सुप्रीम कोर्ट स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनके द्वारा साल 2020 में किए गए कई ट्वीट ने अदालत की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचाया था. कामरा ने आत्महत्या मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज़मानत दिए जाने के विरोध में ये ट्वीट किए थे.
नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका के खिलाफ कथित निंदनीय ट्वीट को लेकर स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई से बृहस्पतिवार को खुद को अलग कर लिया.
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाओं पर विचार किया और कहा, ‘हम इस मामले को एक पीठ के समक्ष रखेंगे, जिसका मैं (सीजेआई) हिस्सा नहीं रहूंगा, क्योंकि टिप्पणी (ट्वीट) उस आदेश पर की गई थी, जिसे मैंने पारित किया है.’
हालांकि वकील ने कहा कि उन्हें इस मामले के उनके द्वारा सुने जाने में कोई समस्या नहीं है, सीजेआई ने यह कहते हुए इनकार कर दिया, ‘नहीं टिप्पणी उस आदेश पर की गई थी, जिसे मैंने पारित किया है.’
पीठ में जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे.
पीठ ने मामले को दो सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और सीजेआई अपनी प्रशासनिक क्षमता में अब इस मामले को किसी अन्य पीठ को सौंपेंगे.
कामरा ने 11 नवंबर, 2020 को उस वक्त ट्वीट करना शुरू किया था, जब शीर्ष अदालत 2018 में इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की अंतरिम जमानत याचिका खारिज करने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी.
गोस्वामी बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
गोस्वामी को अंतरिम जमानत देने का आदेश जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पारित किया था. सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने गोस्वामी को जमानत देते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता मामले में हस्तक्षेप नहीं किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत में कामरा के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कानून के छात्र श्रीरंग कटनेश्वरकर की भी याचिका शामिल हैं, जिन्होंने कहा था कि इन ट्वीट्स ने शीर्ष अदालत को ‘आघात’ पहुंचाया था और इसके अधिकार को ‘और कम किया’ था.
न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति आवश्यक है. इसलिए याचिकाकर्ताओं ने पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से संपर्क किया था.
तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कामरा के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति देते हुए कहा था कि कॉमेडियन के ट्वीट ‘खराब प्रकृति’ के थे और समय आ गया है कि लोग समझें कि शीर्ष अदालत को निशाना बनाने की सजा मिलेगी.
शीर्ष अदालत ने 18 दिसंबर, 2020 को इस मामले में कामरा को नोटिस जारी किया था. अपने जवाब में कुणाल कामरा ने अदालत को बताया था कि उन्होंने ट्वीट न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को कमतर करने की मंशा से नहीं किए गए थे.
उन्होंने कहा था कि ये मान लेना कि सिर्फ उनके ट्वीट से दुनिया के सबसे शक्तिशाली अदालत का आधार हिल सकता है. ऐसा मानना उनकी क्षमता को बढ़ा-चढ़ा कर समझना है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नोटिस के जवाब में दायर किए गए हलफनामे में कामरा ने कहा था, ‘जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट जनता के उसमें विश्वास को महत्व देता है, ठीक उसी तरह उसे जनता पर यह भी भरोसा करना चाहिए कि जनता ट्विटर पर सिर्फ कुछ चुटकुलों के आधार पर अदालत के बारे में अपनी राय नहीं बनाएगी.’
उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास उसकी आलोचना या किसी टिप्पणी पर नहीं, बल्कि खुद संस्थान के अपने कार्यों पर आधारित होता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)