छत्तीसगढ़ में आरक्षण का दायरा 76 प्रतिशत तक बढ़ाने वाले दो संशोधन विधेयक राज्यपाल के पास सहमति के लिए लंबित हैं, जिन्होंने अपनी स्वीकृति देने से पहले राज्य की कांग्रेस सरकार से 10-बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन पर विधेयकों को रोकने और एक वैधानिक निकाय को कमज़ोर करने का प्रयास करने का आरोप लगाया है.
रायपुर: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविवार को कहा कि राज्य सरकार ने प्रदेश में आरक्षण का दायरा 76 प्रतिशत तक बढ़ाने वाले दो संशोधन विधेयकों पर राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब सौंप दिए हैं.
बघेल ने राजधानी रायपुर में पत्रकारों से कहा कि राज्यपाल को अब विधेयकों पर अपनी सहमति देनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार द्वारा उनके सवालों का जवाब देने के बाद वह सहमति दे देंगी.
राज्य विधानसभा ने प्रदेश में विभिन्न श्रेणियों की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार, सरकारी नौकरियों में आरक्षण और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से संबंधित दो विधेयक – छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण) संशोधन विधेयक और छत्तीसगढ़ शैक्षिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक- दो दिसंबर को पारित किए थे.
विधेयकों के अनुसार, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.
विधेयक राज्यपाल के पास सहमति के लिए लंबित थे, जिन्होंने अपनी स्वीकृति देने से पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से 10-बिंदुओं पर विवरण मांगा था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के राज्य मीडिया सेल के प्रमुख सुशील शुक्ला को के मुताबिक, आरक्षण को बढ़ाकर 76 प्रतिशत करने से संबंधित दो विधेयकों के समर्थन में छत्तीसगढ़ की सत्तारूढ़ कांग्रेस आने वाले 3 जनवरी को रायपुर के राजभवन में एक रैली निकालेगी, क्योंकि राज्यपाल अनुसुइया उइके ने इसे अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया है और 10 सवाल उठाए हैं.
मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल ने सोमवार को उइके को ‘अहंकारी’ कहा. उन पर ‘किसी बहाने’ विधेयकों को रोकने और एक वैधानिक निकाय को कमजोर करने का प्रयास करने का आरोप लगाया है.
उन्होंने कहा, ‘मेरे अधिकारियों ने मुझसे 10 सवालों का जवाब नहीं देने के लिए कहा था, क्योंकि इसके लिए संविधान में कोई व्यवस्था नहीं है. फिर भी मैंने उनके अहंकार को शांत करने के लिए सवालों के जवाब दिए, ताकि 2.75 करोड़ से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचाने वाले विधेयक पास हो जाएं.’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘लेकिन अब उनका कहना है कि वह इस मामले को देखने के लिए एक कानूनी सलाहकार की तलाश करेंगी. क्या कानूनी सलाहकार अब विधानसभा से बड़ा है?’
मुख्यमंत्री ने कहा कि केवल हाईकोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय ही कार्यपालिका के फैसलों की जांच कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘क्या सलाहकार अब उनका काम करेंगे? यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. यही कारण है कि विधेयकों को रोका जा रहा है.’
बघेल ने बीते 25 दिसंबर को मीडिया से कहा था कि चूंकि उनकी सरकार ने राज्यपाल के सवालों का जवाब दे दिया है, इसलिए उन्हें विधेयकों पर हस्ताक्षर करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘राज्यपाल ने कहा था कि जब तक उन्हें जवाब नहीं मिल जाता तब तक वह विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी, लेकिन अब जवाब भेज दिए गए हैं, इसलिए उन्हें अब उन पर हस्ताक्षर करना चाहिए.’
उइके ने बाद में कहा कि वह जवाबों को देखेंगी और विधेयकों पर फैसला लेंगी.
इस बीच, भारतीय जनता पार्टी के विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि राज्य सरकार को आरक्षण विधेयकों पर राज्यपाल को अपना जवाब सार्वजनिक करना चाहिए.
इस साल सितंबर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने के पूर्ववर्ती रमन सिंह सरकार के 2012 के आदेश को रद्द करने के बाद आरक्षण का मुद्दा भड़क उठा था.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सितंबर में वर्ष 2012 में जारी सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया था. न्यायालय ने कहा था कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है.
वर्ष 2012 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण चार प्रतिशत घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण 12 प्रतिशत बढ़ाकर 20 से 32 प्रतिशत कर दिया गया था. वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण 14 प्रतिशत अपरिवर्तित रखा गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)