केंद्रीय मंत्री ने संसद में कहा- राज्य सरकारें समान नागरिक संहिता पर क़ानून लागू कर सकती हैं

राज्यसभा में माकपा सांसद जॉन ब्रिटास ने राज्य सरकारों के समान नागरिक संहिता संबंधी क़ानून बनाने को लेकर प्रश्न किया था. इस पर केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि समान नागरिक संहिता बनाए रखने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह, तलाक़ जैसे मुद्दों से संबंधित व्यक्तिगत क़ानून बनाने का अधिकार है.

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राज्यसभा में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू. (फोटो: पीटीआई/संसद टीवी)

राज्यसभा में माकपा सांसद जॉन ब्रिटास ने राज्य सरकारों के समान नागरिक संहिता संबंधी क़ानून बनाने को लेकर प्रश्न किया था. इस पर केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि समान नागरिक संहिता बनाए रखने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह, तलाक़ जैसे मुद्दों से संबंधित व्यक्तिगत क़ानून बनाने का अधिकार है.

राज्यसभा में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू. (फोटो: पीटीआई/संसद टीवी)

नई दिल्ली: कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को राज्यसभा में बताया कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बनाए रखने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार है.

मंत्री ने ये टिप्पणी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसद जॉन ब्रिटास द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में की. उन्होंने पूछा था कि क्या केंद्र यूसीसी के संबंध में स्वयं कानून बनाने वाले राज्यों से अवगत है.

द हिंदू के अनुसार, इस पर रिजिजू ने कहा कि वे इससे अवगत हैं. उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 प्रदान कहता है कि भारत के पूरे क्षेत्र में राज्य नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा.

कानून मंत्री ने कहा, ‘व्यक्तिगत कानून जैसे बिना वसीयत के किसी के गुजरने पर उत्तराधिकार का मामला; वसीयत; संयुक्त परिवार और बंटवारा; विवाह और तलाक, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-III-समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 से संबंधित हैं, और इसलिए राज्यों को भी उन पर कानून बनाने का अधिकार है.’

भारतीय जनता पार्टी शासित कई राज्यों द्वारा समान नागरिक संहिता को लागू करने की घोषणा की पृष्ठभूमि में रिजिजू की टिप्पणी महत्वपूर्ण है.

उल्लेखनीय है कि बीते 9 दिसंबर को भाजपा सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने विपक्ष के कड़े विरोध के बीच यूसीसी पर एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया था. इस विधेयक का उद्देश्य धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) को खत्म करना है. विधेयक समान नागरिक संहिता की तैयारी और पूरे भारत में इसके कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति के गठन की मांग करता है.

निजी विधेयक को संसद में पारित होने के लिए सरकार के समर्थन की आवश्यकता होती है.

मीणा के इसे पेश करने पर जहां विपक्ष ने विधेयक को वापस लेने की मांग की थी, वहीं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने ध्वनि मत का आह्वान किया था. अंततः बिल पेश किया गया, जिसमें 63 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जबकि 23 सदस्य विरोध में रहे.

विपक्ष के विरोध के बीच सदन के नेता पीयूष गोयल ने मीणा का बचाव करते हुए कहा था कि सदन के हर सदस्य को संविधान से जुड़े विषय पर विधेयक लाने का अधिकार है और उसके इस अधिकार पर प्रश्न नहीं खड़ा किया जा सकता. इस पर बहस होने दी जाए.

इससे पहले जब यह मुद्दा संसद में उठाया गया था, तब कानून मंत्री ने कहा था कि विधि आयोग इस मामले की विस्तार से जांच करेगा.

ज्ञात हो कि समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे. यह सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.

वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.

मालूम हो कि परंपरागत रूप से राम मंदिर के निर्माण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख उद्देश्यों में से एक रहा है. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और चुनावी राज्य गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही है.

हाल में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता को लागू करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.