कर्नाटक सरकार ने टीपू सुल्तान कालीन मंदिरों की ‘सलाम आरती’ का नाम बदलने का फैसला किया

मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के समय में सलाम आरती की रस्म शुरू की गई थी. टीपू ने मैसूर राज्य के कल्याण के लिए इसकी शुरुआत की थी. अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनकी मृत्यु के बाद भी राज्य भर के विभिन्न हिंदू मंदिरों में यह रस्म जारी है.

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टीपू सुल्तान. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के समय में सलाम आरती की रस्म शुरू की गई थी. टीपू ने मैसूर राज्य के कल्याण के लिए इसकी शुरुआत की थी. अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनकी मृत्यु के बाद भी राज्य भर के विभिन्न हिंदू मंदिरों में यह रस्म जारी है.

टीपू सुल्तान. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

बेंगलुरु: कर्नाटक की भाजपा सरकार ने 18वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान के समय के मंदिरों में जारी ‘सलाम आरती’, ‘सलाम मंगल आरती’ और ‘दीवतिगे सलाम’ जैसे रीति-रिवाजों का नाम बदलकर इन्हें स्थानीय नाम देने का फैसला किया है.

राज्य की मुजराई मंत्री शशिकला जोले ने शनिवार को इस बात की जानकारी दी. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इन रीति-रिवाजों को बंद नहीं किया जाएगा.

जोले ने कहा, ‘यह फैसला किया गया है कि ‘दीवतिगे सलाम’ का नाम बदलकर ‘दीवतिगे नमस्कार’, ‘सलाम आरती’ का नाम बदलकर ‘आरती नमस्कार’ किया जाएगा. इसी तरह ‘सलाम मंगल आरती’ का नाम बदलकर ‘मंगल आरती नमस्कार’ किया जाएगा. यह हमारे विभाग के वरिष्ठ आगम पुजारियों की राय पर आधारित है. (इस संबंध में) एक परिपत्र जारी किया जाएगा.’

मंत्री ने कहा कि कर्नाटक राज्य धार्मिक परिषद की बैठक में कुछ सदस्यों ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया था कि कुछ श्रद्धालुओं ने इन रीति रिवाजों का नाम बदलने मांग की है. उन्होंने कहा कि बैठक में इस विषय पर व्यापक चर्चा हुई थी.

उन्होंने कहा कि रीति-रिवाज परंपरा के अनुरूप जारी रहेंगे और केवल उनके नाम को बदला जाएगा, जिसमें हमारे भाषा के शब्द शामिल होंगे.

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, रविवार को इस संबंध में कर्नाटक के गृहमंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने कहा, ‘सलाम आरती का नाम बदलने का निर्णय सही है. अगर मंदिरों में हमारी संस्कृति को मजबूत करने का काम नहीं किया जाता है तो यह कहां होना चाहिए?’

इस विषय पर जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने कहा, बीजेपी असल मुद्दों पर ध्यान नहीं देना चाहती, इसलिए इस तरह की बातें कर रही है. वे इतिहास और हमारी पुरानी संस्कृतियों को बदलना चाहते हैं.

माना जा रहा है कि यह कदम टीपू सुल्तान पर सत्ताधारी भाजपा के रुख के अनुरूप उठाया गया है.

भाजपा और कुछ हिंदू संगठन टीपू को ‘क्रूर हत्यारे’ के रूप में देखते हैं. कुछ कन्नड़ संगठन उन्हें कन्नड़ विरोधी करार देते हैं और आरोप लगाते हैं कि उन्होंने स्थानीय भाषा के स्थान पर फारसी भाषा को प्रोत्साहन दिया था.

समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के समय में सलाम आरती की रस्म शुरू की गई थी. टीपू ने मैसूर राज्य के कल्याण के लिए अपनी ओर से इसकी शुरुआत की थी. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उनकी मृत्यु के बाद भी राज्य भर के विभिन्न हिंदू मंदिरों में अनुष्ठान जारी है.

हिंदू संगठनों के अनुसार, ‘सलाम आरती’ गुलामी का प्रतीक थी और प्रभुत्व जमाने के लिए इसका अभ्यास किया जाता था. उन्होंने अनुष्ठान को समाप्त करने की मांग की थी.

हालांकि, बुद्धिजीवियों का दावा है कि परंपरा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव को दर्शाती है और इसे महान परंपरा के रूप में जारी रखा जाना चाहिए.

मालूम हो कि अक्टूबर 2022 में कर्नाटक के मैसूर शहर से राजधानी बेंगलुरु के बीच चलने वाली ‘टीपू एक्सप्रेस’ का नाम बदलकर ‘वोडेयार एक्सप्रेस’ कर दिया गया था.

जुलाई 2020 में कर्नाटक सरकार ने कोविड-19 का हवाला देते हुए पहली से 10वीं कक्षा के पाठ्यक्रम कम करने के लिए इस्लाम, ईसाई धर्म, टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली से जुड़े अध्याय सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से हटाने का प्रस्ताव रखा था. इसका विपक्ष ने काफी विरोध किया और आखिरकार इस फैसले पर रोक लगा दी गई थी.

जुलाई 2019 में टीपू सुल्तान की जयंती पर आयोजित होने वाले वार्षिक समारोह को कर्नाटक की भाजपा सरकार ने रद्द कर दिया था. इस समारोह का आयोजन 2016 से हो रहा था. पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सत्ता में आने के तीन दिन के भीतर यह आदेश पारित किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)