पुणे के यरवदा केंद्रीय कारागर के तीन विचाराधीन क़ैदियों की 31 दिसंबर को एक अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई. पुलिस ने मौतों को प्राकृतिक बताया है, जबकि मृत क़ैदियों के परिजनों ने जांच की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि मौतें जेल वॉर्डन द्वारा मारपीट किए जाने के बाद हुई हैं.
पुणे: महाराष्ट्र के पुणे शहर में यरवदा केंद्रीय कारागार में तीन विचाराधीन कैदियों की विभिन्न बीमारियों के कारण मौत हो गई.
पुलिस ने बताया कि इन कैदियों का एक सरकारी अस्पताल में उपचार हो रहा था. तीनों कैदियों के परिवार के सदस्यों ने जेल प्रशासन और पुलिस के दावों का विरोध किया और उनकी मौत की जांच की मांग करते हए सोमवार को जेल के बाहर प्रदर्शन किया.
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि तीनों की शनिवार (31 दिसंबर) को ससून जनरल हॉस्पिटल में मौत हो गई.
उन्होंने कहा, ‘तीन विचाराधीन कैदियों में से एक एचआईवी पीड़ित थे जबकि एक अन्य लीवर सिरोसिस पीड़ित, तीसरे को दिल से जुड़ी बीमारी थी. सभी की 31 दिसंबर को इलाज के दौरान मौत हो गई. यह प्राकृतिक मौत थी.’
हिंदुस्तान टाइम्स ने इस अधिकारी की पहचान पुलिस उप-निरीक्षक अशोक काटे के रूप में की है. काटे ने कहा कि आकस्मिक मौत का मामला दर्ज किया गया है.
सोमवार 2 जनवरी को तीनों मृतकों ने जेल परिसर के बाहर धरना दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जेल में बंद उनके रिश्तेदारों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने की बात को लेकर उन्हें अंधेरे में रखा गया.
यरवदा पुलिस अधिकारियों के हवाले से हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया कि तीन कैदियों में से एक- रंगनाथ दताल को 28 दिसंबर को ससून अस्पताल ले जाया गया था. दो अन्य, संदेश गोंडेकर और शाहरुख शेख, को 31 दिसंबर को उसी दिन ससून में भर्ती कराया गया था, जिस दिन उनका निधन हुआ.
वहीं, कैदियों के परिजनों ने मौतों को ‘संदिग्ध’ करार दिया है और आरोप लगाया है कि जेल अधिकारी घटनाओं के बारे में पूरी जानकारी नहीं दे रहे हैं.
उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि तीनों विचाराधीन कैदियों को एक ही बैरक में रखा गया था और जेल वॉर्डन द्वारा पीटा गया था. बाद में उनकी मौत हो गई. पुलिस ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है.
यरवदा दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेलों में से एक है. एल्गार परिषद मामले के कई अभियुक्त- सभी विचाराधीन- भी वहीं बंद हैं.
गौरतलब है कि न्यायालय, कार्यकर्ता और अधिकार निकाय अक्सर ही भारत में ‘अत्यधिक’ विचाराधीन हिरासत का मुद्दा उठाते रहे हैं. भारत दुनिया में सबसे अधिक विचाराधीन कैदियों की आबादी वाले देशों में से एक है.
भारतीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय जेलों में 5,54,034 कैदियों में से 77.1 फीसदी विचाराधीन हैं और महज 22.2 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें अदालत ने दोषी ठहराया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)