दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आवास किराया भत्ता (एचआरए) देने के लिए विभिन्न सुरक्षा बलों के कर्मचारियों के साथ एक ‘भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण’ की अनुमति नहीं दी जा सकती है. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के सेवारत अधिकारियों की एक याचिका में गृह मंत्रालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें एचआरए लाभ को केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मचारियों तक सीमित कर दिया गया है.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अर्धसैनिक बलों में आवास किराया भत्ता (एचआरए) अधिकारी स्तर से नीचे के कर्मचारियों (पीबीओरआर) तक ही सीमित नहीं होना चाहिए और रैंक की परवाह किए बिना सभी को यह मिलना चाहिए.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एचआरए देने के लिए विभिन्न सुरक्षा बलों के कर्मचारियों के लिए एक ‘भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण’ की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
बीते शुक्रवार (16 दिसंबर) को गृह मंत्रालय के फैसले के खिलाफ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के सेवारत अधिकारियों की एक याचिका पर विचार करते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस सौरभ बनर्जी की पीठ ने कहा कि अपने परिवारों से दूर रहने की सुरक्षा कर्मचारियों की इच्छाशक्ति का वे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में और आम लोग सम्मान करते हैं.
मंत्रालय ने एचआरए लाभ को केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मचारियों तक सीमित कर दिया है. पीठ ने केंद्र को उन्हें आवास किराया भत्ते का लाभ देने के लिए छह सप्ताह के भीतर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सुरक्षा बल का एक बड़ा हिस्सा दूरदराज के स्थानों पर तैनात है, जहां परिवारों के लिए उचित बुनियादी ढांचा या आवास नहीं है. पारिवारिक आवास के निर्माण के बावजूद, उन्हें और अन्य समान कर्मचारियों को उनके परिवारों को अलग-अलग स्थानों पर रखने के लिए सरकारी आवास या एचआरए लाभ प्रदान नहीं किया जाता है.
अदालत ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में सहायक कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट और सेकेंड-इन-कमांड रैंक वाले ‘ग्रुप ए’ के अधिकारियों की याचिकाओं पर यह आदेश दिया है.
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार के कार्यालयी आदेशों को चुनौती दी थी, जिसमें केवल अधिकारी स्तर से नीचे के कर्मचारियों को बलों में अपने परिवारों को तैनाती वाली जगह के अलावा अन्य स्थानों पर रखने के लिए एचआरए देने की बात कही गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पीठ ने कहा, ‘हम यह समझने में विफल हैं कि सुरक्षा बल के भीतर भेदभाव करने वाले ऐसे नीतिगत फैसलों को जारी रखने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए, विशेष रूप से सुरक्षा बल के उन अधिकारियों के साथ जो देश की सेवा में अपना जीवन व्यतीत करते हैं.’
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और समान रूप से पदस्थ कर्मचारियों को अपने परिवारों को अपनी पोस्टिंग के स्थान पर रखने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, खासकर सीमा पर या दुर्गम इलाकों में जहां बुनियादी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं की कमी है.
उन्होंने तर्क दिया कि 1999 में केंद्र ने अलग परिवार आवास के निर्माण को इस उद्देश्य से मंजूरी दी थी कि यदि अधिकारी को उनकी पोस्टिंग के स्थान पर आवास नहीं मिल रहा है, तो वे विभिन्न स्थानों पर मानक किराये का 10 प्रतिशत भुगतान करके एक अलग परिवार आवास के हकदार होंगे, जहां बीएसएफ ने मकानों का निर्माण किया है.
उन्होंने कहा, ‘इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं और अन्य समान रूप से पदस्थ कर्मचारियों को सरकारी आवास प्रदान नहीं किया जाता है और न ही उन्हें अपने परिवारों को अलग-अलग स्थानों पर रखने के लिए एचआरए का भुगतान किया जाता है.’
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादियों को एचआरए देने के लिए समान क्षेत्रों में तैनात विभिन्न बलों के कर्मचारियों के साथ भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और गृह मंत्रालय के आदेश को रद्द कर दिया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)