पासपोर्ट अधिकारी जम्मू कश्मीर सीआईडी के प्रवक्ता की तरह व्यवहार नहीं कर सकता: हाईकोर्ट

जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मां गुलशन नज़ीर की याचिका पर सुनवाई करते हुए पासपोर्ट जारी करने से मना करने पर अधिकारियों को फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि जब एक प्राधिकार को शक्ति दी गई है तब इसका उपयोग न्यायपूर्ण तरीके से होना चाहिए, मनमाने तरीके से नहीं.

महबूबा मुफ़्ती. (फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मां गुलशन नज़ीर की याचिका पर सुनवाई करते हुए पासपोर्ट जारी करने से मना करने पर अधिकारियों को फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि जब एक प्राधिकार को शक्ति दी गई है तब इसका उपयोग न्यायपूर्ण तरीके से होना चाहिए, मनमाने तरीके से नहीं.

महबूबा मुफ़्ती. (फोटो: पीटीआई)

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मां को पासपोर्ट जारी करने से मना करने पर अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा है कि पासपोर्ट अधिकारी सीआईडी के ‘प्रवक्ता की तरह व्यवहार नहीं कर सकता.’

जस्टिस एमए चौधरी ने महबूबा की मां गुलशन नजीर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि पासपोर्ट जारी करने या इसके नवीनीकरण के उनके अनुरोध को खारिज करने का कोई आधार नहीं है.

न्यायाधीश ने शनिवार (31 दिसंबर) को सुनाए अपने फैसले में कहा, ‘याचिकाकर्ता के खिलाफ रत्ती भर भी ऐसे आरोप नहीं हैं, जो किसी सुरक्षा चिंता की ओर इशारा करते हों. सीआईडी-सीआईके द्वारा तैयार की गई पुलिस सत्यापन रिपोर्ट में पासपोर्ट अधिनियम 1967 की धारा 6 के वैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.’

न्यायाधीश ने कहा, ‘याचिकाकर्ता के संबंध में एकमात्र पहलू उनकी ओर से अलग से या महबूबा मुफ्ती के साथ संयुक्त बैंक खातों से हुए कुछ लेन-देन की जांच के संदर्भ में दो एजेंसियों – प्रवर्तन निदेशालय और सीआईडी-सीआईके – द्वारा की गई जांच है.’

अदालत ने कहा कि पासपोर्ट अधिकारी द्वारा पासपोर्ट जारी करने से मना करना ‘सोच-समझ कर फैसला नहीं लेना’ है.

अदालत ने कहा, ‘कम से कम, पासपोर्ट अधिकारी को यदि आवश्यक हो तो तथ्यों व परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में पुलिस व सीआईडी से यह पूछना चाहिए कि क्या याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल है. ऐसी स्थिति में पुलिस सत्यापन रिपोर्ट में जाए बिना पासपोर्ट अधिकारी की ओर से मना करने को केवल दिमाग का इस्तेमाल नहीं करने के तौर पर देखा जाएगा.’

सीआईडी रिपोर्ट और संदर्भित तथ्यों व परिस्थितियों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा, ‘पासपोर्ट अधिकारी सीआईडी के प्रवक्ता के तौर पर काम नहीं कर सकता.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) की एक रिपोर्ट के आधार पर पासपोर्ट कार्यालय ने गुलशन नजीर का पासपोर्ट जारी करने से इनकार कर दिया था.

अदालत ने सीआईडी रिपोर्ट का विश्लेषण किए बिना उस पर कार्रवाई करने के लिए पासपोर्ट अधिकारी की आलोचना की. अदालत ने कहा, ‘सिर्फ जम्मू-कश्मीर सीआईडी की रिपोर्ट के आधार पर, जिसने पासपोर्ट जारी करने की सिफारिश नहीं की, पासपोर्ट अधिकारी पासपोर्ट अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपनी आंखें बंद करके उस पर कार्रवाई नहीं कर सकता.’

अदालत ने कहा, ‘जब एक प्राधिकार को शक्ति दी गई है, तब इसका उपयोग न्यायपूर्ण तरीके से होना चाहिए, मनमाने तरीके से नहीं, जैसा कि इस मामले में किया गया.’

