महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोबाड गांधी की किताब के मराठी अनुवाद को दिया सम्मान वापस लेने पर विवाद

महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा विभाग ने छह दिसंबर को कोबाड गांधी की ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: अ प्रिज़न मेमॉयर’ के अनुवाद के लिए अनघा लेले को स्वर्गीय यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार देने की घोषणा की थी. इस फैसले को सरकार द्वारा पलटने के ख़िलाफ़ पुरस्कार चयन समिति के चार सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया है और कुछ मराठी लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है.

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कोबाड गांधी के संस्मरण और उसके मराठी अनुवाद का कवर. (फोटो साभार: अमेज़ॉन)

महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा विभाग ने छह दिसंबर को कोबाड गांधी की ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: अ प्रिज़न मेमॉयर’ के अनुवाद के लिए अनघा लेले को स्वर्गीय यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार देने की घोषणा की थी. इस फैसले को सरकार द्वारा पलटने के ख़िलाफ़ पुरस्कार चयन समिति के चार सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया है और कुछ मराठी लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है.

कोबाड गांधी के संस्मरण और उसके मराठी अनुवाद का कवर. (फोटो साभार: अमेज़ॉन)

मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने कम्युनिस्ट कार्यकर्ता और विचारक कोबाड गांधी के एक संस्मरण के मराठी अनुवाद को दिया गया पुरस्कार वापस ले लिया. राज्य सरकार के इस कदम का लेखकों द्वारा विरोध शुरू कर दिया गया है.

सरकार के मराठी भाषा विभाग ने कोबाड गांधी की ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: अ प्रिजन मेमॉयर’ के अनुवाद के लिए अनघा लेले को स्वर्गीय यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार, 2021 देने की छह दिसंबर को घोषणा की थी.

यह फैसला कोबाड गांधी के कथित माओवादी संबंध होने के कारण सोशल मीडिया पर पुरस्कार देने के फैसले की आलोचना के मद्देनजर आया है.

कोबाड गांधी के खिलाफ आरोपों को लेकर सोशल मीडिया पर महाराष्ट्र सरकार के इस कदम की आलोचना की गई थी. आखिरकार छह दिन बाद सरकार ने उन्हें दिया गया पुरस्कार वापस ले लिया.

अनघा लेले से यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार, 2021 वापस लेने के बाद विवाद छिड़ गया है.

यह किताब जेल में कोबाड गांधी के अनुभव का लेखा-जोखा है, जहां माओवादी विचारक होने का आरोप लगने के बाद उन्होंने एक दशक बिताया था.

बीते 12 दिसंबर को जारी एक सरकारी संकल्प (आदेश) में कहा गया है कि चयन समिति के निर्णय को ‘प्रशासनिक कारणों’ से उलट दिया गया और पुरस्कार (जिसमें एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल था) को वापस ले लिया गया है.

आदेश में आगे कहा गया है कि समिति को भी खत्म कर दिया गया है. बहरहाल, पुरस्कार वापस लेने के सरकार के इस आदेश की काफी आलोचना हो रही है.

हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कोबाड गांधी की किताब की अनुवादक अनघा लेले ने कहा कि सोशल मीडिया पर कुछ लोग, जिन्होंने यह किताब या अनुवाद नहीं पढ़ा था, उन विशेषज्ञों के फैसले को पलटने के लिए जिम्मेदार थे, जिन्होंने पुरस्कार के लिए इसकी सिफारिश की थी.

दो लेखकों ने खुद को मिले पुरस्कार लौटाने की घोषणा की

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रसिद्ध मराठी लेखक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर शरद बाविस्कर ने सरकार के कदम के विरोध में अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक ‘भूरा’ के लिए मिला पुरस्कार लौटा दिया है. उन्होंने कहा कि कोबाड गांधी की किताब को दिए गए पुरस्कार को वापस लेना फासीवादी है.

उन्होंने कहा, ‘वर्तमान राज्य सरकार ने समिति के फैसले को क्यों खारिज कर दिया? यह लोगों का पुरस्कार है. हम जानना चाहते हैं कि अवॉर्ड रद्द करने का फैसला किसने लिया? अगर महाराष्ट्र सरकार अपना फैसला बदलती है तब मैं पुरस्कार स्वीकार करूंगा.’

प्रोफेसर शरद बाविस्कर से पहले बीते 13 दिसंबर को मराठी लेखक आनंद करंदीकर ने राज्य सरकार का पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी.

