अग्निवीरों की रैंक सिपाही से नीचे होगी, उनकी नियुक्ति को नियमित सेवा नहीं माना जाएगा: केंद्र

अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ दाख़िल याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बताया है कि अग्निवीर कैडर को अलग कैडर के रूप में बनाया गया है. इसे नियमित सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा. चार साल तक अग्निवीर के रूप में सेवा करने के बाद फिट पाए जाने पर नियमित कैडर की सेवा शुरू होगी.

(प्रतीकात्मक फोटो: फेसबुक)

अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ दाख़िल याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बताया है कि अग्निवीर कैडर को अलग कैडर के रूप में बनाया गया है. इसे नियमित सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा. चार साल तक अग्निवीर के रूप में सेवा करने के बाद फिट पाए जाने पर नियमित कैडर की सेवा शुरू होगी.

(प्रतीकात्मक फोटो: फेसबुक)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बीते बुधवार (14 दिसंबर) को दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया कि अग्निवीर पूरी तरह से अलग कैडर है और भारतीय सेना, नौसेना या वायुसेना में शामिल होने पर अग्निवीर की भारतीय सशस्त्र बलों के साथ चार साल की सेवा को नियमित सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा.

यह प्रस्तावित किया गया कि अगर कोई अग्निवीर चार साल बाद सशस्त्र बलों में शामिल होता है, तो उसे नई भर्ती माना जाएगा.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट बताती है कि सरकार के अनुसार, इसके पीछे तर्क यह है कि एक व्यक्ति चार साल तक अग्निवीर के रूप में बुनियादी प्रशिक्षण से गुजरता है और फिर उच्च स्तर के प्रशिक्षण के लिए एक सिपाही के रूप में सेना में शामिल होता है.

सरकार की ओर से कहा गया, ‘वास्तव में, लगभग 10-15 वर्षों के बाद कोई भी सिपाही ऐसा नहीं होगा जो अग्निवीर न रहा हो.’

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ के समक्ष यह दलील दी.

समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा के मुताबिक भाटी ने कहा, ‘अग्निवीर कैडर को अलग कैडर के रूप में बनाया गया है. इसे नियमित सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा. चार साल तक अग्निवीर के रूप में सेवा करने के बाद फिट पाए जाने पर नियमित कैडर की सेवा शुरू होती है.’

पीठ सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए हाल ही में लागू की गई अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

गौरतलब है कि संविदा आधारित अग्निपथ योजना में चार साल के लिए भारतीय सेना में युवाओं को शामिल करने का प्रस्ताव है. चुने जाने पर इन्हें अग्निवीर कहा जाएगा. इस अवधि के बाद चयनित उम्मीदवारों में से केवल 25 फीसदी को भारतीय सेना में रखा जाएगा, जबकि शेष को सशस्त्र बलों में रोजगार देने से इनकार कर दिया जाएगा.

योजना के लागू होने पर देश भर में व्यापक विरोध देखा गया था, जिनमें से कुछ विरोध प्रदर्शन हिंसक भी हो गए थे. योजना के विरोध में विभिन्न अदालतों में ढेरों याचिकाएं भी लगाई गई हैं.

बहरहाल, अदालत ने सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से सवाल करते हुए कहा कि अगर एक अग्निवीर की जिम्मेदारी एक सिपाही की तरह ही है, तो उन्हें समान काम के लिए कम वेतन कैसे दिया जा सकता है?

हालांकि, भाटी ने कहा कि उनकी जिम्मेदारियां समान नहीं हैं और अग्निवीरों को सिपाहियों को सलाम करना होगा. उन्होंने जवाब दिया कि अग्निवीर कैडर नियमित कैडर से अलग है, इसलिए उनके नियम और शर्तें और जिम्मेदारियां भी सिपाहियों (सैनिकों) से अलग हैं. उन्होंने कहा कि जिम्मेदारी एक जैसी नहीं हो सकती और यहां तक कि अग्निवीरों और सामान्य कैडर का काम भी एक जैसा नहीं है.

इसके बाद, पीठ ने ऐश्वर्या भाटी से एक हलफनामे में सारी जानकारी मांगी.

जस्टिस प्रसाद ने सरकार से यह भी सवाल किया कि चार साल बाद जो 75 फीसदी युवा सेना में भर्ती नहीं होंगे, उनके रोजगार को लेकर क्या योजना है.

