छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में खनन परियोजना पर रोक लगाने से अदालत का इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता वाले हसदेव अरण्य में अडाणी समूह द्वारा संचालित और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के स्वामित्व वाली कोयला खनन परियोजना पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस मामले में बहुत स्पष्ट हैं.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता वाले हसदेव अरण्य में अडाणी समूह द्वारा संचालित और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के स्वामित्व वाली कोयला खनन परियोजना पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस मामले में बहुत स्पष्ट हैं.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता वाले हसदेव अरण्य में अडाणी समूह द्वारा संचालित और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) के स्वामित्व वाली कोयला खनन परियोजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और कहा है कि वह विकास के रास्ते में नहीं आएगा.

पर्यावरण संबंधी चिंताओं और जनजातीय अधिकारों पर खनन गतिविधियों के प्रभाव को लेकर इस क्षेत्र में मूल आदिवासी समुदाय लंबे समय से विरोध करते रहे हैं.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कोई अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं को कोयला खनन गतिविधियों के खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिबंध के रूप में नहीं माना जाएगा.

पीठ ने कहा, ‘हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस मामले में बहुत स्पष्ट हैं. हम कानून के तहत आपके अधिकारों का निर्धारण करेंगे, लेकिन विकास की कीमत पर नहीं.’

पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा, ‘अंतरिम राहत से इनकार किया जाता है. हम स्पष्ट करते हैं कि इन अपीलों का लंबित रखा जाना परियोजना के रास्ते में बाधक नहीं बनेगा. यदि इस न्यायालय को अपीलकर्ताओं की ओर से दी गई दलीलों में दम नजर आता है, तो प्रतिवादियों को क्षतिपूर्ति के लिए कभी भी निर्देश दिया जा सकता है.’

शीर्ष अदालत परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली स्थानीय निवासियों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

भारत सरकार ने 2015 में छत्तीसगढ़ में परसा पूर्व और केंते बासन (पीईकेबी) में 15 एमटीपीए कोयला ब्लॉक और राजस्थान को परसा में 5 एमटीपीए क्षमता आवंटित की थी.

हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.

यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इस साल मार्च में छत्तीसगढ़ के समकक्ष भूपेश बघेल से मुलाकात के बाद राज्य सरकार ने सरगुजा और सूरजपुर जिलों की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि परसा खदान के लिए और सरगुजा जिले में पीईकेकेबी फेज-II खदान के लिए 1,136.328 हेक्टयर जमीन का इस्तेमाल गैर-वानिकी कार्य के लिए करने की अनुमति दे दी थी.

वहीं, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित केंटे एक्सटेंशन कोयला खदान पर जनसुनवाई लंबित है.

अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’ भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी और प्रस्तावित खदान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.

वन विभाग ने इस वर्ष मई में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी. जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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