सरकार द्वारा जजों की नियुक्तियों से कॉलेजियम प्रणाली बेहतर है: कपिल सिब्बल

कॉलेजियम को लेकर क़ानून मंत्री की टिप्पणियों के बीच एक चैनल से बातचीत में वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सारे सार्वजनिक संस्थानों पर मौजूदा सरकार का नियंत्रण है और यदि वह 'अपने जज' नियुक्त कर न्यायपालिका भी कब्ज़ा लेती है, तो यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक होगा.

/
(फोटो: पीटीआई)

कॉलेजियम को लेकर क़ानून मंत्री की टिप्पणियों के बीच एक चैनल से बातचीत में वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सारे सार्वजनिक संस्थानों पर मौजूदा सरकार का नियंत्रण है और यदि वह ‘अपने जज’ नियुक्त कर न्यायपालिका भी कब्ज़ा लेती है, तो यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक होगा.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने एक समाचार चैनल के साथ साक्षात्कार में कहा कि भले ही कॉलेजियम प्रणाली परफेक्ट नहीं है लेकिन यह सरकार द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण होने से तो बेहतर है.

लाइव लॉ के अनुसार, उन्होंने कहा कि इस समय सारे सार्वजनिक संस्थानों पर मौजूदा सरकार का नियंत्रण है और यदि वह ‘अपने न्यायाधीशों’ की नियुक्ति करके न्यायपालिका पर भी कब्जा कर लेती है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा.

उन्होंने कहा, ‘वे (सरकार) अपने लोगों को वहां (न्यायपालिका) चाहते हैं. अब विश्वविद्यालयों में उनके अपने लोग हैं, कुलपति उनके हैं, राज्यों में राज्यपाल उनके हैं – जो उनकी तारीफें करते नहीं थकते हैं. चुनाव आयोग के बारे में न ही बोलें तो बेहतर है. सभी सार्वजनिक संस्थान उनके द्वारा नियंत्रित होते हैं. ईडी में उनके अपने लोग हैं, आयकर में उनके लोग हैं, सीबीआई उनकी है, अब वे अपने जज भी चाहते हैं.’

सिब्बल ने कहा कि मौजूदा सरकार के पास इतना बहुमत है कि वह सोचती थी कि वह कुछ भी कर सकती है. हालांकि, सिब्बल ने भी मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली पर को लेकर चिंता जताई., लेकिन यह भी जोड़ा कि यह प्रणाली सही नहीं  है फिर भी सरकार द्वारा न्यायाधीश नियुक्त करने से बेहतर है.

सिब्बल ने कहा, ‘मुझे इस बात की काफी चिंता है कि कॉलेजियम सिस्टम कैसे काम करता है लेकिन मैं इस बात से ज्यादा परेशान हूं कि सरकार जजों की नियुक्ति पर भी कब्जा करना चाहती है और वहां भी अपने खास विचारधारा वाले लोगों को भी रखना चाहती है. इन दोनों के बीच चुनाव हो तो मैं किसी भी दिन मैं कॉलेजियम सिस्टम को तरजीह दूंगा.’

उन्होंने कहा कि सरकार के  न्यायपालिका पर कब्जे के प्रयासों का विरोध किया जाना चाहिए क्योंकि ‘अदालतें लोकतंत्र का अंतिम गढ़ हैं, और अगर वह गढ़ भी गिर जाता है, तो कोई उम्मीद नहीं बचेगी.’

सिब्बल ने कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की हालिया टिप्पणियों पर असहमति व्यक्त की.

उन्होंने कहा, ‘किसी के लिए भी इस तरह का सार्वजनिक बयान देना अनुचित है. मुझे लगता है कि अगर कुछ करने की जरूरत भी है, तो अदालत को इसे अपनी प्रक्रिया के अनुसार करना चाहिए. अगर सरकार को लगता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक नई प्रणाली आवश्यक है, तो उसे कानून के माध्यम से नई प्रणाली का प्रस्ताव देना चाहिए. आगे बढ़ने का यही एकमात्र तरीका है. यदि वे राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) में निर्णय को स्वीकार नहीं करते हैं, तो उन्हें इसकी समीक्षा की अपील करनी चाहिए.’