करंदीकर ने कहा था कि कोबाड की किताब के मराठी अनुवाद के लिए अनघा लेले का पुरस्कार वापस लेने का सरकार का कदम ‘विचारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूरी तरह पाबंदी’ के समान है.

करंदीकर को उनकी किताब ‘वैचारिक घुसलन’ के लिए ‘सामान्य साहित्य’ श्रेणी के तहत यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार, 2021 के लिए चुना गया है.

करंदीकर ने कहा था कि वह कोबाड के विचारों से सहमत नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र में उन्हें (कोबाड को) अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार है और अनघा लेले ने पुस्तक का सिर्फ अनुवाद किया है.

लेखक ने कहा, ‘मैंने महाराष्ट्र राज्य साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड को पत्र लिखकर सूचित किया है कि मैं अपना पुरस्कार और प्रदान किए गए एक लाख रुपये वापस करना चाहता हूं.’

महाराष्ट्र भाषा परामर्श समिति के तीन और सदस्यों ने इस्तीफा दिया

मराठी लेखकों के पुरस्कार लौटाने की घोषणा के बीच महाराष्ट्र सरकार की भाषा परामर्श समिति के तीन और सदस्यों ने कोबाड गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद के लिए पुरस्कार को वापस लेने के फैसले के विरोध में बृहस्पतिवार (15 दिसंबर) को इस्तीफा दे दिया.

प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर, डॉ. विवेक घोटाले और डॉ गणेश चंदनशिवे ने अलग-अलग घोषणा की कि वे उस समिति को छोड़ रहे हैं, जो मराठी को बढ़ावा देने के लिए नीतियों पर सरकार को सलाह देती है.

बुधवार (14 दिसंबर) को लेखक और समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने घोषणा की थी कि वह विरोध में पद छोड़ रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि कोबाड गांधी की किताब नक्सलियों के प्रति न तो सहानुभूति रखती है और न ही उनका समर्थन करती है.

बृहस्पतिवार को परभणी जिले से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक मेघना बोर्डीकर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के फैसले के समर्थन में उतर आईं.

उन्होंने आरोप लगाया कि कोबाड गांधी की पुस्तक ‘आतंकवाद और शहरी नक्सलवाद की वकालत करती है.’ उन्होंने कहा कि जिन लेखकों ने विरोध में इस्तीफा दिया है, उनके राष्ट्रवाद और विवेक की जांच की जानी चाहिए.

पुरस्कार चयन समिति (जिसे अब भंग कर दिया गया है) के चार सदस्यों – डॉ. प्रज्ञा दया पवार, नीरजा, हेरम्ब कुलकर्णी और विनोद शिरसाथ – ने पुरस्कार वापस लेने के तरीके के विरोध में राज्य साहित्य और संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा दे दिया.

दूसरी ओर, मराठी भाषा मंत्रालय के अलावा अन्य प्रभार संभालने वाले मंत्री दीपक केसरकर ने संवाददाताओं से कहा, ‘कोबाड गांधी की पुस्तक के अनुवाद के लिए भी एक पुरस्कार का मतलब नक्सल आंदोलन और उनके हिंसक कृत्यों को सरकार की (स्वीकृति की) मुहर होता. नक्सली गतिविधियों के खिलाफ लड़ते हुए सैकड़ों जवान शहीद हुए हैं. मैं नक्सल आंदोलन को सरकार की ओर से किसी भी तरह की स्वीकृति नहीं दे सकता.’

महाराष्ट्र सरकार का निर्णय ‘अघोषित आपातकाल’ लगाने का प्रयासः अजित पवार

पुरस्कार वापस लेने के फैसले को लेकर विवाद के बीच विपक्ष के नेता अजित पवार ने बुधवार को कहा कि सत्तारूढ़ सरकार साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.

पवार ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार संस्मरण के अनुवाद के लिए एक चयन समिति द्वारा तय किए गए साहित्यिक पुरस्कार को रद्द करके ‘अघोषित आपातकाल’ लगाने की कोशिश कर रही है.

विधानसभा में विपक्ष के नेता पवार ने विवाद की पृष्ठभूमि में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार साहित्यिक पुरस्कारों के चयन में हस्तक्षेप कर रही है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

पवार ने कहा, ‘एकनाथ शिंदे सरकार साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.’ इतना ही नहीं पवार ने सवाल किया कि क्या चयन समिति के सदस्यों का इस्तीफा सरकार के लिए ‘शर्मनाक’ नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘राज्य साहित्य और संस्कृति बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा गठित समिति के काम में यह हस्तक्षेप गलत और निंदनीय है. राजनीतिक दलों को इन मामलों में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)