सरकार ने संसद में बताया- केंद्र द्वारा संरक्षित 50 स्मारक ‘लापता’

बीते महीने संसद में पेश एक रिपोर्ट में संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि देश में कुल 3,693 केंद्रीय संरक्षित स्मारक हैं, जिनमें से पचास 'खो चुके' हैं. इन 'लापता' स्मारकों में 11 स्मारक उत्तर प्रदेश के हैं और दो-दो दिल्ली और हरियाणा के. सूची में असम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड के स्मारक भी शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/एएसआई भुवनेश्वर सर्कल)

बीते महीने संसद में पेश एक रिपोर्ट में संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि देश में कुल 3,693 केंद्रीय संरक्षित स्मारक हैं, जिनमें से पचास ‘खो चुके’ हैं. इन ‘लापता’ स्मारकों में 11 स्मारक उत्तर प्रदेश के हैं और दो-दो दिल्ली और हरियाणा के. सूची में असम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड के स्मारक भी शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/एएसआई भुवनेश्वर सर्कल)

नई दिल्ली: संस्कृति मंत्रालय द्वारा संसद में बताया गया है कि भारत के 3,693 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों में से 50 ‘लापता’ हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मंत्रालय द्वारा 8 दिसंबर को परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसदीय स्थायी समिति को ‘इशूज़ रिलेटिंग टू अनट्रेसेबल मॉन्यूमेंट्स एंड प्रोटेक्शन ऑफ मॉन्यूमेंट्स इन इंडिया’ नाम की रिपोर्ट में कहा गया, ‘…यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (संस्कृति मंत्रालय) के संरक्षण में राष्ट्रीय महत्व के कई स्मारकों का तेजी से हो रहे शहरीकरण, जलाशयों (और) बांधों द्वारा जलमग्न होने दूरस्थ स्थानों (और) घने जंगलों में पता लगाने में होने वाली कठिनाइयों, उनके उचित स्थान के मौजूद न होने आदि के कारण पिछले कुछ वर्षों में मिलना मुश्किल हो गए हैं.’

समिति ने रिपोर्ट के अनुसार 18 मई, 2022 को संस्कृति सचिव गोविंद मोहन, एएसआई महानिदेशक वी. विद्यावती और एजेंसी के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का पक्ष सुना था.

अखबार के अनुसार, इन ‘लापता’ स्मारकों में 11  स्मारक उत्तर प्रदेश के थे और दो-दो दिल्ली और हरियाणा के. सूची में असम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड के स्मारक भी शामिल हैं.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, इन स्मारकों में से 14 तेजी से हुए शहरीकरण के कारण खोए हैं, 12 जलाशयों या बांधों के चलते जलमग्न हैं और शेष 24 के ठीक स्थान मालूम नहीं हो सके हैं.

अधिकारियों ने इस अख़बार को बताया, ‘ऐसे कई मामले शिलालेखों और पट्टिकाओं से संबंधित हैं, जिनका कोई निश्चित पता नहीं है. उन्हें स्थानांतरित या क्षतिग्रस्त किया जा सकता था और ऐसे में उनका पता लगाना मुश्किल हो सकता है.’

उन्होंने यह भी कहा कि 1930, 40 और 50 के दशक में केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारकों की एक बड़ी संख्या की पहचान की गई थी और आजादी के बाद के दशकों में ‘उन्हें संरक्षित करने के बजाय नए स्मारकों की खोज पर ध्यान केंद्रित किया गया.’

अधिकारियों ने जोड़ा, ‘इसके अलावा, एक नए आजाद हुए देश की सरकारों की प्राथमिकताएं स्वास्थ्य और विकास थीं, जबकि हेरिटेज को नजरअंदाज किया गया. आज भी वे किसी विशेष क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बड़े और छोटे स्मारकों की देखरेख को लेकर मानव संसाधन की भीषण कमी से जूझ रहे हैं.

2013 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने स्वतंत्रता के बाद किए गए अपनी तरह के पहले भौतिक सत्यापन के बाद 92 स्मारकों को ‘लापता’ घोषित किया था.

संसदीय समिति ने कहा कि ‘कैग द्वारा लापता घोषित किए गए 92 स्मारकों में से 42 की पहचान एएसआई के प्रयासों के कारण की गई है लेकिन शेष 50 स्मारकों की सूची में से 14 तेजी से हुए शहरीकरण से प्रभावित हैं, 12 जलाशय/बांधों के कारण जलमग्न हैं  जबकि शेष 24 का स्थान अब भी मालूम नहीं है.’

पैनल ने शहरीकरण/जलाशयों के खोने वाले स्मारकों और न मिलने वाले 24 स्मारकों के बारे में मंत्रालय द्वारा किए गए भेद की कड़ी आलोचना की है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि कैग ऑडिट में एएसआई के साथ मिलकर देश भर के 3,678 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों में से सिर्फ 1,655 स्मारकों और स्थलों का संयुक्त भौतिक निरीक्षण शामिल था. जिन 24 स्मारकों का पता नहीं लगाया जा सका है, वे इन्हीं 1,655 स्मारकों में से हैं.

उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2022 में द वायर  ने एक रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सरकारी अनदेखी का शिकार बने संरक्षित स्मारकों के खोने के बारे में बताया था.

रिपोर्ट के अनुसार, जिले में एएसआई द्वारा संरक्षित 18 ऐतिहासिक स्मारक हैं. संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, 18 में से दो लापता हैं. लेकिन शहर में खोजने पर पांच स्मारकों का कोई ठिकाना नहीं मिलता और अन्य सात भी प्रशासनिक अनदेखी का शिकार हैं.

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