महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले में स्थित बारसु गांव में एक तेल रिफाइनरी परियोजना प्रस्तावित है, लेकिन यहां 20 हज़ार साल पुराने शैल चित्र मौजूद हैं, जिन्हें राज्य पुरातत्व विभाग एवं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारकों के रूप में चिह्नित किया गया है. विशेषज्ञ रिफाइनरी से इन्हें नुकसान पहुंचने को लेकर चिंतित हैं.
मुंबई: महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के बारसु गांव में एक तेल रिफाइनरी के लिए प्रस्तावित स्थल (साइट) विवाद के केंद्र में आ गया है, क्योंकि ऐसी संभावना जताई जा रही है कि इससे क्षेत्र में पाए जाने वाले प्राचीन शैल चित्रों को नुकसान पहुंच सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शैल कला (रॉक आर्ट) या शैल चित्र (पेट्रोग्लिफ्स) अनुमानित तौर पर 20 हजार साल पुराने हैं और राज्य पुरातत्व विभाग एवं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारकों के रूप में चिह्नित किए गए हैं. इन्हें यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में भी जोड़ा गया है.
रत्नागिरी तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स के रूप में जानी जाने वाली इस परियोजना को रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा विकसित किया जा रहा है, जो इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड का एक संयुक्त उद्यम है.
रत्नागिरी जिले के नानर गांव में परियोजना को विकसित करने की मूल योजना को 2019 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने स्थानीय निवासियों और तत्कालीन भाजपा सहयोगी शिवसेना के विरोध के कारण रोक दिया था, जिनका कहना था कि इससे पारंपरिक आजीविका प्रभावित होगा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा.
फडणवीस के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बाद में केंद्र सरकार को नए परियोजना स्थल के तौर पर बारसु-सोलगांव पर विचार करने का सुझाव दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक हालांकि, अब यह वैकल्पिक स्थल भी मुश्किलों में घिर गया है. एक तरफ इसका विरोध बारसु गांव के निवासी भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय कारणों का हवाला देते हुए कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ संरक्षणवादियों और पुरात्वविदों का कहना है कि इससे शैल चित्रों को नुकसान पहुंचेगा.
पिछले महीने, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों की एक समिति ने बारसु, रुंधे, देवीहसोल, देवाचे गोथने, उक्षी, चावे और कशेली जैसे कई गांवों में फैले हुए शैल चित्रों का निरीक्षण और अध्ययन करने के लिए रत्नागिरी का दौरा किया था और उनके संरक्षण के उपाय प्रस्तावित किए थे.
समिति की अध्यक्षता करने वाले वरिष्ठ पुरात्वविद प्रो. वसंत शिंदे ने अखबार को बताया कि टीम ने साइट का मूल्यांकन करने और विरासत को संरक्षित करने के लिए आवश्यक धनराशि का प्रस्ताव बनाने के लिए दौरा किया था और यह अध्ययन करने के लिए दौरा किया था कि कैसे पूरे देश व दुनिया को इन स्थलों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए परियोजना शुरू कर सकते हैं, जिससे बताया जा सके कि यह स्थल अद्वितीय हैं.
उन्होंने कहा, ‘सरकार को रिफाइनरी परियोजना के लिए भूमि आवंटित करने से पहले एक संयुक्त सर्वेक्षण कराना चाहिए था. भविष्य में जब भी सरकार रिफाइनरी परियोजना के लिए दूसरी जमीन तय करती है तो उसे ऐसा करना चाहिए. शैल चित्र यूनेस्को की संभावित सूची में हैं. अगर बारसु में परियोजना शुरू होती है तो चट्टानों की नक्काशी निर्माण कार्य और रासायनिक प्रतिक्रिया के कारण नष्ट हो जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘अगर परियोजना को यहां से 5-6 किलोमीटर दूर स्थानांतरित कर दिया जाए तो शैल चित्र बचाए जा सकते हैं. हम सरकार से इसकी अनुशंसा करेंगे.’
जिस क्षेत्र में पेट्रोकेमिकल रिफाइनरी बनाई जाएगी, वहां 250 से अधिक शैल चित्रों की पहचान की गई है. पुरात्वविद प्रो. शिंदे ने कहा कि धन की कमी के कारण इन पर ध्यान नहीं दिया गया है. वे इसके लिए एक व्यापक प्रस्ताव भेजने की प्रक्रिया में हैं.
शिंदे ने कहा, ‘पेट्रोग्लिफ्स या जियोग्लिफ्स (जमीन पर बनाई गईं आकृतियां) को दुनिया भर में एक संपत्ति के तौर पर देखा जाता है और इन्हें स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है. हमें विकास और ऐतिहासिक खजाने के संरक्षण के बीच संतुलन बनाना होगा. रिफाइनरी परियोजना को कोंकण में कहीं और स्थापित किया जा सकता है, लेकिन यहां नहीं.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक सरकारी अधिकारी ने कहा है कि रिफाइनरी के लिए बारसु साइट को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है और इस पर केवल विचार किया जा रहा है.
रत्नागिरी का एक गैर-लाभकारी संगठन ‘निसर्ग यात्री संस्था’ पिछले कुछ वर्षों से कोंकण क्षेत्र में शैल चित्रों को खोजने और संरक्षण करने का काम कर रहा है. इसके कर्ताधर्ता सुधीर रिसबद के अनुसार, निसर्ग ने 72 से अधिक गांवों से 1,700 से अधिक शैलचित्रों की खोज की है.
रिसबद ने रत्नागिरी के जिला कलेक्टर और महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) के कार्यकारी अभियंता को पत्र लिखकर बारसु में प्रस्तावित स्थल से परियोजना को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है.
वे कहते हैं, ‘जिस क्षेत्र में कारखाने का प्रस्ताव किया गया है, वहां लगभग 170 शैल चित्रों वाले दो स्थल हैं, जो यूनेस्को की संभावित सूची में हैं. इन संरचनाओं के संरक्षण की जरूरत है, क्योंकि वह हमें मानवीय इतिहास और संस्कृति के बारे में बताती हैं. वास्तव में तो इन स्थलों को इस तरह से विकसित किया जाना चाहिए कि जिससे दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके. यह हमारी समृद्ध विरासत है.’