न्याय विभाग ने कार्मिक, क़ानून और न्याय पर संसदीय समिति के समक्ष एक प्रस्तुतिकरण देते हुए कहा है कि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से न्यायाधिकरण, पीठासीन अधिकारी या न्यायिक सदस्यों के तौर पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से वंचित रह जाएंगे. साथ ही अन्य सरकारी कर्मचारी भी इस तरह की मांग उठाएंगे.
नई दिल्ली: न्याय विभाग ने एक संसदीय समिति को बताया है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से बेहतर काम नहीं करने वाले न्यायाधीशों की सेवा के वर्षों का विस्तार हो सकता है और सरकारी कर्मचारियों द्वारा भी इसी तरह की मांग उठाने पर इसका व्यापक प्रभाव हो सकता है.
विभाग ने यह भी कहा कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उपायों के साथ-साथ न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर भी विचार किया जाएगा.
जुलाई में, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद को सूचित किया था कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है.
न्याय विभाग ने कार्मिक, कानून और न्याय पर संसदीय समिति के समक्ष एक प्रस्तुति दी. समिति की अध्यक्षता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद एवं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कर रहे हैं.
विधि और न्याय मंत्रालय के विभाग की प्रस्तुति में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की संभावना सहित न्यायिक प्रक्रियाओं और सुधारों का विवरण शामिल था.
विभाग ने अपनी प्रस्तुति में कहा, ‘सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से कुछ अनुपयुक्त मामलों में सेवा की अवधि बढ़ाने के संदर्भ में लाभ बढ़ सकता है और बेहतर प्रदर्शन नहीं करने वाले और खराब प्रदर्शन करने वाले न्यायाधीशों की सेवाओं को जारी रखना पड़ सकता है.’
इसने यह भी सुझाव दिया कि लंबित मामलों को कम करने और न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए.
विभाग ने अपनी प्रस्तुति में कहा, ‘यह अनुचित होगा यदि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों में पारदर्शिता, जवाबदेही सुनिश्चित करने, जिला और अधीनस्थ न्यायपालिका में मौजूदा रिक्तियों को भरने और लंबित मामलों को कम करने के लिए अन्य उपायों के साथ सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि पर विचार किया जाता है.’
विभाग ने कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल), पीठासीन अधिकारी या न्यायिक सदस्यों के तौर पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से वंचित रह जाएंगे. इसने यह भी आगाह किया कि सेवानिवृत्ति की आयु का व्यवस्था में नकारात्मक प्रभाव हो सकता है.
विभाग ने कहा, ‘न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि का व्यापक नकारात्मक प्रभाव होगा, क्योंकि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारी कर्मचारी, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां, आयोग आदि इसी तरह की मांग उठा सकते हैं. इसलिए, इस मुद्दे पर समग्रता से विचार किए जाने की जरूरत है.’
बता दें कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं और देश के 25 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करने के लिए 2010 में संविधान का 114वां संशोधन विधेयक पेश किया गया था. हालांकि इस पर संसद में विचार नहीं किया गया था और 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ ही यह समाप्त हो गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)