अदालत ने कहा कि सीआईडी द्वारा तैयार की गई पुलिस सत्यापन रिपोर्ट दो आवेदनों के संबंध में थी, एक याचिकाकर्ता की ओर से और दूसरी उनकी बेटी महबूबा की ओर से.

अदालत ने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि पासपोर्ट अधिकारी ने इस रिपोर्ट का विस्तार से विश्लेषण करने के बजाय सीआईडी के पत्र पर कार्रवाई की थी. रिपोर्ट में याचिकाकर्ता की बेटी (महबूबा) द्वारा उनकी विचारधारा और गतिविधियों का संदर्भ देने के संबंध में विस्तृत जानकारी है, जिसे भारत की सुरक्षा के लिए जोखिम बताया गया था. हालांकि, रिपोर्ट में याचिकाकर्ता (गुलशन नजीर) के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है. अपीलीय प्राधिकरण ने भी पीवीआर (पुलिस सत्यापन रिपोर्ट) का अवलोकन नहीं किया और बिना किसी आधार के सुरक्षा के गलत आधार पर पासपोर्ट अधिकारी के आदेश को बरकरार रखा.’

अदालत ने कहा कि गुलशन नजीर के खिलाफ राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा होने का कोई आरोप नहीं है.

अदालत ने कहा कि खुद के 80 वर्ष से अधिक उम्र का होने का दावा करने वाली याचिकाकर्ता को किसी प्रतिकूल सुरक्षा रिपोर्ट के अभाव में भारतीय नागरिक के तौर पर विदेश यात्रा के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उन्हें प्रदत्त मूल अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने उक्त आदेश को निरस्त कर दिया और पासपोर्ट अधिकारी को नए सिरे से पूरे विषय पर विचार करने तथा फैसले की प्रति उन्हें तामील किए जाने की तारीख से छह हफ्तों के अंदर आदेश जारी करने को कहा.

गौरतलब है कि महबूबा मुफ्ती ने भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे पत्र में पासपोर्ट मुद्दे का उल्लेख किया था.

जम्मू कश्मीर में नागरिकों के मानवाधिकार का मुद्दा उठाते हुए महबूबा मुफ्ती ने पत्र में कहा था, ‘एक और उदाहरण मेरी बूढ़ी मां का पासपोर्ट है, जिसे सरकार ने मनमाने ढंग से रोक रखा है. हमें जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर किए हुए दो साल से अधिक हो गए हैं. यहां भी हमें तारीख पर तारीख दी जाती है और कोई फैसला नजर नहीं आता. यह मेरी बेटी इल्तिजा और मेरे पासपोर्ट को बिना किसी स्पष्ट कारण के रोके जाने के अलावा है.’

महबूबा मुफ्ती ने लिखा, ‘मैंने इन उदाहरणों को केवल इस तथ्य को समझाने के लिए दिया है कि अगर एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक सांसद होने के नाते मेरे अपने मौलिक अधिकारों को इतनी आसानी से निलंबित किया जा सकता है तो आप आम लोगों की दुर्दशा की कल्पना कर सकते हैं. मेरी मां भी एक पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री, एक वरिष्ठ राजनेता और दो बार के मुख्यमंत्री की पत्नी हैं, उनका पासपोर्ट अज्ञात आधार पर खारिज कर दिया गया था.’

उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को पासपोर्ट देने से सरकार के इनकार का उदाहरण देते हुए मुफ्ती ने आम लोगों की दुर्दशा पर आश्चर्य जताया था.

महबूबा मुफ्ती ने पत्र में कहा था, ‘यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब विश्वास की कमी और अलगाव की भावना 2019 के बाद से और बढ़ी है. एक मौलिक अधिकार होने के नाते पासपोर्ट जब्त हैं. पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है और यहां तक कि उन्हें देश से बाहर जाने से भी रोका जा रहा है. इतना ही नहीं एक पुलित्जर पुरस्कार विजेता युवा फोटो पत्रकार को भी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए विदेश जाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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