राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ द्वारा कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की न्यायपालिका से जुड़ी टिप्पणी को ‘अनुचित’ कहे जाने के बाद पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने धनखड़ को लिखे पत्र में कहा कि मौजूदा सरकार ने न्यायपालिका के कामकाज में दख़ल के साथ न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया बदलने का प्रयास भी किया है.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ द्वारा सोनिया गांधी की न्यायपालिका से जुड़ी टिप्पणी को ‘अनुचित’ करार दिए जाने के बाद शुक्रवार को धनखड़ को पत्र लिखकर कहा कि आज लोकतंत्र में नहीं, बल्कि उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों में विश्वास की कमी है.
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने बुधवार को पार्टी के संसदीय दल की बैठक में केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि मोदी सरकार सुनियोजित ढंग से न्यायपालिका को कमज़ोर करने का प्रयास कर रही है.
उन्होंने यह भी कहा था कि मंत्रियों और ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की न्यायपालिका पर टिप्पणियां सुधार का उचित सुझाव देने का प्रयास नहीं, बल्कि जनता की नज़र में न्यायपालिका की प्रतिष्ठा कम करने की कोशिश हैं.
इसके बाद राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सोनिया गांधी के बयान को पूरी तरह से ‘अनुचित’ बताते हुए राजनीतिक दलों के नेताओं से आग्रह किया था कि वे उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों पर पक्षपात करने का आरोप न लगाएं.
धनखड़ ने कहा था कि यूपीए अध्यक्ष का बयान उनके विचारों से पूरी तरह से भिन्न है और न्यायपालिका को कमतर करना उनकी सोच से परे है. यूपीए अध्यक्ष का बयान पूरी तरह अनुचित है और लोकतंत्र में उनके विश्वास की कमी का संकेत देता है.
Chairman of the Rajya Sabha has issued a statement yesterday taking exception to a mere mention of fact by Chairperson of the Congress Parliamentary Party in her address to Congress MPs. As Chief Whip of the Congress Party in the Rajya Sabha here is my response to that statement. pic.twitter.com/eLxE9qrIdG
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) December 23, 2022
अब पार्टी महासचिव और राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने उपराष्ट्रपति धनखड़ को लिखे पत्र में यह आरोप भी लगाया है कि मौजूदा सरकार ने न्यायपालिका के कामकाज में दखल देने और न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को बदलने का प्रयास किया है.
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मैं आपके (धनखड़) द्वारा दिए गए उस असाधारण बयान पर अपनी टिप्पणी देने को विवश हुआ हूं, जो कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख की ओर से अपने सांसदों की बैठक में की गई बात से संबंधित थी.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने लिखा, ‘सभापति महोदय, आप हमें संवैधानिक पदों को संभाल रहे लोगों पर पक्षपातपूर्ण रुख अपनाने से बचने के लिए कहते हैं. हम सहमत हैं. हम यह भी बताना चाहते हैं कि यह पूरी बहस पूरी तरह से और बिना किसी उकसावे के कानून मंत्री द्वारा शुरू की गई थी.’
जयराम ने आगे लिखा कि यह तर्क देना कि न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या से अधिक कुछ नहीं कर सकती है, ‘गलत’ था.
उन्होंने जोड़ा, ‘न्यायिक समीक्षा की शक्ति हमारे संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. यह अदालतों को उस कानून को रद्द करने का अधिकार देता है जो संविधान या कार्यपालिका की कार्रवाई का उल्लंघन करता है जो दुर्भावनापूर्ण है. यह संविधान के तहत ठीक यही जांचने-परखने का तरीका है जिसका पालन सरकार द्वारा नहीं किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ही वर्तमान असहजता की स्थिति खड़ी हुई है.’
रमेश ने यह भी कहा, ‘सभापति महोदय, आपने इस बात पर जोर दिया है कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को पूरी निष्ठा के साथ आपने दायरे में रहना चाहिए. इस सरकार से पहले किसी भी सरकार और कॉलेजियम व्यवस्था आने के बाद से किसी सरकार ने न्यायपालिका के कामकाज में इस तरह से दखल नहीं दिया.’
उन्होंने सवाल किया, ‘यह सच्चाई नहीं है कि इस सरकार ने कॉलेजियम की न्यायिक नियुक्ति से संबंधित कई अनुशंसाओं को स्वीकृति देने में विलंब किया और यह जानते हुए विलंब किया कि देरी का मतलब इनकार है? ’
कांग्रेस नेता ने यह भी पूछा, ‘क्या सत्य नहीं है कि इस सरकार ने उन न्यायाधीशों के तबादले को लेकर बहुत तेजी से कदम उठाए जिनके फैसलों को उसने अपने खिलाफ माना? क्या यह सत्य नहीं है कि सरकार ने कई न्यायिक और अर्द्ध-न्यायिक न्यायाधिकरणों- जैसे एनजीटी में नियुक्तियों से संबंधित योग्यता और प्रक्रिया को बदलने का प्रयास नहीं किया, और फिर उनके चयनों को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया?’
जयराम रमेश ने कहा, ‘सभापति महोदय, कृपया इस बहस को संसदीय संप्रभुता के लिए चिंता से जोड़कर प्रस्तुत मत कीजिए. संसदीय संप्रभुता इस तरह सुनिश्चित होती है कि संसद को चलने दिया जाए, विपक्ष को अवसर दिया जाए, प्रधानमंत्री अपनी सरकार को लेकर पूछे गए सवालों का सम्मान करें और उनका जवाब दें.’
उन्होंने कहा, ‘संसदीय संप्रभुता तब सुनिश्चित होती है जब विधेयकों पर मतदान से बचने के लिए उन्हें धन विधेयक के तौर पर नहीं पारित कराया जाए तथा विधेयकों को तय प्रोटोकॉल के तहत स्थायी समिति और प्रवर समिति के पास भेजा जाए.’
कांग्रेस महासचिव ने इस बात पर जोर दिया, ‘हमारा मानना है कि संविधान सर्वोच्च है और सभी संस्थाओं को संविधान का पालन और सम्मान करना चाहिए. सभापति जी, हमारा बयान हमारे लोकतंत्र में विश्वास की कमी को नहीं दर्शाता है जैसा आपने कहा है, बल्कि यह आज के उन पुरुषों और महिलाओं में विश्वास की कमी को दर्शाता है, जो प्रतिष्ठित पदों पर बैठकर इसके पैरोकार बन रहे हैं.’
गौरतलब है कि सोनिया गांधी का न्यायपालिका को लेकर दिया गया बयान बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच चल रहे गतिरोध के बीच आया था, जहां उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियां करने वाली कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.
संसद के शीतकालीन सत्र में ही वह सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत अर्ज़ियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी की और कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई.
रिजिजू के अलावा बीते 7 दिसंबर को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने पहले संसदीय संबोधन में ही एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था.
ज्ञात हो कि संसद के दोनों सदनों ने 2014 के अगस्त माह में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के प्रावधान वाला 99वां संविधान संशोधन सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी.
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के अनुरूप न बताते हुए इसे खारिज कर दिया था.
इसका हवाला देते हुए रिजिजू ने सदन में कहा था कि कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली जनता और सदन की भावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है. संसद ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था, लेकिन 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे रद्द कर दिया गया था.
हालांकि, इसके पहले एनजेएसी के सवाल पर कानून मंत्री ने ही राज्यसभा में कहा था कि सरकार का इसे फिर से लाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है.
रिजिजू की अदालत और कॉलेजियम संबंधी हालिया टिप्पणियों पर बीते सप्ताह कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने भी सवाल उठाया था. उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार न्यायपालिका से टकराने का प्रयास कर रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)