2008 के मालेगांव विस्फोट मामले के आरोपी सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने इस आधार पर आरोप मुक्त करने का अनुरोध किया था कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश पर हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए काम करने वाले संगठन ‘अभिनव भारत’ की बैठकों में हिस्सा लिया, जिसमें मालेगांव धमाके की साज़िश रची गई थी.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को आरोप मुक्त करने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि बम धमाके की घटना में संलिप्तता के दौरान वह सरकारी कार्य नहीं कर रहे थे. इस धमाके में छह लोगों की जान गई थी.
जस्टिस एएस अधिकारी और जस्टिस प्रकाश नाइक की पीठ ने 24 पन्नों के आदेश में सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के अभाव में मामला नहीं चल सकने के आधार पर आरोप मुक्त करने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह आरोपी के इस तर्क को स्वीकार नहीं करती कि वह अपनी ड्यूटी कर रहे थे और तब सवाल उठता है कि उन्होंने क्यों धमाके को रोकने की कोशिश नहीं की.
सितंबर 2008 में हुए विस्फोट के मामले में पुरोहित और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत छह अन्य आरोपी कठोर गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम ) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मुकदमे का सामना कर रहे हैं.
भारतीय सेना के अधिकारी पुरोहित ने इस आधार पर आरोपमुक्ति की मांग की थी कि अभियोजन पक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत मंजूरी नहीं ली थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चार्जशीट में पुरोहित और अन्य पर निर्वासन में सरकार बनाने की इच्छा रखने का आरोप लगाया गया है. चार्जशीट में कहा गया है, ‘वे भारत के संविधान से असंतुष्ट थे और अपना संविधान तैयार करना चाहते थे, पुरोहित कश्मीर से विस्फोटक रसायन आरडीएक्स की खरीद के लिए जिम्मेदार थे.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पुरोहित की वकील नीला गोखले ने सुनवाई के दौरान कहा कि एनआईए ने कहा था कि पुरोहित ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए काम करने वाले संगठन ‘अभिनव भारत’ की बैठकों में भाग लेने के बारे में सूचित किया था.
नीला गोखले ने आगे कहा कि जिस दिन कथित अपराध हुआ, उस दिन वह सरकारी अधिकारी थे और कानूनी तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे; इसलिए अभियोजक एजेंसी को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए सक्षम प्राधिकार से अनुमति लेनी चाहिए.
हालांकि एनआईए की ओर से पेश अधिवक्ता संदेश पाटिल ने कहा कि पुरोहित के वकील ने अपने मामले का समर्थन करने के लिए जिस दस्तावेज का हवाला दिया, वह सेना के अधिकारी (पुरोहित) का अपना था, न कि एजेंसी का. पुरोहित द्वारा पेश किए गए कुछ अन्य दस्तावेज सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी से थे, जो न्यायिक अदालतों में अस्वीकार्य हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एनआईए के वकील ने इस बात से इनकार किया कि पुरोहित ड्यूटी पर थे, जब वह साजिश की बैठकों में भाग ले रहे थे.
पाटिल ने यह भी प्रस्तुत किया कि पुरोहित को आरोप मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि मुकदमा एक उन्नत चरण में है – एनआईए द्वारा अब तक लगभग 300 गवाहों को ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया है – और मामले की योग्यता के अनुसार उनकी दोषसिद्धि या दोषमुक्ति का फैसला किया जा सकता है.
उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि सेना के एक अधिकारी ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट के समक्ष बयान दिया था कि अभिनव भारत में घुसपैठ करने और खुफिया जानकारी एकत्र करने की उनकी कथित योजनाओं के बारे में अपने वरिष्ठों को सूचित करने के लिए पुरोहित की ओर से कोई आधिकारिक संपर्क नहीं किया गया था.
अदालत ने कहा, ‘अपीलकर्ता का तर्क है कि उन्हें ‘अभिनव भारत’ की जानकारी एकत्र करने का सरकारी कार्य दिया गया था, अगर उसे मान भी लिया जाए तो सवाल उठता है कि क्यों नहीं उन्होंने मालेगांव के असैन्य क्षेत्र में धमाके को रोकने की कोशिश की, जिसकी वजह से छह निर्दोष लोगों की जान गई और करीब 100 लोग गंभीर रूप से घायल हुए.’
फैसले में कहा गया कि बम धमाके जैसी गतिविधि में संलिप्त होना, जिसमें छह लोगों की जान गई, पुरोहित द्वारा किया गया सरकारी कार्य नहीं है.
अदालत ने कहा कि अभियोजन द्वारा जमा दस्तावेज स्पष्ट तौर पर संकेत देते हैं कि पुरोहित को कभी सरकार की ओर से सेना के सशस्त्र बल में काम करने के बावजूद ‘अभिनव भारत’ में काम करने की अनुमति नहीं दी गई थी.
पीठ ने कहा, ‘अपीलकर्ता (पुरोहित) को कथित संगठन के लिए कोष जमा करने और उसकी गैर कानूनी गतिविधियों के लिए हथियार व विस्फोटक खरीदने के लिए उक्त धन वितरित करने की भी अनुमति नहीं दी गई थी. मौजूदा अपराध में अपीलकर्ता मुख्य साजिशकर्ता है.’
अदालत ने कहा कि पुरोहित ने सक्रिय रूप से अन्य आरोपियों के साथ हिस्सा लिया और गैर-कानूनी गतिविधि की आपराधिक साजिश रचने के लिए बैठकें आयोजित की.
सेवारत सैन्य अधिकारी पुरोहित ने इस आधार पर आरोप मुक्त करने का अनुरोध किया था कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश पर ‘अभिनव भारत’ की बैठकों में हिस्सा लिया, जिसमें मालेगांव धमाके की साजिश रची गई थी.
हालांकि, हाईकोर्ट ने पुरोहित की अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि उनके द्वारा किए गए कथित अपराध का उनके सरकारी कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं है.
गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में छिपाकर रखे गए विस्फोटक में हुए धमाके से छह लोगों की मौत हो गई थी और करीब 100 अन्य लोग घायल हुए थे. महाराष्ट्र के नासिक जिला स्थित मालेगांव सांप्रादायिक रूप से संवेदनशील शहर है.
महाराष्ट्र पुलिस की शुरुआती जांच के मुताबिक हमले में इस्तेमाल मोटरसाइकिल वर्तमान में भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम रजिस्टर थी, जिसके आधार पर उनकी गिरफ्तारी हुई. इस मामले की जांच बाद में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अपने हाथ में ली और इस समय सभी आरोपी जमानत पर हैं.
मालूम हो बीते दिसंबर महीने में प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले से खुद को आरोपमुक्त किए जाने संबंधी अपनी याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट से वापस ले ली थी.
आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य करना) और 18 (आतंकी साजिश रचना) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
इसके अलावा उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 324 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 153ए (दो समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)