बिहार के एक संगठन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें एसआईटी द्वारा ज़हरीली शराब त्रासदी की स्वतंत्र जांच के साथ ही राज्य सरकार को पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवज़ा देने का निर्देश देने की भी मांग की गई है. बिहार के छपरा ज़िले में हुई शराब त्रासदी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुआवज़ा देने से इनकार कर दिया है.
नई दिल्ली: बिहार में जहरीली शराब कांड में मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग को लेकर जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, उसी दिन राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि पीड़ितों के परिजन को ‘कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा’.
बीते 14 दिसंबर को बिहार के छपरा (सारण) जिले में जहरीली शराब पीने से मरने वालों की संख्या बढ़कर 39 होने के बाद नीतीश कुमार ने बृहस्पतिवार (15 दिसंबर) को कड़े शब्दों में कहा था, ‘जो पिएगा, वो मरेगा.’ उनके इस बयान की विपक्ष समेत विभिन्न नेताओं ने आलोचना करते हुए इसे शर्मनाक करार दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नीतीश ने बिहार विधानसभा में कहा, ‘शराब पीकर मरने वालों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा. हम अपील करते रहे हैं- पिएंगे तो मर जाएंगे. जो लोग पीने के पक्ष में बात करते हैं, वे आपके लिए कुछ अच्छा नहीं करेंगे.’
बिहार स्थित आर्यावर्त महासभा फाउंडेशन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें एक विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा जहरीली शराब त्रासदी की स्वतंत्र जांच के साथ ही राज्य सरकार को पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा देने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष इस याचिका का जिक्र इसे तत्काल सूचीबद्ध किए जाने के लिए किया गया. पीठ ने इस याचिका को तत्काल सूचीबद्ध किए जाने से इनकार कर दिया.
पीठ ने इस मामले का जिक्र करने वाले वकील पवन प्रकाश पाठक से कहा कि याचिकाकर्ता को मामले को सूचीबद्ध करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा.
शीर्ष अदालत का शुक्रवार से दो सप्ताह का शीतकालीन अवकाश आरंभ हो गया. इसके बाद न्यायालय का कामकाज दो जनवरी को शुरू होगा.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने अप्रैल, 2016 में बिहार में शराब की बिक्री और खपत पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था.
शीर्ष अदालत में दायर याचिका में केंद्र और बिहार सरकार को पक्षकार के रूप में रखा गया है. याचिका में कहा गया है कि जहरीली शराब की बिक्री और खपत को रोकने के लिए बहु-आयामी योजना की जरूरत है.
याचिका में कहा गया है कि 14 दिसंबर को बिहार में हुई जहरीली शराब त्रासदी ने देश में ‘हंगामा’ पैदा कर दिया है.
याचिका में कहा गया है, ‘राजनीतिक दल एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं. जहरीली शराब पीने से अब तक 40 लोगों की मौत हो गई है, जबकि कई अन्य अस्पताल में भर्ती हैं और इस घटना की कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं है.’
इसमें कहा गया है कि यह पहली बार नहीं है जब भारत में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत की घटना सामने आई है. इसमें कहा गया कि हाल के वर्षों में गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक सहित विभिन्न राज्यों में इसी तरह के मामले सामने आए हैं.
इसमें कहा गया है, ‘हूच एक प्रकार की शराब है, जो सस्ती होती है. छोटी अनियमित झुग्गियों में पी जाती है. घटिया गुणवत्ता वाला यह पेय आमतौर पर पानी में रसायन मिलाकर बनाया जाता है.’
याचिका में कहा गया है कि शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले राज्यों में इस प्रकार की जहरीली शराब की बिक्री अधिक होती है. वर्तमान में चार राज्यों गुजरात, बिहार, नागालैंड और मिजोरम में कानून हैं, जो शराब की बिक्री पर रोक लगाते हैं. बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 को राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू करने के लिए लागू किया गया था.
याचिका के अनुसार, ‘इस अधिनियम के तहत किसी भी नशीले पदार्थ या शराब का निर्माण, बॉटलिंग, वितरण, परिवहन, संग्रह, भंडारण, खरीद, बिक्री या खपत प्रतिबंधित है. 2018 से 2020 तक हर साल इस अधिनियम के तहत 45,000 से अधिक एफआईआर दर्ज की गई हैं.’
याचिका में कहा गया है कि फरवरी में शीर्ष अदालत ने पाया था कि बिहार में पटना हाईकोर्ट के अलावा ट्रायल कोर्ट शराबबंदी कानून संबंधी मामलों में जमानत याचिकाओं से भरे हुए हैं.
याचिका के अनुसार, 2016 में जब से बिहार सरकार ने राज्य में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है, उसने प्रतिबंध को लागू करने में अपनी विफलता और कई प्रतिकूल परिणामों के लिए तीखी आलोचना का सामना किया है.
आगे कहा गया है कि हाल ही में लोकसभा में इस मुद्दे पर एक सवाल उठाया गया था, लेकिन शराब माफिया और इसके कार्टेल के खतरे को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.
इसके मुताबिक, 19 जुलाई को जारी लोकसभा के आंकड़ों के अनुसार, बिहार, मध्य प्रदेश और पंजाब सहित पांच राज्यों में 2016 और 2020 के बीच जहरीली शराब के सेवन से सबसे अधिक मौतें हुई हैं.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि देश में हर साल अनुमानित 500 करोड़ लीटर शराब की खपत होती है. लगभग 40 प्रतिशत अवैध रूप से उत्पादित होती है, जो सस्ती भी होती है. ग्रामीण भारत के कुछ हिस्सों में स्थानीय रूप से निर्मित शराब आम बात है.
इसके अनुसार, ‘भारत में 2016 से 2020 के बीच पांच साल में नकली शराब के सेवन से 6,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है. साल 2020 में सबसे कम 947 लोगों की मौत दर्ज की गई थी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)