मथुरा: शाही ईदगाह के सर्वे संबंधी अदालती आदेश पर आपत्ति दर्ज करवाएगा मुस्लिम पक्ष

मथुरा की एक अदालत के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के भूमि विवाद को लेकर मस्जिद परिसर के निरीक्षण का आदेश देने के बाद शाही मस्जिद ईदगाह इंतेजामिया समिति का कहना है कि वे अगली सुनवाई में इस पर आपत्ति दाख़िल करेंगे. वहीं, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अदालती आदेश को पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन बताया है.

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मथुरा की एक अदालत के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के भूमि विवाद को लेकर मस्जिद परिसर के निरीक्षण का आदेश देने के बाद शाही मस्जिद ईदगाह इंतेजामिया समिति का कहना है कि वे अगली सुनवाई में इस पर आपत्ति दाख़िल करेंगे. वहीं, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अदालती आदेश को पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन बताया है.

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मथुरा: मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि- शाही मस्जिद ईदगाह मामले में अमीन (राजस्व विभाग के अधिकारी) द्वारा ईदगाह के सर्वेक्षण के स्थानीय अदालत के आदेश पर मुस्लिम पक्ष आगामी 20 जनवरी को अपनी आपत्ति दाखिल करेगा.

शाही मस्जिद ईदगाह इंतेजामिया समिति के सचिव एवं अधिवक्ता तनवीर अहमद ने रविवार को कहा, ‘हम सर्वे संबंधी आदेश पर 20 जनवरी को आपत्ति दाखिल करेंगे.’

गौरतलब है कि मथुरा की एक स्थानीय अदालत ने शनिवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह विवाद को लेकर हिंदू सेना के दावे पर ईदगाह के अमीन सर्वेक्षण की रिपोर्ट 20 जनवरी को तलब की है.

अदालत ने इस मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 20 जनवरी तय की है. अमीन को उससे पूर्व संबंधित रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने का निर्देश दिया गया है.

वादी के अधिवक्ता शैलेश दुबे के मुताबिक आठ दिसंबर को दिल्ली निवासी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता एवं उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) की न्यायाधीश सोनिका वर्मा की अदालत में यह दावा किया था कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़कर ईदगाह तैयार कराई गई थी.

वादियों ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर मंदिर बनने तक का ‘पूरा इतिहास’ अदालत के समक्ष पेश करने का दावा किया था. उन्होंने वर्ष 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह के बीच हुए समझौते को भी ‘अवैध’ बताते हुए निरस्त किए जाने की मांग की है.

अदालत ने वादी की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकृत करते हुए अमीन द्वारा सर्वेक्षण कर रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं. इस संबंध में पहले 22 दिसंबर को अदालत में सुनवाई होनी थी, लेकिन अपरिहार्य कारणों से ऐसा नहीं हो सका. हालांकि अब अमीन को 20 जनवरी तक ईदगाह की रिपोर्ट अदालत में पेश करनी होगी.

वहीं, बीते मई माह में मथुरा में जिला न्यायाधीश राजीव भारती ने श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य निजी पक्षों द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद के निर्माण वाली भूमि के स्वामित्व की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की अनुमति दी थी. उस याचिका को स्वीकार करते हुए जज भारती ने दीवानी मुकदमे को सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेज दिया था.

इससे पहले, 2021 में एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री ने छह अन्य लोगों के साथ पहली बार एक सिविल जज के समक्ष भगवान की ओर से दावा पेश किया था.

सिविल जज ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि कोई भी याचिकाकर्ता मथुरा से नहीं है, जो इस मसले में वैध हित रखता हो. जब फैसले के खिलाफ अपील की गई तो जज भारती ने याचिका मंजूर कर ली.

विभिन्न याचिकाकर्ताओं द्वारा मथुरा की अदालतों में कम से कम एक दर्जन मामले दायर किए गए हैं. सभी याचिकाओं में एक आम मांग 13.77 एकड़ के परिसर से मस्जिद को हटाने की है. इस परिसर की भूमि केशवदेव मंदिर से भी साझा होती है.

ओवैसी बोले- कोर्ट का आदेश पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है

इस बीच एनडीटीवी के मुताबिक, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अदालती फैसले से असहमति जाहिर की है और कहा है कि यह उपासना स्थल अधिनियम का उल्लंघन है.

एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने अदालती आदेश को गलत बताया।

ओवैसी ने संवाददाताओं से कहा, ‘मेरी राय में आदेश गलत है. सिविल कोर्ट ने 1991 के अधिनियम का उल्लंघन किया है. उन्होंने सर्वेक्षण को पहले उपाय के रूप में इस्तेमाल किया है, जिसको लेकर कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह अंतिम उपाय होना चाहिए. मैं आदेश से असहमत हूं.’

ओवैसी उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का हवाला दे रहे थे. यह क़ानून किसी भी पूजा स्थल को परिवर्तित करने पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त 1947 वाली स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान करता है. हालांकि, यह क़ानून अयोध्या के राम मंदिर संबंधित मामले पर लागू नहीं होता है.

सांसद ओवैसी ने कहा कि अदालत ने शाही ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि के बीच के समझौते को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘शाही ईदगाह ने 12 अक्टूबर 1968 को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड की अनुमति से यह समझौता किया था. मुझे उम्मीद है कि शाही ईदगाह बोर्ड इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेगा और अदालत इस पर गौर करेगी.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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