कांग्रेस सांसद की मांग- चुनाव आयुक्त के चयन के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में समिति गठित हो

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने संसद में एक निजी विधेयक पेश किया है, जिसमें चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हो, जिसमें नेता विपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हों.

मनीष तिवारी. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने संसद में एक निजी विधेयक पेश किया है, जिसमें चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हो, जिसमें नेता विपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हों.

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में एक निजी विधेयक पेश करके चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता के संबंध में बढ़ती चिंता की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करने की मांग की है.

इस विधेयक के अनुसार, इस समिति में नेता विपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होंगे, जो मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी.

विधेयक सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनावों समेत सभी राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज के विनियमन, निगरानी और पर्यवेक्षण के लिए चुनाव आयोग को और अधिक शक्ति देने की भी मांग करता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, तिवारी ने तर्क दिया कि बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों की आंतरिक प्रणाली और संरचना अपारदर्शी और स्थिर हो गई है. उनके कामकाज को पारदर्शी, जवाबदेह और नियम आधारित बनाने की जरूरत है.

जून माह में इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में तिवारी ने तर्क दिया था कि चुनाव आयोग के लिए समय आ गया है कि वह बाहरी निगरानीकर्ताओं और अन्य उन्नत तंत्रों की नियुक्ति करके राजनीतिक दलों के भीतर लोकतंत्र होना सुनिश्चित करे और उसे बनाए रखे.

समिति की स्थापना की मांग करने वाले निजी विधेयक को सदन में तब पेश किया गया है, जब सुप्रीम कोर्ट मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की आवश्यकता संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.

इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के लिए छह साल के निश्चित कार्यकाल और क्षेत्रीय आयुक्तों के लिए नियुक्ति की तारीख से तीन साल के कार्यकाल की परिकल्पना की गई है.

विधेयक कहता है, ‘सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अलावा उन्हें पद से न हटाया जाए. इसके अलावा, सेवानिवृत्ति के बाद वे भारत सरकार, राज्य सरकारों और संविधान के अधीन किसी भी कार्यालय में पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होने चाहिए. ’

विधेयक कहता है, ‘चुनाव आयोग पंजीकृत राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनाव का उनके संबंधित संविधानों के अनुसार विनियमन, निगरानी और पर्यवेक्षण करेगा, जब तक कि चुनाव आयोग द्वारा एक आदर्श आंतरिक संहिता निर्धारित नहीं की जाती है.’

विधेयक में कहा गया है कि यदि कोई पंजीकृत राजनीतिक दल अपने आंतरिक कार्यों के संबंध में चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई सलाह, अवधि और निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो ऐसे राजनीतिक दल की राज्य या राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता रद्द कर दी जाए.

मालूम हो कि मनीष तिवारी के अलावा केरल से माकपा सांसद जॉन ब्रिटास ने बीते 9 दिसंबर को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता, तटस्थता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए भारत के संविधान में संशोधन हेतु संविधान (संशोधन) विधेयक-2022 राज्यसभा में पेश किया. इस निजी विधेयक में भारतीय चुनाव आयोग का एक स्थायी स्वतंत्र सचिवालय स्थापित करने की भी बात कही गई है.

बीते  22 नवंबर को सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश वाली एक समिति चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का सबसे कम दखल देने वाला तरीका हो सकता है.

अदालत ने सरकार से प्रक्रिया का विवरण मांगा था, विशेष रूप से चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइलें, जो 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने तक आईएएस अधिकारी थे. उन्हें अगले ही दिन राष्ट्रपति द्वारा चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था.