गौरतलब है कि संसद के दोनों सदनों ने 2014 के अगस्त माह में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के प्रावधान वाला 99वां संविधान संशोधन सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी.

बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के अनुरूप न बताते हुए इसे खारिज कर दिया था.

न्यायपालिका पर अपने लगातार हमलों की कड़ी में इसका हवाला देते हुए रिजिजू ने बीते हफ्ते कहा था कि संसद ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था, लेकिन 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे रद्द कर दिया गया था. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली जनता और सदन की भावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है.

हालांकि, उससे पहले इसी महीने एनजेएसी से जुड़े एक सवाल पर स्वयं कानून मंत्री ने ही राज्यसभा में कहा था कि सरकार का इसे फिर से लाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है.

सिब्बल ने जोड़ा कि न्यायपालिका पर हमले केवल एकतरफा हमले थे. इस सिलसिले में न्यायपालिका और सरकार के बीच चल रहे गतिरोध को लेकर उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सभी बयान अदालत में दिए गए हैं और न्यायाधीशों द्वारा कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया गया.’

वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को संवैधानिक बताते हुए उन्होंने कहा कि पहले न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से होनी होती थी. उन्होंने जोड़ा, ‘इस तरह अदालत ने कहा कि ‘परामर्श’ का अर्थ है कि मुख्य न्यायाधीश बेहतर जानते हैं. इसलिए, यह निर्णय न्यायपालिका करेगी. क्योंकि वे जानते हैं कि वकील कौन हैं और जज कौन हैं या किसे नियुक्त करने की जरूरत है. इसमें गलत क्या है? सरकार से सलाह ली गई है. उन्हें नाम भेजे गए हैं. अगर उन्हें कोई समस्या है तो वे नाम वापस भेज सकते हैं.’

सिब्बल ने कहा कि सरकार के पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि कौन-सा वकील अच्छा था और कौन-सा वकील अच्छा नहीं. उन्होंने कहा, ‘इन दिनों मंत्रियों… कानून मंत्रियों के पास केवल डिग्री होती है. वे प्रैक्टिस नहीं करते हैं. वे अपने दफ्तरों में बैठकर कैसे जानेंगे कि कौन-सा वकील काबिल है और कौन नहीं है?’

कॉलेजियम प्रणाली संबंधी चिंताओं को लेकर सिब्बल ने कहा कि यह गैर-पारदर्शी था, इसमें बहुत अधिक ‘भाईचारा’ था. (उनका इशारा इस बात की ओर लगता है कि अक्सर नियुक्तियां निजी रिश्तों के आधार पर होती हैं.)

उन्होंने कहा, ‘इससे भी बुरी बात यह है कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश अब अपनी नियुक्तियों और शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिए सुप्रीम कोर्ट जजों की ओर देखते हैं. इसलिए इसने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता को भी प्रभावित किया है. क्योंकि वे लगातार सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहे हैं, उसे खुश करना चाहते हैं और उन्हें दिखाना चाहते हैं कि वे वही जज हैं जिन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए. यह अच्छा नहीं है.’

हालांकि उन्होंने दोहराया कि वे फिर भी नियुक्तियों कब्जाने वाली सरकार की तुलना में कॉलेजियम प्रणाली को ही तरजीह देंगे.

अंत में सिब्बल ने जोड़ा, ‘बाकी सब तो भगवा है ही, मैं नहीं चाहता कि अदालत भी भगवा हो.’

उल्लेखनीय है कि किरेन रिजिजू की अदालत और कॉलेजियम संबंधी हालिया टिप्पणियों पर कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने भी सवाल उठाया था. उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार न्यायपालिका से टकराने का प्रयास कर रही है.

बीते हफ्तेभर में रिजिजू संसद में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत अर्ज़ियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी की और कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.

कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय है. कानून मंत्री रिजिजू लगातार मौके-बेमौके कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते रहे हैं.

रिजिजू के अलावा बीते 7 दिसंबर को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने पहले संसदीय संबोधन में एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था. उनका कहना था कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है, जिसके संरक्षक उच्च सदन एवं लोकसभा हैं.

यह पहला अवसर नहीं था जब धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद एनजेएसी को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की हो.

बीते 2 दिसंबर को उन्होंने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.

इससे पहले रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर महीने में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq