शीर्ष अदालत ने दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के संबंध में अदालत के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने पिछले साल राज्य सरकार से 2018 की अपनी नीति में निर्धारित मानदंडों का पालन करने के लिए चार महीने के भीतर 512 क़ैदियों की समय से पहले रिहाई के मुद्दे पर विचार करने के लिए कहा था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के संबंध में अदालत के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई.
कहा कि उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक (डीजी प्रिजन) से राज्य में कैदियों को सजा में छूट का लाभ देने के लिए अब तक उठाए गए कदमों के बारे में विवरण देते हुए व्यक्तिगत तौर पर एक हलफनामा दाखिल करे.
शीर्ष अदालत ने छह सितंबर 2022 को सजा में छूट को लेकर राज्य सरकार की उल्लेखित नीति पर गौर किया था, जिसमें कहा गया था कि दोषियों को समय-पूर्व रिहाई के लिए आवेदन जमा करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी और उनके मामलों पर जेल अधिकारी स्वत: ही विचार करेंगे.
न्यायालय ने राज्य सरकार से 2018 की अपनी नीति में निर्धारित मानदंडों का पालन करने के लिए चार महीने के भीतर 512 कैदियों की समय से पहले रिहाई के मुद्दे पर विचार करने के लिए कहा था. ये कैदी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और इन्होंने शीर्ष अदालत में अपील की थी.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कैदियों को छूट दिए जाने के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए राज्य से यह जानकारी देने को भी कहा कि प्रत्येक जिले की जेलों में कितने दोषी हैं, जो समय-पूर्व रिहाई के पात्र हैं. पीठ में जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे.
पीठ ने कहा, ‘इस मामले के फैसले के बाद से कितने मामलों में समय-पूर्व रिहाई के लिए विचार किया गया है?’
शीर्ष अदालत ने राज्य के अधिकारियों के पास समय-पूर्व रिहाई के लंबित मामलों का विवरण मांगते हुए यह भी जानना चाहा कि इन पर कब तक विचार किया जाएगा.
डीजी प्रिजन को तीन सप्ताह में व्यक्तिगत हलफनामा देने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि दस्तावेज में निर्णय के अनुसरण में उठाए गए कदमों और की गई संस्थागत व्यवस्था का विवरण शामिल होना चाहिए.
पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी नोटिस जारी किया और इस मामले में अदालत की सहायता के लिए वकील ऋषि मल्होत्रा को ‘न्याय मित्र’ नियुक्त किया.
न्यायालय ने इसके अलावा मामले में सुनवाई की अगली तारीख तक 52 दोषियों की सजा में छूट की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी, जिन्होंने अपनी शिकायतों को लेकर न्यायालय से संपर्क किया था.
इंडिया टुडे के मुताबिक, इन दोषियों की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रतीक राय ने कहा, ‘इन 52 दोषियों ने क्षमा याचिका दायर की है, उन पर अभी तक अधिकारियों द्वारा विचार नहीं किया गया है.’
इस पर सीजेआई ने कहा, ‘यह अजीब है कि यूपी सरकार हमारे आदेशों का पालन क्यों नहीं कर रही है. हम पहले ही इस संबंध में निर्णय पारित कर चुके हैं.’
इसी तरह की चिंताओं को व्यक्त करते हुए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, ‘यहां तक कि जस्टिस नागेश्वर राव ने भी अपने फैसले में स्पष्ट रूप से आदेश दिया है कि सभी दोषियों को जो समय से पहले रिहाई के लिए पात्र हैं, बिना कोई आवेदन दाखिल किए रिहाई पर विचार किया जाना चाहिए.’
सीजेआई ने पूछा, ‘कैदियों को इस तरह कब तक सहना पड़ेगा?’
एक विस्तृत आदेश में अदालत ने जेल महानिदेशक से व्यक्तिगत हलफनामे के माध्यम से निम्नलिखित जानकारी मांगी.
रशीदुल जाफर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में दिए गए फैसले के अनुसरण में उठाए गए कदमों की संख्या और संस्थागत व्यवस्थाएं. जिलेवार कितने अपराधी समय-पूर्व रिहाई के पात्र हैं? फैसले के बाद से अब तक कितने मामलों में समय-पूर्व रिहाई पर विचार किया गया है? कितने मामले लंबित हैं? समय अवधि जब तक मामलों पर विचार किया जाएगा.
सितंबर 2022 में रशीदुल जाफर के मामले का फैसला करते हुए शीर्ष अदालत ने कई निर्देश जारी किए थे. न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को 512 कैदियों की समय से पहले रिहाई के मुद्दे पर चार महीने के भीतर विचार करते हुए उसकी 2018 की नीति में निर्धारित मानदंडों का पालन करने के लिए कहा था. ये कैदी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और न्यायालय के समक्ष पहुंचे थे.
पीठ ने कहा था, ‘हम निर्देश देते हैं कि मौजूदा मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों की समय से पहले रिहाई के सभी मामलों पर एक अगस्त, 2018 की नीति के अनुसार विचार किया जाएगा.’
उसने कहा था, ‘एक अगस्त, 2018 की नीति स्पष्ट करती है कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे लोगों को कोई आवेदन जमा करने की आवश्यकता नहीं है. उम्रकैद की सजा काट रहे प्रत्येक कैदी की पात्रता के साथ अधिकारियों द्वारा समय से पहले रिहाई की प्रक्रिया पर विचार किया जाएगा.’
पीठ ने वृद्ध और अशक्त कैदियों के प्रति नरम रुख अपनाते हुए कहा था कि 70 साल से ज्यादा आयु और लाइलाज बीमारी से पीड़ित आजीवन कारावास की सजा पाए पात्र कैदियों के मामले को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाएगा और दो महीने के भीतर निपटाया जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)