‘सरकार की अनियंत्रित निगरानी’ रोकने के लिए डेटा संरक्षण विधेयक में संशोधन की मांग

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने एक रिपोर्ट में सवाल उठाते हुए कहा है कि भारत के पहले डेटा संरक्षण क़ानून को लोगों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, न कि उनकी निजता पर आक्रमण का हथियार बनना चाहिए.

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(फोटो: रॉयटर्स)

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने एक रिपोर्ट में सवाल उठाते हुए कहा है कि भारत के पहले डेटा संरक्षण क़ानून को लोगों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, न कि उनकी निजता पर आक्रमण का हथियार बनना चाहिए.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारत सरकार से अपने प्रस्तावित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2022 में संशोधन करने की अपील की है, जिसके संबंध में तर्क दिया है कि यह ‘राज्य की अनियंत्रित निगरानी’ के अलावा सरकार को इसके अनुपालन से खुद को छूट देने के लिए सक्षम बनाता है.

संगठन द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मसौदा विधेयक में नागरिक समाज संगठनों और डिजिटल अधिकार विशेषज्ञों द्वारा उठाई गईं चिंताओं और दिए गए फीडबैक को शामिल किया जाना चाहिए.

सार्वजनिक परामर्श के लिए खुला रखे जाने के बाद वर्तमान में मसौदा विधेयक पर संसद द्वारा विचार किया जा रहा है. दिसंबर 2019 में संसद में पहली बार पेश किए जाने और अगस्त 2022 में विपक्षी सांसदों द्वारा आलोचना के चलते वापस लिए जाने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा भारत के पहले डेटा गोपनीयता कानून को लागू करने का यह दूसरा प्रयास है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि पिछले विधेयक के मामले में उठाई गईं चिंताओं को नए विधेयक में भी दूर नहीं किया गया है, जिसमें बच्चों के लिए पर्याप्त संरक्षण प्रदान करने में विफल होना भी शामिल है.

संगठन की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि भारत का प्रस्तावित डेटा संरक्षण कानून बच्चों समेत सभी के निजता और निगरानी करने संबधी राज्य की बढ़ती शक्तियों से सुरक्षा के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है.

उन्होंने कहा, ‘डिजिटल मंचों पर अधिक से अधिक डेटा उपलब्ध होने के साथ ही भारत सरकार को लोगों की निजता और सुरक्षा को प्राथमिकता देने की जरूरत है.’

प्रस्तावित कानून के तहत सरकार को दी गईं शक्तियों को ‘व्यापक’ बताते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने आलोचना की है कि ‘संप्रभुता, अखंडता या विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों’ को परिभाषित करने में गहरी अस्पष्टता है, जिसका इस्तेमाल सरकार प्रस्तावित कानून के विभिन्न प्रावधानों से खुद को छूट देने के लिए करना चाहती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि विधेयक सुरक्षा और सार्वजनिक आदेश की अपनी व्याख्याओं पर विस्तार से बात नहीं करता है, जिनका इस्तेमाल करके सरकार ने अपने आलोचकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उचित प्रक्रिया पालन के अधिकारों का लंबे समय तक उल्लंघन किया है.

मानवाधिकार संगठन ने यह भी कहा कि प्रस्तावित कानून अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के हिसाब से नहीं बना है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने डेटा संरक्षण बोर्ड को लेकर भी चिंता जाहिर की, जो कानून के तहत सरकार के अधीन कार्य करेगा. बोर्ड के सदस्यों को सरकार की अपनी शर्तों के मुताबिक नियुक्त करेगी और हटाएगी, मतलब कि बोर्ड के कामकाज के किसी भी स्वतंत्र निरीक्षण की अनुमति नहीं होगी.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘परीक्षण की यह अनुपस्थिति निगरानी और लोगों की गोपनीयता के संभावित सामूहिक उल्लंघन की सुविधा प्रदान करेगी.’

साथ ही कहा कि पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं और अन्य को लक्षित करने के लिए इजराइली स्पायवेयर पेगासस द्वारा किए गए निगरानी के आरोपों की जांच करने के लिए सरकार पहले से ही ‘अनिच्छुक’ रही है.

इसने आगे कहा कि प्रस्तावित डेटा संरक्षण कानून तब तक यूजर्स के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहेगा, जब तक कि यह निगरानी करने के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसियों पर नजर रखना सुनिश्चित नहीं करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा आयोजित करने पर भाजपा सरकार की तीव्र कार्रवाई और इसके द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2021 लागू करने के बीच निगरानी संबंधी चिंताएं सामने आई हैं. ये नियम ऑनलाइन सामग्री पर अधिक सरकारी नियंत्रण की अनुमति देते हैं और ऑनलाइन निजता के अधिकार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से कम कर देंगे.’

प्रस्तावित कानून के संभावित प्रभाव पर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मसौदा कानून बच्चों को भी ऑनलाइन संरक्षण प्रदान करने में असफल रहता है और उन्हें तकनीक से उभरे जोखिमों से रुबरू कराएगा.’

गांगुली ने कहा, ‘भारत के पहले डेटा संरक्षण कानून को लोगों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, न कि उनकी निजता पर और आक्रमण का हथियार बनना चाहिए.’

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.