17 जनवरी 2018 आठ साल की बच्ची का शव जम्मू कश्मीर के कठुआ ज़िले में मिला था. मेडिकल रिपोर्ट में पता चला था कि हत्या से पहले लड़की के साथ कई बार सामूहिक बलात्कार किया गया था. प्रारंभिक जांच में मामले के एक आरोपी शुभम सांगरा को स्थानीय अदालत ने नाबालिग माना था. नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सांगरा अपराध के समय बालिग था.
जम्मू/नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर पुलिस के क्राइम ब्रांच ने 2018 में कठुआ में आठ साल की बच्ची के सामूहिक बलात्कार और हत्या से जुड़े एक मामले में शुभम सांगरा के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप-पत्र (Chargesheet) दाखिल कर दिया है, जिसे कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने बालिग घोषित किया था.
इस मुकदमे की सुनवाई पड़ोसी राज्य पंजाब के पठानकोट में शुरू होने की उम्मीद है, जैसा कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था. क्राइम ब्रांच ने हत्या, बलात्कार, अपहरण और गलत तरीके से बंधक बनाने समेत विभिन्न आरोपों में अपना आरोप-पत्र कठुआ में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दाखिल कर दिया है, जिसने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 24 जनवरी की तारीख तय की है.
सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश के अनुसार, पठानकोट की सत्र अदालत मामले की सुनवाई करेगी और अपीलीय अदालत पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट होगा.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 22 नवंबर 2022 को सांगरा को बालिग घोषित किए जाने के बाद उसे बाल सुधार गृह से कठुआ कारागार में स्थानांतरित किया गया था.
क्राइम ब्रांच के आरोप-पत्र में इस जघन्य अपराध में सांगरा की कथित संलिप्तता के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें कहा गया है कि संगरा ने आठ साल की बच्ची को जबरन अधिक मात्रा में नशीले पदार्थ दिए, जिससे वह अपने साथ यौन शोषण और अपनी हत्या का विरोध करने की हालत में नहीं रही.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आरोप-पत्र में एक चिकित्सा विशेषज्ञ के हवाले से कहा गया है, ‘उसे 11 जनवरी, 2018 को जबरदस्ती 0.5 मिलीग्राम क्लोनाजेपाम की पांच गोलियां दी गईं, जो सुरक्षित चिकित्सीय खुराक से अधिक है. इसके बाद और गोलियां दी गईं. ओवरडोज के संकेतों और लक्षणों में उनींदापन, भ्रम, बिगड़ा हुआ समन्वय, धीमी प्रतिक्रिया, धीमी या बंद सांस, कोमा (चेतना का नुकसान) और मृत्यु शामिल हो सकती है.’
डॉक्टरों की राय थी कि बच्ची को दी गईं नींद की गोलियां उसे सदमे या कोमा की स्थिति में धकेल दिया था.
संगरा के बालिग होने का पर्दाफाश तब हुआ जब जन्म प्रमाण-पत्र के लिए गलत तरीके से दिए एक आवेदन से उसके नाबालिग होने के दावे की साजिश का खुलासा हुआ.
दरअसल मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कठुआ और जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने अप्रैल 2004 में नगरपालिका समिति, हीरानगर के कार्यकारी अधिकारी द्वारा दर्ज की गईं तारीखों के आधार पर अभियुक्त को नाबालिग माना था, जिसमें उसकी जन्मतिथि 23 अक्टूबर 2002 दिखाई गई थी.
पुलिस के अनुसार, जम्मू के हीरानगर में तहसीलदार कार्यालय में संगरा के पिता ने अपने तीन बच्चों के जन्म प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन दिया था. बड़े बेटे की जन्मतिथि 23 नवंबर 1997, एक बेटी का जन्म 21 फरवरी 1998 और शुभम संगरा का जन्म 23 अक्टूबर 2002 को बताया गया.
पुलिस ने कहा कि दो बड़े बच्चों की जन्म की तारीख में महज दो महीने और 28 दिन का अंतर था, जो किसी भी तरीके से संभव नहीं है. इसके बाद इस पूरी साजिश का खुलासा हुआ.
जम्मू कश्मीर क्राइम ब्रांच द्वारा इस मामले में दाखिल आरोप-पत्र के अनुसार बच्ची के अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या में संगरा की अहम भूमिका रही.
17 जनवरी, 2018 को लड़की की हत्या का खुलासा होने पर इस मामले ने देशव्यापी आक्रोश पैदा कर दिया था. मामला उसी वर्ष 27 जनवरी को जम्मू और कश्मीर क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया, जिसने कहा कि लड़की का अपहरण कर लिया गया था और हत्या करने से पहले चार दिन तक उसके साथ बलात्कार किया गया था. इसमें सांगरा समेत आठ लोगों को आरोपी बनाया गया.
