हर प्रकार के धर्मांतरण को गै़रक़ानूनी नहीं कहा जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें धर्मांतरण रोधी क़ानून के तहत ज़िलाधिकारी को सूचित किए बिना शादी करने वाले अंतरधार्मिक जोड़ों पर मुक़दमा चलाने से रोकने वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें धर्मांतरण रोधी क़ानून के तहत ज़िलाधिकारी को सूचित किए बिना शादी करने वाले अंतरधार्मिक जोड़ों पर मुक़दमा चलाने से रोकने वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (तीन जनवरी) को एक मामले पर सुनवाई के सहमति जताने के साथ ही कहा कि हर प्रकार के धर्मांतरण को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता.

न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें जिलाधिकारी को सूचित किए बिना शादी करने वाले अंतरधार्मिक जोड़ों पर मुकदमा चलाने से रोकने वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी.

मध्य प्रदेश धर्मांतरण रोधी कानून एक धर्म से किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के लिए स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट को 60 दिनों की पूर्व सूचना देने का प्रावधान अनिवार्य करता है.

न्यायालय ने कहा कि हर तरह के धर्मांतरण को अवैध नहीं कहा जा सकता.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने मामले में नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई सात फरवरी के लिए स्थगित कर दी.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन शीर्ष अदालत ने कोई निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया.

मेहता ने कहा कि शादी का इस्तेमाल अवैध धर्मांतरण के लिए किया जाता है और ‘हम इस पर आंख नहीं मूंद सकते.’

हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को मध्य प्रदेश  धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (एमपीएफआरए) की धारा 10 के तहत उन वयस्कों पर मुकदमा नहीं चलाने का निर्देश दिया था, जो अपनी मर्जी से शादी करते हैं.

हाईकोर्ट ने 14 नवंबर 2022 के आदेश में कहा था कि धारा 10, जो धर्मांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को इस संबंध में (पूर्व) घोषणा पत्र देना अनिवार्य बनाती है, हमारी राय में इस अदालत के पूर्वोक्त निर्णयों की पूर्व दृष्टि से असंवैधानिक है.

मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 गलतबयानी, प्रलोभन, बल प्रयोग की धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, विवाह या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण को निषेध करता है.

अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली सात याचिकाओं पर हाईकोर्ट का अंतरिम निर्देश आया था. याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने से राज्य को रोकने के लिए अंतरिम राहत मांगी थी.

अदालत ने राज्य सरकार को याचिकाओं पर अपना क्रमवार जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ता उसके बाद 21 दिनों के भीतर जवाब दाखिल कर सकते हैं.

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में जनवरी 2021 में यह कानून लाया गया था. इस कानून के जरिये धर्मांतरण के मामले में अधिकतम 10 साल की कैद और 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

विवाद के केंद्र में मध्य प्रदेश  धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 की धारा 10 है.

अधिनियम की धारा 10 (1) और (2) में कहा गया है कि एक व्यक्ति जो धर्मांतरण करना चाहता है और एक पुजारी/व्यक्ति जो इस धर्मांतरण को करवाने का इरादा रखता है, को जिला मजिस्ट्रेट को दो महीने पहले घोषणा देनी होगी कि प्रस्तावित परिवर्तन धार्मिक विश्वास बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती या प्रलोभन से प्रेरित नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)