विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रावधान तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय ने सातवीं बार समय विस्तार मांगा है. अधिकारियों के अनुसार, मंत्रालय को राज्यसभा से अगले छह महीनों के लिए मंज़ूरी मिल गई. हालांकि लोकसभा से अनुमति मिलना शेष है.
नई दिल्ली: साल 2019 में संसद में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के नियमों को लागू करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा फिर एक बार समय विस्तार मांगा गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अधिकारियों ने शनिवार को बताया कि मंत्रालय द्वारा संसदीय समितियों से संपर्क करने के कुछ दिनों बाद उन्हें अगले छह महीनों के लिए राज्यसभा से मंजूरी मिल गई. हालांकि अभी लोकसभा से मंजूरी मिलना बाकी है.
बता दें कि यह विवादित क़ानून वर्ष 2019 के अंत में संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है. इसके अगले दिन राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी थी. इसके बाद गृह मंत्रालय ने सीएए को अधिसूचित कर दिया था.
हालांकि, सीएए को लागू किया जाना अभी बाकी है, क्योंकि इसके प्रावधान नहीं तैयार किए गए हैं. किसी भी कानून के क्रियान्वयन के लिए उसके प्रावधान तय करना जरूरी है.
संसदीय कार्य से जुड़ी नियमावली के मुताबिक, किसी भी कानून के प्रावधान राष्ट्रपति की सहमति के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए या लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों से समयसीमा में विस्तार की मांग की जानी चाहिए.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया, ‘राज्यसभा और लोकसभा में इस कानून के प्रावधान तैयार करने के लिए बनी संसदीय समितियों ने क्रमशः 31 दिसंबर, 2022 और 9 जनवरी, 2023 तक गृह मंत्रालय को विस्तार दिया था, हमने और समय की मांग करते हुए इन समितियों से संपर्क किया है. हमें राज्यसभा से मंजूरी मिल गई है और उम्मीद है कि लोकसभा से भी मंजूरी मिल जाएगी.’
जनवरी 2020 में गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किया था कि यह अधिनियम 10 जनवरी 2020 से लागू होगा, लेकिन उसने बाद में राज्यसभा और लोकसभा में अधीनस्त विधान संबंधी संसदीय समितियों से नियमों के क्रियान्वयन के लिए कुछ और समय देने का अनुरोध किया, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण देश एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा था.
सीएए के तहत मोदी सरकार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार रह चुके उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे.
बता दें कि इस क़ानून के बनने के बाद देश भर में महीनों तक विरोध प्रदर्शनों का दौर चला था, जो कोविड-19 महामारी के कारण थम गया. क़ानून को आलोचकों द्वारा मुस्लिम विरोधी और असंवैधानिक बताया जाता रहा है.
मई 2021 में केंद्र सरकार ने उपरोक्त तीन देशों के हिंदू, मुस्लिम, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोगों को, जो भारत के 13 जिलों में रह रहे हैं, को देश की नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी. हालांकि, आवेदन नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत मांगे गए थे क्योंकि संशोधित अधिनियम से संबंधित नियमों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.
उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश हिस्सों को इस अधिनियम से छूट दी गई है. संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों और अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड और मणिपुर राज्यों में यह कानून लागू नहीं होगा.
इस अधिनियम के जरिये जिन गैर-दस्तावेजी प्रवासियों को भारतीय नागरिक माना जाएगा, वे छूट वाले क्षेत्रों में नहीं बस सकेंगे.