बुनियादी अधिकार अब ‘लक्ज़री’ बन गए हैं, उन्हें मिलते हैं जो सरकार के रुख़ को मानते हैं: मुफ़्ती

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया कि 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर के प्रत्येक निवासी के मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से निलंबित कर दिया गया है और विलय के समय दी गई संवैधानिक गारंटी को अचानक असंवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया गया.

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महबूबा मुफ्ती. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया कि 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर के प्रत्येक निवासी के मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से निलंबित कर दिया गया है और विलय के समय दी गई संवैधानिक गारंटी को अचानक असंवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया गया.

महबूबा मुफ्ती. (फोटो: पीटीआई)

श्रीनगर: पूर्व मुख्यमंत्री और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि इन निराशाजनक परिस्थितियों में आशा की एकमात्र किरण न्यायपालिका है. ये बात कहते हुए उन्होंने भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर के लोगों के न्याय, गरिमा और मानवाधिकारों के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप का आग्रह किया है.

मुफ्ती ने शनिवार को कहा कि देश में बुनियादी अधिकार अब ‘लक्जरी’ बन गए हैं, जो केवल उन्हें दिए जाते हैं, जो राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक मामलों में सरकार के रुख को मानते हैं.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में महबूबा ने यह भी कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर में विश्वास की कमी तथा अलगाव की भावना और बढ़ गई है.

महबूबा ने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए पत्र में यह भी कहा, ‘मैं आपको देश और विशेष रूप से जम्मू कश्मीर की मौजूदा स्थिति के बारे में गहरी चिंता के साथ लिख रही हूं. लोकतंत्र में सामान्य मामलों में जमानत देने में निचली न्यायपालिका की अक्षमता पर आपकी हाल की टिप्पणियों को समाचार पत्रों में केवल एक कॉलम की खबर के रूप में जगह मिलने के बजाय एक निर्देश के रूप में अपनाया जाना चाहिए था.’

शुक्रवार (30 दिसंबर) को आंध्र प्रदेश न्यायिक अकादमी के उद्घाटन के अवसर पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि देश भर में 63 लाख से अधिक मामलों में वकीलों की अनुपलब्धता के कारण देरी हुई है और 14 लाख से अधिक मामले किसी प्रकार के दस्तावेज या रिकॉर्ड के इंतजार में लंबित हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए, क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं.

उन्होंने कहा था कि जमानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है, लेकिन व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या एक विरोधाभासी तथा स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है.

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय संविधान में निहित और सभी भारतीय नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का खुलेआम हनन किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से यह मूल अधिकार ही अब विलासिता (Luxuries) बन गए हैं और केवल उन चुनिंदा नागरिकों को दिए जाते हैं, जो राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मामलों पर सरकार के रुख का पालन करते हैं.’

महबूबा ने आरोप लगाया कि 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर के प्रत्येक निवासी के मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से निलंबित कर दिया गया है और विलय के समय दी गई संवैधानिक गारंटी को अचानक तथा असंवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया गया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पत्र में कहा गया है, ‘किसी भी सभ्य समाज में सच्चाई को बनाए रखना आदर्श है, लेकिन जम्मू कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्पष्ट रूप से कहने की स्वतंत्रता सबसे बड़ी दुर्घटना बन गई है. यूएपीए जैसे कठोर आतंकवाद-रोधी कानूनों को सतही और तुच्छ आधारों पर बेरहमी से लोगों पर थोपा जा रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘ईडी, एनआईए या सीबीआई सभी सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल व्यापारियों, राजनीतिक नेताओं और यहां तक कि युवाओं को शिकार बनाने के लिए किया जाता है. हमारे सैकड़ों युवा विचाराधीन कैदी के रूप में जम्मू कश्मीर के बाहर की जेलों में सड़ रहे हैं.’

मुफ्ती ने आगे कहा, ‘उनकी हालत और खराब हो गई है, क्योंकि वे गरीब परिवारों से हैं, जिनके पास कानूनी सहायता प्राप्त करने के साधनों की कमी है. ऐसी परिस्थितियों में यह सरकार कम से कम और मानवीय निर्णय ले सकती है और उन्हें (बाहर की जेलों में बंद युवाओं को) जम्मू कश्मीर में स्थानांतरित कर सकती है.’

उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को पासपोर्ट देने से सरकार के इनकार का उदाहरण देते हुए मुफ्ती ने आम लोगों की दुर्दशा पर आश्चर्य जताया.

महबूबा मुफ्ती ने पत्र में कहा है, ‘यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब विश्वास की कमी और अलगाव की भावना 2019 के बाद से और बढ़ी है. एक मौलिक अधिकार होने के नाते पासपोर्ट जब्त हैं. पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है और यहां तक कि उन्हें देश से बाहर जाने से भी रोका जा रहा है. इतना ही नहीं एक पुलित्जर पुरस्कार विजेता युवा फोटो पत्रकार को भी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए विदेश जाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया.’

उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार द्वारा की गईं ज्यादतियों पर प्रकाश डालने की वजह से फहद शाह और सज्जाद गुल जैसे पत्रकारों को यूएपीए और पीएसए (जन सुरक्षा अधिनियम) के तहत एक साल से अधिक समय से जेल में रखा गया है.’

उन्होंने कहा, ‘फादर स्टेन स्वामी, सिद्दीक कप्पन, उमर खालिद और अनगिनत अन्य लोगों (जिन्हें जमानत नहीं मिली है) इस बात की पुष्टि करते हैं कि जमानत एक अपवाद है, आदर्श नहीं. 2019 में मेरी बेटी द्वारा दायर मेरे अपने बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में मेरी रिहाई का आदेश देने में सुप्रीम कोर्ट को एक साल से अधिक का समय लगा, जबकि मुझे पीएसए के तहत मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया था.’

उनके अनुसार, ‘एक और उदाहरण मेरी बूढ़ी मां का पासपोर्ट है, जिसे सरकार ने मनमाने ढंग से रोक रखा है. हमें जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर किए हुए दो साल से अधिक हो गए हैं. यहां भी हमें तारीख पर तारीख दी जाती है और कोई फैसला नजर नहीं आता. यह मेरी बेटी इल्तिजा और मेरे पासपोर्ट को बिना किसी स्पष्ट कारण के रोके जाने के अलावा है.’

महबूबा मुफ्ती ने लिखा, ‘मैंने इन उदाहरणों को केवल इस तथ्य को समझाने के लिए दिया है कि अगर एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक सांसद होने के नाते मेरे अपने मौलिक अधिकारों को इतनी आसानी से निलंबित किया जा सकता है तो आप आम लोगों की दुर्दशा की कल्पना कर सकते हैं. मेरी मां भी एक पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री, एक वरिष्ठ राजनेता और दो बार के मुख्यमंत्री की पत्नी हैं, उनका पासपोर्ट अज्ञात आधार पर खारिज कर दिया गया था.’

पत्र के आखिर में मुफ्ती ने कहा कि देश की अदालतें उनकी आखिरी उम्मीद और आश्रय हैं और उन्होंने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के हस्तक्षेप की मांग की.

उन्होंने कहा कि इन अंधकारमय परिस्थितियों में आशा की एकमात्र किरण न्यायपालिका है, जो इन गलतियों को ठीक कर सकती है. महबूबा ने कहा, ‘हालांकि, मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न्यायपालिका के साथ हमारे अनुभव ने हमारे आत्मविश्वास की भावना को बहुत अधिक प्रेरित नहीं किया है.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि मैं निराशावाद और निराशा से अभिभूत नहीं होना चाहती हूं. हमारे देश की अदालतों में मेरा सर्वोच्च सम्मान और अटूट विश्वास है. दुर्भाग्य से यह इस तरह के अंधकारमय और निराशाजनक समय में मेरी आशा का अंतिम आश्रय भी है कि न्यायपालिका अपना कर्तव्य निभाएगी.’

मुफ्ती ने लिखा, ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि आपके (सीजेआई) हस्तक्षेप से न्याय मिलेगा और जम्मू कश्मीर के लोग गरिमा, मानवाधिकारों, संवैधानिक गारंटी और एक लोकतांत्रिक राजनीति की अपनी उम्मीदों को महसूस करेंगे, जिसने उनके पूर्वजों को महात्मा गांधी के भारत में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था.’

मालूम हो कि महबूबा मुफ़्ती को पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म कर जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद से ही नजरबंद कर लिया गया था. उन्हें अक्टूबर 2020 में 14 महीने की नजरबंदी के बाद रिहा किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)