जज ने कहा कि ये वे लोग हैं, जिन्हें हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाएगा, लेकिन चार साल बाद वे बेरोजगार हो जाएंगे.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के अनुसार, सरकार विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व-अग्निवीरों को वरीयता देने का इरादा रखती है. उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण के अलावा, अग्निवीरों को पर्याप्त तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान की जाएगी और उन्हें 10वीं और 12वीं कक्षा की डिग्री देने की योजना बनाई गई है.

प्रशांत भूषण और अंकुर छिब्बर उन याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए जिनकी भर्ती में अग्निपथ योजना के कारण देरी हुई थी.

उन्होंने दावा किया कि सरकार उन्हें एक साल से अधिक समय से कह रही थी कि कोविड-19 महामारी और अन्य प्रशासनिक कारणों से उनके नियुक्ति पत्र में देरी हो रही है.

भूषण के मुताबिक, योजना की घोषणा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अप्रत्याशित रूप से की गई थी.

उन्होंने कहा कि कई याचिकाकर्ताओं ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और अन्य अर्धसैनिक बलों में शामिल होने के अवसरों को छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें आश्वासन दिया गया था कि उनके सेना भर्ती पत्र जल्द ही आ जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘मैं अग्निपथ योजना का विरोध नहीं कर रहा हूं, लेकिन भर्ती रोकने का उनका फैसला पूरी तरह से मनमाना और अनुचित है.’

भूषण और छिब्बर ने यह भी बताया कि सरकार ने उनके मामलों में भर्ती करना बंद कर दिया, जबकि कई अन्य स्थानों पर रैली भर्ती जारी रहीं.

उन्होंने सरकार के इस दावे का खंडन किया कि जनसांख्यिकीय और भौगोलिक संतुलन बनाए रखने के लिए रैली की भर्ती की गई थी.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने जोर देकर कहा कि अग्निपथ योजना के कारण भर्ती को नहीं रोका गया था और जो भी प्रक्रियाएं पूरी की जा सकती थीं, उन्हें पूरा कर लिया गया था.

हालांकि, पीठ ने कहा कि (सरकार) हवा में तर्क प्रस्तुत कर रही है और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया कि वह मामले में (सरकार से) निर्देश लेकर आएं.

केंद्र सरकार ने पहले याचिकाओं पर एक समेकित प्रतिक्रिया दायर की थी, जिसमें दावा किया गया था कि अग्निपथ बलों को युवा बना देगा और जो युवा भर्ती किए गए थे, वे अपने कार्यकाल के बाद जब सेना को छोड़ेंगे तो वे राष्ट्रवादी, अनुशासित और कुशल होंगे.

मोदी सरकार के अनुसार, भारतीय सशस्त्र बलों में ‘निचली अधिकारी’ रैंक के डिवीजनों की मौजूदा संरचना के विश्लेषण से पता चला है कि एक जवान की औसत आयु 32 वर्ष है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह केवल 26 वर्ष के आसपास है.

इसका मुख्य कारण सशस्त्र बलों की रिटेंशन पॉलिसी थी, जिसके तहत एक जवान, नाविक या एयरमैन की 15 से 20 साल के बीच सेवा देता है.

इंडिया एक्सप्रेस के मुताबिक, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत से कहा कि योजना का उद्देश्य एक युवा लड़ाकू बल तैयार करना है, जो शारीरिक और मानसिक तौर पर सक्षम हो.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल  ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल दुनिया में सबसे अधिक पेशेवर सशस्त्र बल हैं और जब वे इस तरह के बड़े नीतिगत फैसले ले रहे हों तो उन्हें और अधिक छूट दी जानी चाहिए.

भाटी ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान कई आंतरिक और बाहरी परामर्श किए गए और हितधारकों के साथ कई बैठकें और कई घंटों तक परामर्श भी आयोजित किए गए.

गौरतलब है कि द वायर ने भी अपनी एक रिपोर्ट में बीते नवंबर माह में बताया था कि अग्निपथ योजना के चलते 2021 में वायुसेना की भर्ती परीक्षा देने वाले 6.34 लाख उम्मीदवारों का रिजल्ट रोक दिया गया था.

मालूम हो कि ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा बीते 14 जून को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा की गई थी, जिसमें साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच के युवाओं को केवल चार वर्ष के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है. चार साल बाद इनमें से केवल 25 प्रतिशत युवाओं की सेवा नियमित करने का प्रावधान है.

इस योजना के खिलाफ कई राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. बाद में सरकार ने भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा को एक साल के लिए बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)