हाल ही में ख़त्म हुए संसद सत्र में कई बार उच्च न्यायपालिका पर निशाना साधने के बाद केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक कार्यक्रम में कहा कि मोदी सरकार कभी भी अपनी सीमा पार नहीं करेगी और न्यायपालिका के क्षेत्र में दख़ल नहीं देगी.
नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को कहा कि केंद्र और न्यायपालिका के बीच कोई तनाव नहीं है और केंद्र अदालतों में लंबित मामलों को सुलझाने में न्यायपालिका को पूरा सहयोग दे रहा है.
रिजिजू हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय परिसर में ‘भारतीय अधिवक्ता परिषद’ के तीन दिवसीय 16वें राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, रिजिजू ने कहा, ‘आप सुनते हैं कि केंद्र और न्यायपालिका के बीच मनमुटाव है और सरकार न्यायपालिका को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रही है. कुछ राजनीतिक दल इस तरह के बयान देते हैं और कई बार न्यूज चैनल भी ख़बरों में मसाले के लिए ऐसा करते हैं. लेकिन पीएम मोदी ने हमेशा कहा है कि संविधान सबसे पवित्र किताब है और देश संविधान से चलेगा.’
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को लोगों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए न कि सरकार के प्रति.
कानून मंत्री ने कहा कि एक प्रतिबद्ध न्यायपालिका से यह अर्थ है कि वे देश के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने कहा, ‘सालों पहले यह कहा जा रहा था कि न्यायाधीशों की वरिष्ठता का उल्लंघन किया जा रहा था और प्रतिबद्ध न्यायपालिका की बात पर बहस चल रही थी कि कि जजों को कार्यपालिका की इच्छा के अनुसार काम करना चाहिए. लेकिन इस सरकार के लिए न्यायाधीशों को देश के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए न कि सरकार के प्रति.’
उन्होंने जोड़ा, ‘कुछ के लिए प्रतिबद्ध न्यायपालिका का अर्थ है अपने अधिकारियों के प्रति प्रतिबद्ध होना, लेकिन हमारे लिए ‘प्रतिबद्ध’ होने का अर्थ राष्ट्र के लिए है.’
उन्होंने कहा कि जनता न्यायाधीशों की समीक्षा कर सकती है. रिजिजू ने कहा, ‘हम जनता के लिए काम कर रहे हैं और जो लोग न्यायपालिका में काम कर रहे हैं उन्हें भी यह सोचना चाहिए कि किसी न किसी रूप में वे भी जनता के प्रति जवाबदेह हैं.’
उन्होंने न्यायपालिका को आश्वासन दिया कि नरेंद्र मोदी सरकार कभी भी उस रेखा का उल्लंघन नहीं करेगी और न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक सीमाओं के प्रति सावधान रहना चाहिए ताकि मीडिया को कोई ‘मसाला’ न मिले और सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेदों के बारे में कयास न लगाए जा सके.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली वर्तमान सरकार कभी भी अपनी सीमा पार नहीं करेगी और न्यायपालिका के क्षेत्र में दखल नहीं देगी. उन्होंने जोड़ा, ‘लेकिन अगर आप (अपनी सीमा का) उल्लंघन करते हैं, तो आप मीडिया को चारा देते हैं. इसलिए जब कोई कहता है कि हम न्यायपालिका को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रहे हैं, तो ऐसा कहने वालों को अपने भीतर देखने का प्रयास करना चाहिए. पीएम मोदी के नेतृत्व में ऐसा गलती से भी नहीं होगा.
उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर स्वयं कानून मंत्री किरेन रिजिजू ही कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.
हाल ही में संपन्न हुए संसद सत्र में ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत अर्ज़ियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कहा था, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी की थी और कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.
रिजिजू के अलावा बीते 7 दिसंबर को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने पहले संसदीय संबोधन में एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था.
इसे लेकर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और पार्टी के सांसद मनीष तिवारी भी सवाल उठा चुके हैं.
इससे पहले भी रिजिजू ने न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान दिए थे. नवंबर महीने में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.
सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.
नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.