बीते दिनों एक अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक फर्म की रिपोर्ट में पाया गया था कि एल्गार परिषद मामले के एक आरोपी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी के लैपटॉप में उन्हें फंसाने वाले दस्तावेज़ प्लांट किए गए थे. 84 वर्षीय स्वामी की जुलाई 2021 में अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर ज़मानत का इंतज़ार कर रहे थे.
नई दिल्ली: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों ने एल्गार परिषद मामले के आरोपियों की रिहाई और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से छेड़छाड़ एवं मामले में झूठे सबूत गढ़ने के आरोपों की निष्पक्ष जांच का आह्वान किया है.
वे मानवाधिकार रक्षकों पर हमलों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए गुरुवार (22 दिसंबर) को मुंबई मराठी पत्रकार संघ में एकत्र हुए थे.
गौरतलब है कि यह बैठक अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक फर्म ‘आर्सेनल कंसल्टिंग’ की उस रिपोर्ट के लगभग एक हफ्ते बाद हुई है, जिसमें पाया गया था कि मामले के एक आरोपी एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी के लैपटॉप पर आपत्तिजनक साक्ष्य ‘प्लांट’ किए गए थे.
मैसाच्युसेट्स स्थित आर्सेनल कंसल्टिंग की रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘स्टेन स्वामी लगभग पांच वर्ष तक एक मैलवेयर अभियान के निशाने पर थे, जब तक कि जून 2019 में पुलिस द्वारा उनका उपकरण जब्त नहीं किया गया था.’
वॉशिंगटन पोस्ट ने आर्सेनल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, ‘उस अवधि के दौरान हैकर ने स्वामी के कंप्यूटर में पूरा एक्सेस हासिल किया और उनके कंप्यूटर पर पूर्ण कंट्रोल कर लिया और दर्जनों फाइलों को एक छिपे हुए फोल्डर में उनकी जानकारी के बिना डाल दिया था.’
रिपोर्ट के अनुसार, इन दस्तावेजों, ‘माओवादियों को तथाकथित पत्र’ समेत का पुलिस द्वारा स्वामी और अन्य के खिलाफ सबूत के रूप में हवाला दिया गया था.
बता दें कि स्टेन स्वामी को एल्गार परिषद मामले में आरोपी बनाया गया था. झारखंड के 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, प्रेस कॉन्फ्रेंस को जेसुइट्स की फादर स्टेन स्वामी लिगेसी कमेटी के संयोजक फादर जो जेवियर; सेंट जेवियर्स कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक फादर फ्रेजर मैस्करेनहस; स्वामी की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई और पूर्व में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन से जुड़े रहे प्रोफेसर नागार्जुन जी. ने संबोधित किया.
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि स्वामी ने कभी भी अपने लैपटॉप में प्लांट किए गए दस्तावेजों को नहीं देखा, इस अहम बिंदु पर गुरुवार को स्वामी के दोस्तों ने प्रकाश डाला.
हिंदुस्तान टाइम्स ने प्रोफेसर नागार्जुन के हवाले से लिखा है, ‘आर्सेनल को ऐसा कोई भी डिजिटली प्रमाण नहीं मिला है, जिससे यह संकेत मिलता हो कि कंप्यूटर के मालिक और हार्ड डिस्क में जो दस्तावेज प्लांट किए गए थे, उनका आपस में कोई जुड़ाव हुआ था. इसके अलावा, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा साक्ष्य के रूप में जब्त किए गए 45 दस्तावेज इतने कम समय में बनाए गए थे कि किसी भी इंसान के लिए ऐसा करना संभव नहीं था.’
वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने कहा कि रिपोर्ट के निष्कर्षों के प्रति एनआईए का रवैया अपने आप में संदिग्ध है.
उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले अगर अभियोजन एजेंसी पूरी तरह से कंप्यूटर आधारित साक्ष्यों पर भरोसा कर रही है तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह काम करेगा और वे तब तक आश्वस्त नहीं हो सकते जब तक कि उन्हें पता न हो कि इसे प्लांट किया गया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर सभी गिरफ्तार अभियुक्तों के खिलाफ यह आरोप था कि वे राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा थे, तो यह (सबूत प्लांट करना) कैसे एक बड़ा खतरा नहीं है? क्या आप यह जानने के लिए उत्सुक नहीं हैं कि दस्तावेजों को कंप्यूटर में कैसे प्लांट किया गया था? क्या आपको इस बात की चिंता नहीं है कि कल को प्रधानमंत्री या गृह मंत्री के साथ ऐसा हो सकता है?’
उन्होंने कहा कि या तो एनआईए स्वामी के कंप्यूटर में छेड़छाड़ और सबूतों को गढ़ने की जांच नहीं कर रही है या जांच से उन चीजों का पता चलता है, जिनका वे खुलासा नहीं करना चाहते हैं.
मिड डे ने उनके हवाले से लिखा है, ‘मैं केवल एक ही निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि वे जांच को दबाने की कोशिश कर रहे हैं.’
स्वामी के वकीलों के अनुरोध पर आर्सेनल द्वारा स्वामी के कंप्यूटर की एक इलेक्ट्रॉनिक प्रति की जांच के बाद नए निष्कर्ष जारी किए गए थे.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उन्हें 8 अक्टूबर, 2020 को गिरफ्तार किया था. वह मामले के संबंध में गिरफ्तार होने वाले और जून 2018 के बाद आरोपित होने वाले 16वें व्यक्ति थे.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि एक ही हैकर ने एक्टिविस्ट रोना विल्सन और वकील सुरेंद्र गाडलिंग को भी निशाना बनाया था. ये दोनों भी एल्गार परिषद मामले में आरोपी थे.
फरवरी में, विल्सन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उनकी गिरफ्तारी से ठीक पहले उनके लैपटॉप में सबूतों को कथित तौर पर प्लांट करने की जांच की मांग की गई थी.
उनकी याचिका के जवाब में एनआईए ने आर्सेनल कंसल्टिंग के निष्कर्षों को खारिज कर दिया था कि विल्सन के कंप्यूटर में आपत्तिजनक सामग्री डाली गई थी.
फादर जेवियर ने याद दिलाया कि कैसे पर्किंसन के मरीज फादर स्टेन स्वामी ने जेल में उन्हें सिपर और स्ट्रॉ देने से मना किए जाने पर अपना आपा खो दिया था. यह उन्हें एनआईए की विशेष अदालत में अर्जी दाखिल करने के डेढ़ महीने बाद दिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘स्टेन कहा करते थे कि ऐसे भी लोग हैं, जो उनसे भी बदतर जीवन जी रहे हैं और वह इस तरह की किसी चीज के लिए चर्चा में आना पसंद नहीं करते हैं.’
मालूम हो कि यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद’ सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसके चलते कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी.
हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे. पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को स्थानांतरित किए जाने से पहले पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी.
मामले में अब तक 16 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
बीते नवंबर महीने में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी दलित अधिकार कार्यकर्ता और विद्वान आनंद तेलतुंबड़े की जमानत याचिका मंजूर कर ली थी.
हालांकि हाईकोर्ट ने इस आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी, ताकि इस मामले की जांच कर रही एनआईए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सके. तेलतुंबड़े इस मामले में जमानत पाने वाले तीसरे आरोपी हैं.
इससे पहले वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगू कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.
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