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के सात मई 2018 के आदेश पर जम्मू कश्मीर से बाहर पठानकोट स्थानांतरित किया गया.
विशेष अदालत ने 10 जून, 2019 को मुख्य आरोपी सांजी राम समेत तीन लोगों को ‘अंतिम सांस तक’ उम्रकैद की सजा सुनाई. तीन अन्य आरोपियों – सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता, हेड कांस्टेबल तिलक राज और विशेष पुलिस अधिकारी सुरेंद्र वर्मा को अपराध को छिपाने के लिए सबूत नष्ट करने का दोषी पाया गया और उन्हें पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई. वे अभी पैरोल पर बाहर हैं. सातवें आरोपी एवं सांजी राम के बेटे विशाल जंगोत्रा को बरी कर दिया गया था.
मालूम हो कि सामूहिक बलात्कार और हत्या के इस जघन्य मामले के घटनाक्रम की शुरुआत 10 जनवरी 2018 को होती है. इस दिन कठुआ जिले की हीरानगर तहसील के रसाना गांव की आठ साल की लड़की गायब हो जाती है. वह बकरवाल समुदाय की थी, जो एक खानाबदोश समुदाय है. इसका ताल्लुक मुस्लिम धर्म से है.
परिवार के मुताबिक, यह बच्ची 10 जनवरी को दोपहर करीब 12:30 बजे घर से घोड़ों को चराने के लिए निकली थी और उसके बाद वो घर वापस नहीं लौट पाई.
फिर करीब एक सप्ताह बाद 17 जनवरी 2018 को आठ साल की बच्ची का क्षत-विक्षत शव मामले के मुख्य आरोपी और एक स्थानीय मंदिर का देखरेख करने वाले सांजी राम के घर के पास के जंगल से मिला था.
मेडिकल रिपोर्ट में पता चला था कि लड़की के साथ कई बार कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार हुआ था और पत्थर से कूचकर उसकी हत्या की गई थी. हत्या से पहले उसे भारी मात्रा में नींद की गोलियां दी गई थीं. जिस वजह से वह कोमा में चली गई थी.
इस बलात्कार और हत्या की घटना को लेकर व्यापक आक्रोश और विरोध प्रदर्शनों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार ने पीड़ित परिवार के आग्रह पर मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी थी.
तब तत्कालीन सरकार में दो मंत्रियों चंद्रप्रकाश गंगा और चौधरी लाल सिंह ने सीबीआई जांच की मांग करते हुए आरोपियों के परिवार और संबंधियों के साथ निकाली गई रैली में हिस्सा भी लिया था.
क्राइम ब्रांच ने अपनी जांच में कहा था कि घटनास्थल पर झूठे साक्ष्य बनाने की कोशिश में नाबालिग बच्ची के कपड़े फॉरेंसिक साइंस लैब भेजे जाने से पहले पुलिसकर्मियों ने धो दिए थे.
क्राइम ब्रांच की 15 पेज की चार्जशीट में कहा गया था, ‘बच्ची को नशीला पदार्थ खिलाया गया था, जिसे एक स्थानीय दुकान से खरीदा गया था. बच्ची की निर्मम तरीके से गला घोंटकर हत्या करने से कुछ दिन पहले उसे कठुआ जिले के रसाना स्थित में एक मंदिर में छिपाकर रखा गया था.’
चार्जशीट के मुताबिक, आरोपियों ने लगातार बच्ची का बलात्कार किया, जबकि मामले की जांच कर रहे स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने साक्ष्यों को नष्ट किया.
चार्जशीट में कहा गया, ‘जांच के दौरान पता चला कि सांजी राम रसाना, कूटा और धाम्याल इलाकों में बकरवाल (चरवाहा समुदाय) के बसने के खिलाफ था और अपने समुदाय के लोगों को लगातार कहता था कि वे बकरवालों को चराने के लिए जमीन न दें और न ही उनकी किसी तरह की मदद करें.’
क्राइम ब्रांच ने कथित किशोर (शुभम सांगरा) सहित आठ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी.
बच्ची के एक मंदिर के भीतर बलात्कार और हत्या को लेकर देशव्यापी गुस्से और उनके पिता की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इस मामले को जम्मू एवं कश्मीर के बाहर पंजाब के पठानकोट स्थानांतरित कर दिया था.
इसके अलावा अदालत ने पंजाब के पठानकोट की सत्र अदालत को इस मामले की सुनवाई दैनिक आधार पर करने के आदेश दिए थे.
पठानकोट के जिला एवं सत्र न्यायाधीश तेजविंदर सिंह ने अपने 432 पेज के फैसले में इस अपराध को ‘शैतानी और वहशियाना’ बताते हुए कहा था कि इस अपराध को सबसे अधिक शर्मनाक, अमानवीय और बर्बर तरीके से अंजाम दिया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)