बीते 22 दिसंबर को केंद्र की मोदी सरकार ने संसद को बताया था कि भारत और श्रीलंका के बीच के क्षेत्र की सैटेलाइट तस्वीर, जहां पौराणिक राम सेतु के अस्तित्व की बात कही जाती है, में द्वीप और चूना पत्थर वाले उथले किनारे नज़र आते हैं, लेकिन उन्हें ‘निर्णायक तौर पर’ पुल के अवशेष नहीं कहा जा सकता है.
रायपुर: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को राम सेतु पर अपने जवाब के बाद जनता को गुमराह करने के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए.
मुख्यमंत्री बघेल ने केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा संसद में राम सेतु पर दिए गए जवाब को लेकर शनिवार को कहा, ‘जब यही बात कांग्रेस सरकार ने कही थी तब हम लोगों को राम विरोधी कहा गया था. अब यह तथाकथित रामभक्त हैं, उनकी सरकार है और सदन में यह कहते हैं कि पुख्ता सबूत नहीं है, अब इनको किस श्रेणी में रखा जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘भारतीय जनता पार्टी को देश से माफी मांगनी चाहिए. किस प्रकार से देशवासियों को गुमराह किया गया, और आज इस प्रकार से बयान दे रहे हैं, खुद कटघरे में खड़े हो गए हैं.’
बघेल ने कहा, ‘जब बयान आया तब आरएसएस तथा अन्य संगठन कुछ नहीं बोल रहे. यदि सच में राम भक्त होते तब अपनी सरकार की आलोचना करते, लेकिन नहीं कर रहे हैं. इनका मूल चरित्र यह है कि कैसे भी सत्ता प्राप्त करना. राम नाम जपना, पराया माल अपना. यह इनका चरित्र है.’
मालूम हो कि बीते 22 दिसंबर को केंद्र की मोदी सरकार ने संसद को बताया था कि भारत और श्रीलंका के बीच के क्षेत्र की सैटेलाइट तस्वीर, जहां पौराणिक राम सेतु के अस्तित्व की बात कही जाती है, में द्वीप और चूना पत्थर (लाइमस्टोन) वाले उथले किनारे नजर आते हैं, लेकिन उन्हें ‘निर्णायक तौर पर’ पुल के अवशेष नहीं कहा जा सकता है.
अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह राज्यसभा में भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के एक मौखिक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिन्होंने पूछा था कि क्या सरकार भारत के अतीत का वैज्ञानिक मूल्यांकन करने के लिए कोई प्रयास कर रही है.
सिंह ने कहा था कि सैटेलाइट इमेज से राम सेतु की उत्पत्ति और काल के बारे में सीधी जानकारी नहीं मिल सकती है.
जितेंद्र सिंह ने सदन को बताया था, ‘हां, कुछ हद तक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम कुछ टुकड़ों और द्वीपों, कुछ प्रकार के लाइमस्टोन वाले उथले किनारों की खोज कर सके हैं, जिन्हें निश्चित रूप से अवशेष या पुल के हिस्से नहीं कहा जा सकता है, लेकिन उनके पास स्थान में एक निश्चित मात्रा में निरंतरता है जिसके माध्यम से कुछ अनुमान लगाया जा सकता है.’
मंत्री ने कहा था, ‘तो जो मैं संक्षेप में कहने की कोशिश कर रहा हूं, वह यह है कि वास्तव में वहां मौजूद सटीक संरचना के बारे में कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक संकेत है कि वे संरचनाएं मौजूद हैं.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अंतरिक्ष विभाग वास्तव में इसमें लगा हुआ है. जहां तक राम सेतु के संबंध में उनके द्वारा यहां पूछे गए सवाल की बात है, तो यह पता लगाने की कुछ सीमाएं हैं, क्योंकि इतिहास 18,000 साल से अधिक पुराना है और यदि आप इतिहास पर जाएं, तो वह पुल लगभग 56 किमी लंबा था.’
कथित राम सेतु को एडम्स ब्रिज के तौर पर भी जाना जाता है. यह तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की एक शृंखला है.
इससे पहले यूपीए सरकार ने पर्यावरणविद आरके पचौरी की अगुवाई वाली एक समिति बनाते हुए सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक एलाइनमेंट की जांच करने का जिम्मा सौंपा था. इस परियोजना में 83 किलोमीटर लंबे गहरे जल मार्ग के निर्माण की परिकल्पना की गई थी, जो मन्नार को पाक जलडमरूमध्य से जोड़ता था, जो कथित राम सेतु का हिस्सा बनने वाले चूना पत्थर की शृंखला को हटाकर किया जाना था.
भाजपा इस बात का हवाला देते हुए कि भगवान राम ने सीता को बचाने के लिए लंका पहुंचने के लिए यह मार्ग बनाया था और इसकी रक्षा की जानी चाहिए, परियोजना का विरोध कर रही है.
राम सेतु दशकों से राजनीतिक, धार्मिक और पारिस्थितिक विवादों का केंद्र बिंदु रहा है. इस ‘पुल’ को वर्तमान राजनीति हिंदू पौराणिक मान्यता से उपजी है कि संरचना का निर्माण वानरों की एक सेना द्वारा किया गया था, जिसका नेतृत्व भगवान हनुमान ने भगवान राम की ओर से किया था. राम की सेना उनकी पत्नी सीता को बचाने के लिए लंका की ओर बढ़ रही थी, जिन्हें रावण द्वारा बंदी बना लिया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)