आईसीएआर ने अपने वर्तमान और पूर्व अधिकारियों को जीएम सरसों पर विचार रखने से रोका

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने अपने सेवारत और पूर्व अधिकारियों को एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि वे जीएम सरसों की पर्यावरणीय मंज़ूरी के संबंध में कोई भी राय व्यक्त न करें, न लेख लिखें. इस क़दम की आलोचना करते हुए पर्यावरणविदों, कृषि विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि जीएम सरसों के संबंध में छिपाने के लिए काफी कुछ है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने अपने सेवारत और पूर्व अधिकारियों को एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि वे जीएम सरसों की पर्यावरणीय मंज़ूरी के संबंध में कोई भी राय व्यक्त न करें, न लेख लिखें. इस क़दम की आलोचना करते हुए पर्यावरणविदों, कृषि विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि जीएम सरसों के संबंध में छिपाने के लिए काफी कुछ है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

बठिंडा: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा अपने वर्तमान और यहां तक कि पूर्व अधिकारियों को भी जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों डीएमएच-11 की पर्यावरणीय मंजूरी के बारे में कोई भी राय व्यक्त करने या कोई भी लेख लिखने से रोकने के कदम की पर्यावरणविदों, कृषि विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, ‘चुप करने के इस आदेश’ को कार्यकर्ताओं ने सच्चाई को लोगों तक पहुंचने से रोकने का एक कदम बताया है.

उनका आरोप है कि अधिकारी मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय मिथकों पर जीएम सरसों के बारे में कड़वी सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं.

इसस पहले एक प्रेस विज्ञप्ति में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने जीएम सरसों की मंजूरी से संबंधित विभिन्न मसलों पर स्पष्टीकरण दिया था, जिसमें उत्पाद से जोखिम का आकलन भी शामिल था.

पाठक ने सेवारत या पूर्व अधिकारियों द्वारा इस विषय पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (ईपीए), 1986 के तहत नियामकों द्वारा उल्लेखित दस्तावेजों और निर्णयों से अलग राय पेश करने या लेख लिखने के खिलाफ भी आदेश जारी किए थे.

हालांकि, कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि जोखिमपूर्ण और अनचाही जीएम फसलों के खिलाफ वैज्ञानिक आवाजों को दबाना अपने आप में इस ओर इशारा करता है कि बताने से ज्यादा छिपाया अधिक जा रहा है.

शर्मा ने कहा, ‘विज्ञान इस तरह काम नहीं करता है. विज्ञान सवाल उठाने के लिए खुला हुआ है. चुप कराने का आदेश जारी करने से यह साफ है कि आईसीएआर के पास छिपाने के लिए काफी कुछ है. यह झूठ को सामने आने देना नहीं चाहता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जीएम सरसों के बारे में आईसीएआर द्वारा किए गए किसी भी दावे को चुनौती दी जा सकती है. खराब जीएम सरसों की किस्म के इस्तेमाल की अनुमति का उद्देश्य वास्तव में देश में जोखिमपूर्ण और हानिकारक जीएम खाद्य पदार्थों के लिए द्वार खोलना है. अमेरिका पहले से ही भारत में जीएम चावल और सेब के प्रवेश पर जोर दे रहा है. हम जीएम फसलों को स्वीकारने के लिए अमेरिका के भारी दबाव में दिखाई देते हैं.’

जीएम मुक्त भारत गठबंधन की कविता कुरुगंती का आरोप है कि सरकार यह कहकर वैज्ञानिकों को चुप रहने के लिए डरा रही है कि अगर वे बिना अधिकार/अनुमति के बोलते हैं तो उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई होगी.

उन्होंने कहा, ‘कोई भी यह दावा नहीं करता है कि डीएमएच-11 से खाद्य तेल आयात की समस्या का समाधान हो जाएगा. आईसीएआर के महानिदेशक की प्रेस विज्ञप्ति 9 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के हलफनामे में किए गए दावों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) से अलग है.’

पंजाब के पर्यावरण संगठन खेती विरासत मिशन का कहना है कि यह आदेश ठीक नहीं है, क्योंकि देश को मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण से संबंधित हर चीज जानने की जरूरत है.

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण मंत्रालय के तहत गठित जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने गत 25 अक्टूबर को ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड किस्म डीएमएच-11 को पर्यावरणीय मंजूरी दी थी.

सरकार का यह फैसला हरित समूहों के विरोध के बीच आया था, जिनका कहना है कि जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) और संगठन की कृषक इकाई- भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने भी जीएम सरसों को पर्यावरण मंजूरी देने की अनुशंसा किए जाने का विरोध किया है.

वहीं, बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या जीएम सरसों को पर्यावरण मंजूरी देने के पीछे कोई बाध्यकारी कारण रहा है कि ऐसा न करने से देश असफल हो जाएगा.

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