगा.’
डॉ. चौहान ने औषधीय मूल्यों वाली छह प्रजातियों का मूल्यांकन किया था, जिन्हें लुप्तप्राय के रूप में चिह्नित किया गया है. उन्होंने कहा कि हिमालय औषधीय पौधों का एक समृद्ध भंडार है और 1998 में किए गए अध्ययनों ने बताया था कि इस क्षेत्र में ऐसी प्रजातियों की संख्या 1,748 है.